डिवाइडर पर रखें नजर नहीं तो टूट जाएगी कमर

शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने और शहर की सड़कों को खूबसूरत दिखाने के लिए हर शहर में डिवाइडर्स का अहम रोल होता है। ब्लैक-यलो कलर में रंगे ये डिवाइडर्स पब्लिक की आंखों को न सिर्फ सुकून देते हैं बल्कि सड़कों पर होने वाले हादसों में भी कमी लाते हैं लेकिन अगर हम आपसे ये कहें कि अपने शहर की सड़कों पर बने डिवाइडर्स अपने इस रोल से हटकर पब्लिक को सुकून नहीं परेशानी दे रहें है तो। सुनने में ये अजीब जरूर लग रहा होगा लेकिन ये सच है। इसके लिए आपको सड़क पर चलते वक्त ध्यान से इन्हें देखकर चलना पड़ेगा नहीं तो एक्सिडेंट होने से कोई नहीं रोक सकता। इनके रखरखाव के लिए जिम्मेदार विभाग इनकी कोई खोज खबर ही नहीं ले रहे हैं। इसके चलते डिवाइडर्स का हाल बुरा हो चुका है।

इनका क्या है काम?

ये बड़ा सवाल है कि आखिर अपने शहर में डिवाइडर्स का क्या काम है? शहर के अलग-अलग इलाकों में लगभग 80 ऐसे डिवाइडर्स है जो शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के बनाए गए हैं लेकिन प्रॉपर्ली मेनटेन न होने के चलते इनका हाल बुरा हो रखा है। सिगरा, मलदहिया, लंका, विशेश्वरगंज, कबीरचौरा, गोदौलिया, लक्सा, मैदागिन समेत शहर के कई अन्य इलाकों में बने डिवाइडर्स बुरी तरह से डैमेज पड़े हैं। कुछ का हाल तो बहुत ही बुरा हो रखा है। रात के अंधेरे में बड़ी गाडिय़ों के लडऩे के चलते डिवाइडर्स टूट जाने से उसका मलबा रोड पर फैला हुआ है जो ट्रैफिक को डिस्टर्ब किए हुए है।

बनते हैं हादसे का सबब

वैसे तो डिवाइडर्स को हादसों को रोकने के लिए बनाया जाता है लेकिन अपने शहर के अंधे डिवाइडर्स हादसों को ही न्यौता दे रहे हैं। कुछ ऐसे डिवाइडर्स हैं जो बनते हैं और फिर टूट भी जाते हैं। इनमे नदेसर, मिंट हाउस, कैंट, लहरतारा और लंका के डिवाइडर्स शामिल हैं। इन डिवाइडर्स के चलते हर रोज कोई न कोई एक्सिडेंट का शिकार होता है। कुछ जगहों पर रोड से सिर्फ कुछ इंच ऊंचे बने डिवाइडर्स ड्राइवर्स को अक्सर दिखते ही नहीं हैं, इसके चलते हादसे होते हैं। कचहरी पर भी यही हालत है। इस पर से फोर व्हीलर तक निकल जाती हैं। टू-थ्री व्हीलर वालों की तो शामत रहती है। सारनाथ, आशापुर, नदेसर, तेलियाबाग, सिगरा और फातमान रोड पर डिवाइडर्स इतने ज्यादा टूट फूट गए हैं कि ये डिवाइडर्स कम कोई पुरातत्व के अवशेष ज्यादा समझ में आते हैं.  वरुणापुल, कबीरचौरा पर मौजूद रोड डिवाइडर्स भी बेहद डैंजरस कंडीशन में हैं। आए दिन लोग इनसे टकराकर अपने हाथ-पैर तुड़वाते हैं। विश्वेश्वरगंज और मैदागिन में बेहद नीचे डिवाइडर की वजह से आए दिन एक्सिडेंट्स होते हैं।

खोदाई ने बर्बाद कर दिए डिवाइडर्स

वैसे तो अपने शहर के डिवाइडर्स का पहले से ही बुरा हाल था। रही सही कसर इन दिनों चल रही खोदाई ने पूरी कर दी है। खोदाई के दौरान सड़कों को काट रही मशीनें डिवाइडर्स को भी बुरी तरह से डैमेज कर रही हैं। हालांकि खोदाई के बाद कार्यदायी संस्था सड़कों का निर्माण तो करवा रही है लेकिन डिवाइडर्स को उनके टूटे फूटे हाल पर ही छोड़ दे रही है। ये हाल सिटी के तेलियाबाग, लंका, सिगरा, चौकाघाट, पाण्डेयपुर समेत हर उस इलाके का है जहां या तो खोदाई चल रही है या फिर खोदाई हो चुकी है।

