भले ही सुप्रीम कोर्ट ने वोटर्स के हक में बड़ा फैसला लेते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में ‘राइट टू रिजेक्ट’ का ऑप्शन एड-ऑन करवाने का फैसला सुनाया है। मगर, कानपुर के वोटर्स इस राइट का इस्तेमाल असेम्बली इलेक्शन-2012 के दौरान कर चुके हैं। आंकड़ों के तहत लास्ट ईयर फरवरी में कंडक्ट असेम्बली इलेक्शन में कानपुर के 53 वोटर्स ने सभी कैंडीडेट्स को सिरे से खारिज कर दिया था. 
कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल 1961 
इंडियन कॉन्सटीट्यूशन में चुनाव आयोग को जबर्दस्त पॉवर दी गई हैं। इसकी एक बानगी है, कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल 1961 का सेक्शन 49-ओ अगर कोई वोटर इस ऑप्शन को चूज करता है तो चुनाव आयोग इसका सीधा मतलब निकालता है कि वोटर की नजर में संबंधित विधानसभा या लोकसभा सीट के लिए कोई भी प्रत्याशी वोट देने लायक नहीं है। राइट टू रिफ्यूज वोट एक्सरसाइज करने के लिए वोटर को पोलिंग बूथ पर प्रिसाइडिंग ऑफिसर से फॉर्म 17-ए मांगना पड़ता है। इस फॉर्म में वोटर का नाम, पता फिलअप करने के साथ ही वोट न देने व कैंडीडेट के रिफ्यूजल की वजह लिखनी पड़ती है. 
कानपुर में 53 रिजेक्शन 
डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन के पास अवेबेलबल डाटा के तहत कानपुर में 23 फरवरी-2012 को हुए असेम्बली इलेक्शन में 53 वोटर्स ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन का यूज किया है। अशोक नगर स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज में 6 व सरस्वती शिशु मंदिर में 7 वोटर्स ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन को एक्सरसाइज किया। हालांकि, आंकड़ों की संख्या इससे कहीं ज्यादा होती अगर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने पोलिंग बूथ पर प्रॉपर अरेंजमेंट्स करवाये होते। क्योंकि कल्याणपुर और किदवई नगर के कई पोलिंग सेंटर्स पर वोटर्स को फॉर्म 17-ए मुहैया ही नहीं कराया गया। भगवंती देवी एजुकेशन सेंटर, जुगलदेवी सरस्वती विद्या मंदिर, जयनारायण विद्या मंदिर, माउंट कार्मल स्कूल, डॉ। वीरेन्द्र स्वरूप, सेठ मोतीलाल खेडिय़ा सनातन धर्म कॉलेज, वीएसएसडी कॉलेज, घनश्याम दास स्कूल में फॉर्म 17-ए न मिलने की वजह से वोटर्स ‘राइट टू रिजेक्ट’ की पॉवर एक्सरसाइज ही नहीं कर सके. 
आई नेक्स्ट ने किया था अवेयर 
असेम्बली इलेक्शन-2012 की अधिसूचना जारी होने के बाद आई नेक्स्ट ने रूल 49-ओ का जमकर प्रचार किया था। इसी का नतीजा रहा कि शहर में राइट टू रिजेक्ट को लेकर न सिर्फ वोटर्स अवेयर हुए। बल्कि, उन्होंने इस पॉवर का इस्तेमाल करते हुए सभी उम्मीदवारों को सिरे से खारिज कर दिया। इस इश्यू पर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने ज्यादा जहमत नहीं उठाई। इसके लिए तत्कालीन डीएम डॉ। हरिओम को चीफ इलेक्शन कमिश्नर एसवाई कुरैशी ने आड़े हाथों लिया था। क्योंकि सूचना के अभाव में कानपुराइट्स सीधे इलेक्शन कमिश्नर को ही फोन करके राइट टू रिजेक्ट की जानकारी कर रहे थे. 
नये कैंडीडेट्स के साथ होता है दोबारा चुनाव 
राइट टू रिजेक्ट ऑप्शन की एक खास महत्ता और भी है। अगर ‘राइट टू रिजेक्ट’ के तहत डाले गये वोट्स की संख्या विनर कैंडीडेट्स को मिले वोट्स की संख्या से ज्यादा हुई तो वहां री-पोलिंग यानि दोबारा चुनाव करवाये जाने का प्रावधान है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी सीट के लिए विनर कैंडीडेट को 1,00,000 वोट मिलते हैं। और उसी सीट के लिए राइट टू रिजेक्ट के तहत डाले गये वोट्स की संख्या 1,00,001 है तो इसका मतलब ये हुआ कि वहां की जनता को कोई भी वोटर पसंद नहीं है। इसके तहत चुनाव आयोग वहां दोबारा वोटिंग करवाता है। यही नहीं चुनाव में खड़े सभी पुराने कैंडीडेट्स की कैंडीडेचर भी कैंसिल कर दी जाती है। ऐसी कंडीशन में सभी पार्टियों को फ्रेश कैंडीडेट्स मैदान में उतारने पड़ते हैं. 
यह होता है तरीका 
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद अब ईवीएम में ही ‘राइट टू रिजेक्ट’ बटन इंट्रोड्यूस की जा रही है। अब तक कुछ इस तरह यह पॉवर एक्सरसाइज की जाती है. 
- कोई कैंडीडेट पसंद न आने पर वोटर को पोलिंग ऑफिसर से कहना पड़ता है कि मुझे ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन एक्सरसाइज करना है. 
-  वोटर की डिमांड पर पीठासीन अधिकारी उसे फॉर्म 17-ए मुहैया कराता है. 
- फॉर्म 17-ए में वोटर का नाम-पता, वोट न देने व कैंडीडेट के रिफ्यूजल की वजह लिखी जाती है. 
- आखिर में वोटर को फॉर्म में सिग्नेचर या थंब इंप्रेशन लगाने होंगे. 
- प्रिसाइडिंग ऑफिसर वोटर को इसकी बाकायदा रिसीविंग भी देगा. 

