-लोकसभा चुनाव के माहौल में छात्राओं ने उठाई आवाज

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PRAYAGRAJ: पंचायत चुनाव में महिलाओं के आरक्षण की व्यवस्था है. सभी राजनैतिक दल लोकसभा और विधानसभा चुनावों में महिलाओं के आरक्षण की वकालत भी करते रहे हैं. ऐसे में अब जब देश में लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल गर्म है और नेता सभी तरह के दावे और वादे करने की होड़ में हैं. तब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने भी छात्रसंघ चुनावों में छात्राओं का आरक्षण फिक्स किए जाने की मांग उठाई है. इसके लिए छात्राओं की ओर से लोगों के बीच जाकर कैम्पेन की शुरुआत की गई है.

भारत काफी पीछे

छात्रसंघ चुनाव में छात्राओं को आरक्षण की मांग को लेकर प्रत्यावेदन इविवि कुलपति को पिछले दिनों दिया गया है. वहीं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, महिला आयोग को भी पत्र लिखा गया है. इविवि में सेंटर ऑफ फूड टेक्नोलॉजी की शोध छात्रा नेहा यादव का कहना है कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को संशोधित कराने एवं छात्रसंघ चुनाव में 50 फीसदी छात्राओं को आरक्षण देने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है. नेहा ने कहा कि पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट 01 नवम्बर 2018 के मुताबिक संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में भारत का स्थान 151वां है. महिलाओं की नेतृत्व भागीदारी भारत में कमजोर है. कहा कि राजस्थान विश्वविद्यालय की पहली महिला अध्यक्ष 2011 में बनी. जबकि यहां प्रत्यक्ष चुनाव 1970 से हो रहे थे. इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आजादी के बाद वर्ष 2015 में पहली महिला अध्यक्ष को चुना जा सका. वहीं पिछले वर्ष पंजाब विश्वविद्यालय में पहली बार कनुप्रिया अध्यक्ष बन पाई.

वर्जन फोटो

पितृसत्तात्मक ढांचे के समाज में स्थान व स्पेस दोनों ही बराबरी से नहीं मिल पा रहा है. वर्तमान में छात्र राजनीति का अर्थ परिवर्तित हो रहा है. धनबल-बाहुबल के वर्चस्व से छात्राएं चुनाव लड़ना छोडि़ए दहशत की वजह से वोट डालने तक नहीं पहुंचती.

अर्शिया विश्रांति

जो छात्राएं वोट के लिए निकलती हैं उन्हें सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक एवं राजनीतिक रुप से कमजोर करने का प्रयास किया जाता है. छात्राओं के लिए छात्रसंघ चुनाव में सीटों को आरक्षित कर दिया जाएगा तब विभिन्न संगठन उन्हें लड़ाने के लिए आगे आएंगे.

वर्षा पटेल

आरक्षण से छात्राओं को निर्दल लड़ने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा. वह भारत के भविष्य के नेतृत्व में अपना योगदान दे सकेंगी. आखिर अब तक छात्राओं के प्रतिनिधित्व के सवाल को सदन में क्यों नही उठाया गया ?

राजश्री

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आजादी के बाद आज तक कोई महिला प्रत्याशी महामंत्री पद पर चुनाव नहीं जीत पाई है आखिर क्यों? देश भर के तमाम विश्वविद्यालय, कॉलेजों में छात्राओं के प्रतिनिधित्व को लेकर रिकॉर्ड बेहद निराशाजनक है.

नेहा यादव

यह भारत की छात्राओं के प्रतिनिधित्व की लड़ाई है. जिससे छात्राओं को राजनीतिक भागीदारी में आधी आबादी की आवाज को उठाने का अधिकार मिल सके. इसके लिए सरकार और विपक्ष के नेताओं के बीच जाकर अपनी आवाज उठाएंगे.

आशिया अल्वी