हरियाणा की 24 वर्षीय साक्षी का कहना है कि रियो में उनकी जीत उनकी ताकत से नहीं बल्कि उनके दिमाग की वजह से है। वह कहती हैं उनके कोच मानते हैं कि उनकी ताकत उनका हथियार हैं जबकि खुद उन्हें अससास होता है कि ताकत से ज्यादा तकनीकि उन्हें जीत दिलाती है। इसके साथ ही वह रियो ओलंपिक को याद करते हुए कहती हैं कि जब वह मुकाबले के लिए मैदान पर थी तब काफी तनाव महसूस कर रहीं थी।
साक्षी को ऐसा लग रहा था कि पूरा देश उन्हें देख रहा है और सबकी उम्मीदें उनसे मेडल की हैं। हालांकि उन्होंने मन में पहले ही ठान लिया था कि वह मेडल जीतकर ही देश वापस जाएंगी। हाल ही में रोहतक विश्वविद्यालय की कुश्ती निदेशक नियुक्त होने वाली साक्षी का कहना है कि उन्हें पदक की अहमियत समझने में समय लगा। रियो से लौटने के बाद दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंचने के बाद उन्हें लगा कि लोग उनकी एक झलक पाने के लिए कितना बेकरार हैं।
हालांकि अब उन्हें अहसास हो गया कि उन्हें मेडल जीतकर कितना नेक काम किया है। आज लोगों के दिल में उनकी एक अलग ही जगह बन गई है। साक्षी कहना है कि वह अब इन दिनों एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल के लिए मेहनत कर रही हैं। शादी के बारे में उनका कहना है उन्होंने यह परिवार पर छोड़ रखा है कि यह उनकी जिम्मेदारी हैं और वहीइसके बारे में फैसला लें।
वहीं कुश्ती के बारे में उनका कहना था कि यहां पर हर एक टूर्नामेंट में चार-पांच किलो वजन कम करना होता है। खाने-पीने पर विशेष ध्यान देना होता है। उनका कहना है कि इसके अलावा पावर ट्रेनिंग, वेट ट्रेनिंग, स्पीड ट्रेनिंग और मैट वर्क पर काफी मेहनत से काम करना होता है। साक्षी के मुताबिक मैदान पर तरह के प्रतिद्वंदी से निपटने के लिए तैयार होना होता है। इसमें ताकत के साथ दिमाग का भी काफी इस्तेमाल करना बेहद जरूरी होता है।
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