भले ही सुप्रीम कोर्ट ने वोटर्स के हक में बड़ा फैसला लेते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में ‘राइट टू रिजेक्ट’ का ऑप्शन एड-ऑन करवाने का फैसला सुनाया है। मगर, कानपुर के वोटर्स इस राइट का इस्तेमाल असेम्बली इलेक्शन-2012 के दौरान कर चुके हैं। आंकड़ों के तहत लास्ट ईयर फरवरी में कंडक्ट असेम्बली इलेक्शन में कानपुर के 53 वोटर्स ने सभी कैंडीडेट्स को सिरे से खारिज कर दिया था. 

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल 1961 

इंडियन कॉन्सटीट्यूशन में चुनाव आयोग को जबर्दस्त पॉवर दी गई हैं। इसकी एक बानगी है, कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल 1961 का सेक्शन 49-ओ अगर कोई वोटर इस ऑप्शन को चूज करता है तो चुनाव आयोग इसका सीधा मतलब निकालता है कि वोटर की नजर में संबंधित विधानसभा या लोकसभा सीट के लिए कोई भी प्रत्याशी वोट देने लायक नहीं है। राइट टू रिफ्यूज वोट एक्सरसाइज करने के लिए वोटर को पोलिंग बूथ पर प्रिसाइडिंग ऑफिसर से फॉर्म 17-ए मांगना पड़ता है। इस फॉर्म में वोटर का नाम, पता फिलअप करने के साथ ही वोट न देने व कैंडीडेट के रिफ्यूजल की वजह लिखनी पड़ती है. 

