RANCHI: अगर आप भी रिम्स में इलाज कराने जा रहे हैं तो डॉक्टर को पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। चूंकि यहां पर डॉक्टरों के पास ना तो एप्रन है और ना ही नेम प्लेट। ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि कौन डॉक्टर है और कौन मरीज का परिजन। इस चक्कर में कई बार डॉक्टरों और मरीजों के परिजनों के बीच बकझक भी हो जाती है। इसके बावजूद सीनियर से लेकर जूनियर तक एप्रन और नेम प्लेट नहीं लगाना चाहते। बताते चलें कि डायरेक्टर ने पिछले दिनों आदेश दिया है, जिसके तहत बिना आईकार्ड के डॉक्टरों और स्टाफ्स को हॉस्पिटल में एंट्री पर रोक लगाने को कहा गया है।

फर्जी डॉक्टर भी ठगते हैं मरीजों को

हॉस्पिटल में इलाज के लिए हर दिन 1500 से अधिक मरीज आते हैं। वहीं इमरजेंसी में 400 मरीजों का इलाज होता है। इसका फायदा उठाकर रिम्स में कई फर्जी डॉक्टर मरीजों को ठग भी लेते हैं। एप्रन और नेम प्लेट नहीं होने से उनकी पहचान करना भी मुश्किल होता है कि कौन असली है और कौन फर्जी।

सिक्योरिटी ने रोका था जूनियर डॉक्टर को

नेम प्लेट और एप्रन नहीं होने के कारण दो दिन पहले सिक्योरिटी ने एक डॉक्टर को इमरजेंसी में जाने पर रोक दिया था। इसके बाद जूनियर डॉक्टर और सिक्योरिटी के बीच जमकर कहासुनी हुई थी। मामला सुपरिंटेंडेंट के पास भी पहुंचा था और उन्होंने बाद में माफी भी मांग ली।

वर्जन

सभी को आईकार्ड और एप्रन पहनने का आदेश है। मरीजों को भी पहचान करने में परेशानी होती है। इस नियम को सख्ती से लागू कराया जाएगा ताकि सबकी आसानी से पहचान हो सके।

डॉ। विवेक कश्यप, सुपरिंटेंडेंट, रिम्स

जूनियर डॉक्टरों को इसे फॉलो करने की जरूरत है, जिनके पास आईकार्ड नहीं है वे डायरेक्टर आफिस से जाकर आईकार्ड बनवा लें। इससे हॉस्पिटल में घूमने वाले फर्जी डॉक्टरों की पहचान होगी। वहीं बाहरी लोगों को भी आने से रोका जा सकेगा।

डॉ। अजीत, जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन