स्लग: रिम्स मेन बिल्डिंग के सभी वार्डो में लगे वाटर प्यूरीफायर खराब, बाहर से पानी ला रहे मरीज

-स्टाफ बनाते हैं बहाना, मरीज कर देते हैं मशीन खराब

-हास्पिटल में हर दिन एडमिट रहते हैं 13-14 सौ मरीज

-पांच फ्लोर पर लगे है पांच बड़े वाटर प्यूरीफायर

RANCHI(2 Oct): रिम्स में मरीज और उनके परिजन पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। लाखों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद मेन बिल्डिंग में लगा एक भी आरओ काम नहीं कर रहा है। ऐसे में मरीजों को हास्पिटल के बाहर से पानी लाकर काम चलाना पड़ रहा है। वहीं कई लोग तो मिनरल वाटर खरीदकर पीने को मजबूर हैं। लेकिन अधिकारियों को मरीजों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं है। चूंकि उनकी सेहत खराब न हो इसके लिए चैंबर में पीने के पानी के लिए आरओ जो लगा है। अब मरीज बाहर का पानी पीकर भले ही बीमार क्यों न हो जाए लेकिन साहब की तबीयत खराब नहीं होनी चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि सरकार रिम्स को सुपरस्पेशियलिटी हास्पिटल बनाने की बात कर रही है पर यहां तो पीने का साफ पानी भी मरीजों को नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे में रिम्स को सुपरस्पेशियलिटी बनाने का सपना कैसे पूरा होगा।

हर फ्लोर पर वाटर प्यूरीफायर

हास्पिटल की मेन बिल्डिंग में ही सभी वार्डो का इनडोर है। जिसमें पेडियाट्रिक, मैटरनिटी वार्ड, न्यूरो, सर्जरी, मेडिसीन और आर्थो वार्ड है। और इन वार्डो में हर वक्त 13-14 सौ मरीज भर्ती रहते हैं। लेकिन हर फ्लोर पर एक-एक प्यूरीफायर होने के बावजूद मरीजों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है।

बाहर का नल ही सहारा

इमरजेंसी के सामने पार्क के पास से ही पानी की पाइपलाइन गई है। जहां पर एक नल लगा हुआ है। सैकड़ों मरीज उसी नल से पानी लेकर जाते हैं। अगर पानी की सप्लाई न हो तो फिर उन्हें पानी के लिए यहां-वहां चक्कर लगाना पड़ता है। वहीं कुछ लोग तो ओपीडी में लगे प्यूरीफायर से पानी लेकर काम चलाते हैं। लेकिन उस प्यूरीफायर का पानी भी पीने लायक नहीं है। चूंकि कई दिनों से उसका फिल्टर न तो साफ किया गया है और न ही उसे बदला गया है।

डॉक्टर भी खरीद रहे पानी

वार्डो में भर्ती मरीजों को देखने के लिए कुछ डॉक्टर तो घरों से पानी लेकर आते हैं। पर जो डॉक्टर हास्पिटल में ही समय बिताते हैं उन्हें भी पानी कैंटीन से मंगवा कर पीना पड़ता है। इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं है।

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हास्पिटल में तो पीने का पानी नहीं है। जब भी पानी की जरूरत पड़ती है तो भागते हुए ओपीडी कांप्लेक्स जाना पड़ता है। कई बार तो उस पानी में भी दुर्गध आता है तो फेंकना पड़ता है। कभी-कभी तो हास्पिटल के बाहर से पानी लेकर आते हैं। लेकिन पानी लेकर आने-जाने में हालत खराब हो जाती है।

मेघनाथ साव

पीने के पानी के लिए मशीन तो लगी है, लेकिन उसमें पानी ही नहीं आता। ऐसे में पानी के लिए ओपीडी वाले नल पर जाना पड़ता है। अब पानी तो पूरी तरह साफ नहीं होता, लेकिन मजबूरी में काम चलाना पड़ता है। कभी-कभी तो उसमें भी पानी नहीं आता तो परेशानी बढ़ जाती है। मशीनों को चालू कर दिया जाता, तो पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता।

पप्पू कुमार

पानी की हर किसी को जरूरत पड़ती है। और ऐसे में मशीन खराब रहने से काफी दिक्कत होती है। जब पानी खत्म होता है तो वार्ड से दौड़ लगानी पड़ती है। अगर वार्ड में ही पीने के पानी की व्यवस्था हो जाती तो राहत मिलती। यहां तो इलाज हो जाए वही बहुत है। वैसे भी सरकारी हास्पिटल में व्यवस्था ठीक नहीं होती है।

सुदेश राम

सरकारी हास्पिटल में पीने के पानी की समस्या है। अगर पानी मिल जाता तो बार-बार हास्पिटल का चक्कर नहीं लगाना पड़ता। कई बार तो पीने के लिए पानी खरीदकर लाते हैं। आखिर हमलोगों की परेशानी किसी को दिखाई क्यों नहीं देती है। साहब लोग को तो अच्छा पानी पीने के लिए मिल जाता है।

मो। सलीम