RANCHI: सीडब्ल्यूसी ने रांची रेलवे चाइल्ड लाइन द्वारा रेस्क्यू किए गए चार नाबालिग बच्चों को बिना एक्सपर्ट बुलाए उनके परिजनों को सौंप दिया। जबकि यह नियम के विरुद्ध है। इस संबंध में सीडब्ल्यूसी द्वारा न तो नियम का पालन किया गया और न ही इस संबंध में ओडि़शा सीडब्ल्यूसी से संपर्क किया गया। नाबालिग बच्चों के परिजन आए तो यूआईडी के आधार पर बच्चे उन्हें सौंप दिए गए। जबकि रेस्क्यू किए गए नाबालिग बच्चे को हिंदी नहीं आती थी और वे लोग उडि़या भाषा में बात कर रहे थे। कहा गया कि वे लोग मुंडारी भी बोल रहे थे। जिसे कुछ लोगों समझवाया गया, जो उस संस्था से बिलांग नहीं करते हैं। यानी भाषा के एक्सपर्ट को भी नहीं बुलाया गया था।

क्या है नियम

नियम यह है कि यदि कोई संस्था किसी बच्चे को रेस्क्यू कर सीडब्ल्यूसी को सौंपती है, तो डीसीपीओ द्वारा एक शॉर्ट टर्न बनाकर दिया जाता है और उस रेस्क्यू किए गए बच्चे का स्टेटस इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट बनाकर संबंधित राज्य के जिले में पड़ने वाली सीडब्ल्यूसी को इंफार्म कर दी जाती है। यदि वहां से सीडब्ल्यूसी पुलिस लेकर आती है तब बच्चे को उन्हें हैंड ओवर करना होता है। यही नहीं, उस बच्चे को रिलीज करने के लिए 14 दिनों तक किसी न किसी शेल्टर होम में भेजा जाता है। पर, ऐसा नहीं हुआ।

क्या था मामला

जानकारी के मुताबिक, कुछ दिन पूर्व रेलवे चाइल्ड लाइन ने कुछ बच्चों को स्टेशन पर अकेले देखा तो उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया। इसके बाद उसे सीडब्ल्यूसी के सुपुर्द कर दिया गया। सीडब्ल्यूसी से उन्हें एक शॉर्ट टर्न दिया गया। रेलवे चाइल्ड लाइन के अधिकारी राजीव कुमार ने बताया कि उन्होंने बच्चों को सीडब्ल्यूसी को सौंप दिया। बच्चों का क्या हुआ, इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं मिली है। बताया गया कि चारों बच्चे दिल्ली जाने के लिए प्लेटफार्म पर बैठे थे। जब उनलोगों से पूछताछ की गई तो पता चला कि उनके साथ कोई नहीं है। लेकिन, बाद में उसके गार्जियन भी रांची आ गए थे। सभी बच्चे ओडि़शा सोनपुर जिले के कुलांडा थाना क्षेत्र के रहनेवाले थे।

कोट

बच्चों का केवल वह स्पेशल इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट बनाए और उन्हें ओडि़शा भेज दिया है। पैरेंट्स को बच्चे सोंपने का अधिकार सीडब्ल्यूसी को होता है।

सेवक राम लोहरा, डीसीपीओ