रांची: पढ़ाई में अच्छे नंबर लाना जरूरी है लेकिन रिजल्ट खराब होने पर जान दे देना यह कहां की बुद्धिमानी है. बच्चों के जेहन में यह बात डालना जरूरी है. खासकर तब जब वो 10वीं और 12वीं क्लास में हों. इसपे अमल नहीं किये जाने पर भयंकर परिणाम सामने आ रहा है, फिर पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा. सिटी मेंऐसे दर्दनाक वाकये सामने भी आ चुके हैं. कुछ स्टूडेंट्स उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट नहीं आने पर नासमझी में ऐसा कदम उठा लिए कि अब उनके मां-बाप का रो रोकर बुरा हाल है. कहें तो रिजल्ट और परीक्षाफल जैसे शब्द बच्चों की जिंदगी के लिए खौफनाक बनते जा रहे हैं. 10वीं और 12वीं परीक्षाओं के रिजल्ट आने के बाद कुछ परिवारों में तो बच्चों की सफलता की खुशी लहरा रही है तो कुछ आंखों के सपने टूटे भी हैं. रिजल्ट का प्रेशर स्टूडेंट्स संभाल नहीं पा रहे हैं और सीधे मौत चुन ले रहे हैं. खराब रिजल्ट मतलब जिंदगी से आउट होना मान ले रहे हैं. कुछ ही दिन पहले सिटी में सीबीएसई 12वीं का रिजल्ट आया तो डीएवी गांधीनगर की छात्रा अदिती ने हरमू स्थित बिल्डिंग के सातवें फ्लोर से कूदकर जान दे दी. मंगलवार को जैक ने 12वीं का रिजल्ट डिक्लेयर किया तो नामकुम के शास्त्री मैदान के पास रहने वाली खुशबू ने बुधवार की सुबह ट्रेन के सामने छलांग लगा कर मौत को गले लगा लिया. दोनों ही परिवारों में रिजल्ट के खराब होने के दुख से ज्यादा बच्चों की मौत का मातम पसरा हुआ है.

हर साल 1000 दे रहे जान

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में सुसाइड के मामलें बढ़ रहे हैं. 2005-2015 तक अकेले झारखंड में 12 हजार 352 लोगों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. जबकि 2005 में पूरे देश में एक लाख 13 हजार 914 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं 2015 में संख्या 1 लाख 33 हजार 623 तक पहुंच गई. इस तरह एक दशक में सुसाइड के केस में 17.3 फीसदी का इजाफा हुआ, जबकि देश की पॉपुलेशन इन 10 सालों में 14.2 परसेंट बढ़ी. इनमें छात्र, गृहिणियां, किसान, व्यवसायी, बेरोजगार, दैनिक मजदूर, सेवानिवृत कर्मचारी सभी शामिल रहे. 2005 में जहां सूबे में सुसाइड के 808 मामले सामने आये वहीं 2015 में यह आंकड़ा 835 था. बात अगर 2016 की करें तो एक साल में 1,292 लोगों ने किसी ना किसी कारण के चलते अपनी जिंदगी को खत्म कर लिया.

जमशेदपुर में केस ज्यादा

सुसाइड के सबसे ज्यादा केस लौहनगरी जमशेदपुर में होते हैं. राज्य में जहां 10 सालों में 12,352 लोगों ने आत्महत्या की. वहीं जमशेदपुर के 1,424 केस थे. जबकि दूसरे नंबर पर कोयलांचल धनबाद है.

झारखंड में सुसाइड रिकार्ड

साल आत्महत्या के मामले

2005 808

2006 856

2007 1289

2008 911

2009 1,112

2010 1,232

2011 1,212

2012 1,319

2013 1,460

2014 1,300

2015 835

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कारण कई, पर जिंदगी है कीमती

साइक्लोजिस्ट का मानना है कि स्टूडेंट्स पर पढ़ाई का बढ़ता बोझ, सफल होने की ललक उसपर से परिवार का प्रेशर बहुत सारे स्टूडेंट्स सह नहीं पाते. वही प्यार में असफल होने, बढ़ते घरेलू कलह से भी लोगों के जिंदगी में तनाव बढ़ा है. आगे बढ़ने की आपाधापी में हम छोटी-छोटी खुशियों पर ध्यान ही नहीं देते. जरूरत है जिंदगी से स्ट्रेस को कम करने की. क्योंकि जिंदगी काफी कीमती है.

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इन बातों का ख्याल रखें पेरेंट्स

-देखें कि बच्चा कुछ दिन से गुमशुम तो नहीं है या अपने में ही तो नहीं रहने लगा है. अगर ऐसा है, तो एलर्ट हो जाएं. उससे प्यार से बातें करें, उसकी समस्या समझने का प्रयास करें.

- कहीं आपके बच्चे को किसी ऑनलाइन गेम की लत तो नहीं लग गई है. वह छिप-छिप के तो इस तरह के गेम नहीं खेल रहा है.

-बच्चे को पढ़ाई के लिए कभी-कभी बेशक डांटे, पर उसके बाद उसकी गतिविधियों पर भी गौर करें. कहीं वह इससे हताश-निराश तो नहीं हो रहा है, उसे समझाएं और प्रोत्साहित करें.

-अगर परीक्षा में कम अंक आने या फेल होने से वह परेशान है, किसी से बातें करने से बच रहा है, खाने-घूमने में रुचि नहीं ले हा है तो भी उसके साथ बैठें. उसे समझाएं और आश्वस्त करें कि फेल हो गये या कम अंक आ गए तो क्या हुआ. यह कोई जिंदगी की आखिरी परीक्षा तो नहीं है. आगे अभी बहुत सारे मौके आएंगे.

-बच्चे का मन जिस फील्ड में लगता हो, उसी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें.

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वर्जन

बच्चों को यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह रिजल्ट उनकी जिंदगी का आखिरी रिजल्ट है. वहीं पेरेन्ट्स भी बच्चों पर विशेष नजर रखें. साथ ही उन पर रिजल्ट को लेकर प्रेशर न पड़ने दें.

डॉ. धर्मेन्द्र रजक

साइकोलॉजिस्ट, रांची

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का लगातार मोरल बुस्ट अप करता रहता हुं. मैं खुद क्लास में जाकर बच्चों को उत्साहित और प्रोत्साहित करता हूं. रिजल्ट सिर्फ आपके काम का परिणाम है, मेहनत पढ़ाई में करें न कि रिजल्ट का प्रेशर लें.

डॉ. एसके सिन्हा

प्रिंसीपल, डीएवी गांधीनगर

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बच्चों का जब रिजल्ट आता है तो जिनका अच्छा होता है उनके परिवारों में मिठाइयां बंटती हैं, लेकिन जिनका रिजल्ट खराब होता है उन्हें सबसे ज्यादा साथ और सहयोग की जरूरत होती है. माता पिता बच्चों के साथ बात करें उन्हें समझाएं और रिलैक्स करें. फिजीकल एक्टिविटी में बच्चों को ज्यादा समय देना चाहिए, खेलकूद शरीर और मन को स्वस्थ रखता है.

सरोज पाठक, आईआईटी रुड़की, कॅरियर काउंसलर, अलबेडो संस्थापक