गुलजार था सिटी का थिएटर
कभी रांची का थिएटर गुलजार हुआ करता था। रांची में लगभग दो दर्जन से अधिक थिएटर ग्रुप्स एक्टिव थे। जो देश-विदेश के फेमस नाटकों का मंचन किया करते थे। इन नाटकों के जरिए जहां एक तरफ दर्शकों का एंटरटेनमेंट होता था, वहीं ये आर्टिस्ट्स सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थिएटर के माध्यम से अपना मैसेज भी आम दर्शकों तक पहुंचाते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया, रांची का थिएटर उपेक्षा का शिकार हो गया। यहां के थिएटर ग्रुप और उनसे जुड़े आर्टिस्ट टीवी और सिनेमा की दुनिया में भाग्य आजमाने मुंबई चले गए और जो बचे, वह अपने दूसरे प्रोफेशन में बिजी हो गए।

90 के दशक में कम हुआ क्रेज
साल 1990 के दशक में थिएटर ग्रुप्स एकाएक दम तोडऩे लगे। ऑडिटोरियम की कमी, दर्शकों की उपेक्षा और बजट के अभाव में सिटी में नाटकों का मंचन होना लगभग बंद हो गया.सिटी की एक-दो संस्थाएं अगर नाटकों को करती थी, तो वह भी सिर्फ रस्म अदाएगी होती थी.  ऐसे में सिटी का रंगमंच सूना हो गया था। हालांकि स्टेट म्यूजियम और सिटी के कुछ दूसरी रंगमंच संस्थाओं द्वारा थिएटर को फिर से जिंदा करने की कोशिश की जा रही है।