कानपुर में 53 रिजेक्शन 

डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन के पास अवेबेलबल डाटा के तहत कानपुर में 23 फरवरी-2012 को हुए असेम्बली इलेक्शन में 53 वोटर्स ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन का यूज किया है। अशोक नगर स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज में 6 व सरस्वती शिशु मंदिर में 7 वोटर्स ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन को एक्सरसाइज किया। हालांकि, आंकड़ों की संख्या इससे कहीं ज्यादा होती अगर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने पोलिंग बूथ पर प्रॉपर अरेंजमेंट्स करवाये होते। क्योंकि कल्याणपुर और किदवई नगर के कई पोलिंग सेंटर्स पर वोटर्स को फॉर्म 17-ए मुहैया ही नहीं कराया गया। भगवंती देवी एजुकेशन सेंटर, जुगलदेवी सरस्वती विद्या मंदिर, जयनारायण विद्या मंदिर, माउंट कार्मल स्कूल, डॉ। वीरेन्द्र स्वरूप, सेठ मोतीलाल खेडिय़ा सनातन धर्म कॉलेज, वीएसएसडी कॉलेज, घनश्याम दास स्कूल में फॉर्म 17-ए न मिलने की वजह से वोटर्स ‘राइट टू रिजेक्ट’ की पॉवर एक्सरसाइज ही नहीं कर सके. 

आई नेक्स्ट ने किया था अवेयर 

असेम्बली इलेक्शन-2012 की अधिसूचना जारी होने के बाद आई नेक्स्ट ने रूल 49-ओ का जमकर प्रचार किया था। इसी का नतीजा रहा कि शहर में राइट टू रिजेक्ट को लेकर न सिर्फ वोटर्स अवेयर हुए। बल्कि, उन्होंने इस पॉवर का इस्तेमाल करते हुए सभी उम्मीदवारों को सिरे से खारिज कर दिया। इस इश्यू पर डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने ज्यादा जहमत नहीं उठाई। इसके लिए तत्कालीन डीएम डॉ। हरिओम को चीफ इलेक्शन कमिश्नर एसवाई कुरैशी ने आड़े हाथों लिया था। क्योंकि सूचना के अभाव में कानपुराइट्स सीधे इलेक्शन कमिश्नर को ही फोन करके राइट टू रिजेक्ट की जानकारी कर रहे थे. 

नये कैंडीडेट्स के साथ होता है दोबारा चुनाव 

राइट टू रिजेक्ट ऑप्शन की एक खास महत्ता और भी है। अगर ‘राइट टू रिजेक्ट’ के तहत डाले गये वोट्स की संख्या विनर कैंडीडेट्स को मिले वोट्स की संख्या से ज्यादा हुई तो वहां री-पोलिंग यानि दोबारा चुनाव करवाये जाने का प्रावधान है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी सीट के लिए विनर कैंडीडेट को 1,00,000 वोट मिलते हैं। और उसी सीट के लिए राइट टू रिजेक्ट के तहत डाले गये वोट्स की संख्या 1,00,001 है तो इसका मतलब ये हुआ कि वहां की जनता को कोई भी वोटर पसंद नहीं है। इसके तहत चुनाव आयोग वहां दोबारा वोटिंग करवाता है। यही नहीं चुनाव में खड़े सभी पुराने कैंडीडेट्स की कैंडीडेचर भी कैंसिल कर दी जाती है। ऐसी कंडीशन में सभी पार्टियों को फ्रेश कैंडीडेट्स मैदान में उतारने पड़ते हैं. 

यह होता है तरीका 

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद अब ईवीएम में ही ‘राइट टू रिजेक्ट’ बटन इंट्रोड्यूस की जा रही है। अब तक कुछ इस तरह यह पॉवर एक्सरसाइज की जाती है. 

- कोई कैंडीडेट पसंद न आने पर वोटर को पोलिंग ऑफिसर से कहना पड़ता है कि मुझे ‘राइट टू रिजेक्ट’ ऑप्शन एक्सरसाइज करना है. 

-  वोटर की डिमांड पर पीठासीन अधिकारी उसे फॉर्म 17-ए मुहैया कराता है. 

- फॉर्म 17-ए में वोटर का नाम-पता, वोट न देने व कैंडीडेट के रिफ्यूजल की वजह लिखी जाती है. 

- आखिर में वोटर को फॉर्म में सिग्नेचर या थंब इंप्रेशन लगाने होंगे. 

- प्रिसाइडिंग ऑफिसर वोटर को इसकी बाकायदा रिसीविंग भी देगा.