डिवाइडर्स के नाम पर कमाते हैं लेकिन

डिवाइडर्स पर वैसे तो सिर्फ रिफलेक्टर लाइट्स लगाने का ही नियम है लेकिन शहर के कुछ विभागों ने डिवाइडर्स को कमाने का जरिया बना रखा है। इनमे नगर निगम मेन है। निगम डिवाइडर्स पर हरियाली बढ़ाने के नाम पर पेड़ और ट्री गार्ड तो लगाता ही है साथ में इन ट्री गाड्र्स पर विज्ञापनों के जरिये मोटी रकम भी कमाता है। सिर्फ इतना ही नहीं सिटी के कई डिवाइडर्स के बीचों बीच निगम ने बड़े एडवरटाजिंग बोड्र्स भी लगा रखे हैं। जिन पर विज्ञापन के नाम पर निगम अच्छी खासी रकम वसूलता है। इसके बावजूद इन डिवाइडर्स से कमाई करने के बाद भी इनकी देखरेख की फ्रिक निगम को भी नहीं है। हालात ये हैं कि प्रॉपर पानी न मिलने और धूल, मिट्टी और पॉल्यूशन के चलते इन पर लगे पौधे तो कब का गायब हो चुके हैं जबकि ट्री गार्ड डैमेज होने के चलते इन डिवाइडर्स के पास से गुजरने वाले लोगों को चोटिल कर रहा है।

सफाई में भी फेल

डिवाइडर्स बनने के बाद शहर के दो पार्ट में होने से बहुत सी सहूलियतें होती हैं। ट्रैफिक स्मूद होता है तो सड़क दो पार्ट में होने से इसकी सफाई में भी आसानी होती है लेकिन शहर के अधिकांश डिवाइडर्स सफाई कम और गंदगी का सबब ज्यादा बने हुए हैं। सिगरा, मलदहिया, पाण्डेयपुर, कचहरी समेत कई इलाकों में डिवाइडर्स के दोनों छोर पर जमी धूल की डेढ से दो फीट की मोटी परत शहर की सुंदरता को तो बिगाड़ ही रही है साथ में पब्लिक का बीमारियां भी बांट रही है। ये हाल तब है जब निगम ने पिछले दिनों सात करोड़ रुपये खर्च कर डस्ट साफ करने के लिए एक स्पेशल सफाई मशीन परचेज की है। ये मशीन जब नई थी तब तो सड़क के बीचो-बीच बने डिवाइडर्स के किनारों पर जमी धूल को हटाती थी लेकिन ज्यादा डीजल की खपत के चलते अब ये मशीन निगम के स्टोर रूम में खड़ी धूल फांक रही है और डिवाइडर्स के दोनों छोर से धूल हटाने का काम निगम कर्मी कभी कभार बेलचा और झाडू से करते दिख जाते हैं।

नियम मानें तब न

डिवाइडर्स सड़क पर बनाने को लेकर कुछ कायदे और कानून हैं लेकिन अपने शहर में इन्हें फॉलो नहीं किया जाता, इसके चलते डिवाइडर्स का बुरा हाल है। इस बारे में फेमस आर्किटेक्ट आरसी जैन से हमने बात की तो उन्होंने डिवाइडर्स को तैयार करने के कुछ मानक बताये हैं।

- डिवाइडर्स में एकरूपता होनी चाहिए।

- सड़क से हमेशा डिवाइडर की हाइट कम से कम डेढ़ से दो फिट होनी चाहिए।

- डिवाइडर रोड से इतना ऊंचा होना चाहिए कि कोई पैर ऊपर उठाकर इस पर चढ़ न सके।

- डिवाइडर्स में ज्यादा कट नहीं होने चाहिए।

- डिवाइडर्स पर रिफलेक्ट लाइट्स लगी होनी चाहिए।

- डिवाइडर्स का कलर यलो और ब्लैक होना चाहिए ताकि गाड़ी चलाने वालों को कन्फ्यूजन न हो।

- डिवाइडर्स के दोनों छोर पर रेडियम लगा होना चाहिए ताकि अंधेरे में ये दूर से ही चमक कर गाड़ी चलाने वालों को संकेत दे सके।

- हमेशा रोड निर्माण के बाद डिवाइडर्स का निर्माण होना चाहिए।

- क्योंकि रोड बनने के बाद डिवाइडर्स की हाइट कम हो जाती है।

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डिवाइडर्स को टाइम टू टाइम मेनटेन किया जाता है। इसके दोनों छोर पर जमी धूल भी साफ होती है। निगम डिवाइडर्स की प्रॉपर केयर करता है।

आरपी सिंह, नगर आयुक्त

शहर में डिवाइडर्स अक्सर हादसे का सबब बनते हैं। वजह है इनका दिखाई ही न देना। कई डिवाइडर्स रात के अंधेरे में दिखते ही नहीं है और कुछ तो ऐसे हैं तो सड़क के साथ ही मिल गए हैं।

जीएन खन्ना, एसपी ट्रैफिक