उन्होंने मानव चिकित्सा क्षेत्र में इस्तेमाल होनेवाली तकनीक के प्रयोग से ये दिखा दिया कि लुप्त हो रही प्रजातियों में किस तरह टेस्ट-ट्यूब बेबी पैदा करवाए जा सकते हैं। ये प्रयोग सफ़ेद गैंडे पर किए गए। फ़िलहाल दुनियां भर में मात्र सात सफ़ेद गैंडे बचे हैं।

वैज्ञानिकों ने इन जानवरों की खाल की कोशिकाओं को लेकर उनसे 'स्टेम सेल्स' विकसित किए जो बाद में ख़ुद विभिन्न तरह के शारीरिक कोशिकाओं में तबदील हो सकते हैं।

विज्ञान जगत की पत्रिका 'नेचर मेथ्डस' में लिखते हुए उन्होंने इस बात के संकेत दिए कि वो स्टेम सेल्स को शुक्राणु और बिजाणु में परिवर्तित कर सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है है बाद में इससे जो टेस्ट-ट्यूब भ्रूण बनाया जाएगा वो उससे मिलती-जुलती प्रजाति के किसी 'सरोगेट मदर' के भीतर विकसित हो सकता है।

प्रतिरूपण

वैज्ञानिकों का एक समूह प्राकृतिक संरक्षण के लिए क्लोनिंग (प्रतिरूपण) का प्रयास कर रहा है लेकिन वो प्रयोग बहुत सफल नहीं हो पाया है।

स्टेम-सेल्स इस क्षेत्र में एक विकल्प साबित हो सकता है।

कैलीफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के इसी समूह ने पश्चिमी अफ्रीका के बंदरों की त्वचा से भी स्टेम कोशिकाओं का निर्माण किया है। उनका कहना है कि वो विलुप्त हो रही 10 दूसरी प्रजातियों पर भी यही प्रयोग करना चाहते हैं। हालांकि ये साफ़ नहीं है कि टेस्ट-ट्यूब गैंडे के विकास में कितना समय लगेगा।

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