- आरओ पानी का दावा करने वाले शहर में करीब 250 वॉटर प्लांट

- 60 प्रतिशत पानी हो जाता है वेस्ट, दो साल पहले संख्या थी करीब 125

GORAKHPUR: हाथों में पानी की बोतल, घर पर आरओ या जार का पानी खरीद कर पीना जो एक समय रईस लोगों की निशानी होती थी, आज बेहद सामान्य बात हो गई है। ऐसा इसलिए नहीं कि शहर में अमीरों की संख्या बढ़ गई है। बल्कि इसका कारण है कि ट्रेडिशनल तरीकों से पानी पीने को बीमारियों को दावत देना बताया जा रहा है। इंसेफेलाइटिस, पेट के रोग, उल्टी, दस्त आदि बीमारियों से बचने के लिए साफ पानी पीने की सलाह देने वाले मैसेज खासकर गर्मी के मौसम में सोशल मीडिया पर वायरल होने लगते हैं। लगातार इन मैसेजेज और तमाम विज्ञापनों के एक्सपोजर का नतीजा है कि लोग भी इन ऑप्शंस को तेजी से डेली लाइफ का हिस्सा बनाते आए हैं। 2010 में शहर में जहां दर्जनभर वॉटर प्लांट लगे थे, आज उनकी संख्या बढ़कर 250 हो चुकी है। वहीं, दूसरी तरफ हैंडपंप, इंडिया मार्का पंप बिना रखरखाव खराब होते जा रहे हैं।

सबको चाहिए आरओ का पानी

पानी से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए घर-घर में लोगों ने आरओ मशीन लगवा रहे हैं। वहीं, जिनकी इनकम कम है वह वॉटर प्लांट से जार के जरिए पानी मंगवा रहे हैं, तो कुछ लोग सस्ते पानी के चक्कर में एक से दो किमी तक खुद ही वॉटर प्लांट जाकर पानी लेकर आ रहे हैं। घरों में तो साफ पानी के लिए ट्रेडिशनल चीजों की उपेक्षा और साफ पानी के लिए लोगों की सक्रियता देखी ही जा रही है। सड़क पर चाट, चाऊमीन सहित रेहड़ी-खोमचे वाले भी कस्टमर्स की डिमांड पर आरओ प्लांट का पानी रखने लगे हैं।

और बढ़ते गए वॉटर प्लांट

परचून की दुकान की तरह ही इन दिनों गोरखपुर में वॉटर प्लांट खुल चुके हैं। जो आसपास के एरिया में गाडि़यों के जरिए पानी की सप्लाई का काम करते हुए भी मिल जाएंगे। वहीं इन्हें सप्लाई करने के लिए नौसड़, एकला, महाबीर छपरा, खजनी, रुस्तमपुर, असुरन, मोहद्दीपुर, लच्छीपुर, मेडिकल कॉलेज और गीडा के आसपास करीब 250 से ज्यादा आरओ वॉटर प्लांट इस समय काम कर रहे हैं। इनसे पानी लेकर पैकेट और बोतलों में बिक्री करने वालों की संख्या 1500 तक पहुंच गई है। जहां हर प्लांट से करीब 400-500 गैलन वॉटर सप्लाई की जा रही है। पानी का कारोबार पांच साल पहले जहां सिर्फ दुकानों तक ही सीमित था, वहीं इन दिनों करीब हर दूसरे घर में वॉटर जार की सप्लाई हो रही है।

लगन में डिमांड हो जाती है दोगनी

गर्मी के दिनों में आरओ वॉटर की डिमांड तो बढ़ ही जाती है लेकिन लगन के सीजन में और भी काफी बढ़ गई है। आम दिनों में जहां कारोबारी 25 हजार गैलन सप्लाई करते हैं, वहीं लगन सीजन में बढ़ कर ये करीब 50 हजार गैलन के आसपास पहुंच जाती है। ठंड आने पर भी इसकी डिमांड में कोई खास कमी नहीं आती। ऐसे जहां डेली 15 हजार गैलन की डिमांड रहती है, वहीं ठंड में घट कर करीब 12 हजार के आसपास पहुंच जाती है, जबकि पांच साल पहले पानी की डिमांड नॉर्मली 100 से 150 गैलन रहती थी।

आंकड़ें बता रहे सच्चाई

साल - प्लांट डेली डिमांड (गैलन)

2009 - 1 से 2 50 से 60

2010 - 5 से 10 100 से 150

2011 - 20 से 25 250 से 300

2012 - 40 से 50 2 से 3 हजार

2013 - 70 से 80 8 से 10 हजार

2014 - 100-105 12 से 15 हजार

2015 - 125-140 15 हजार से अधिक

2017 - 250 से ज्यादा 25 हजार से अधिक

बॉक्स

60 परसेंट पानी होता है वेस्ट

100 लीटर पानी को आरओ लेवल पर प्योर करने के लिए 60 लीटर पानी वेस्ट हो जाता है। एमएमएमयूटी के प्रोफेसर डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो आरओ सिस्टम के जरिए पानी शुद्ध करने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रॉसेस अपनाई जाती है। इसके तहत पानी शुद्ध करने पर 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी ही प्योर हो पाता है, जबकि 60 लीटर पानी वेस्ट हो जाता है। इस तरह अगर शहर में डेली एक लाख लीटर पानी की खपत हो रही है, तो उस हिसाब से डेढ़ लाख लीटर पानी बर्बाद हो जा रहा है। इतनी बड़ी मात्रा में शहर में डेली हो रही पानी की बर्बादी को रोकने के लिए कोई उपयोगी कदम नहीं उठाया गया, तो भविष्य में पानी की जबर्दस्त किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

बचा सकते हैं वेस्टेज

आरओ प्लांट्स में वेस्ट हो रहे 60 प्रतिशत पानी को सतर्कता बरत कर बचाया जा सकता है। इसके लिए आम लोगों के साथ आरओ प्लांट ओनर्स को भी अवेयर होने की जरूरत है। डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो जो 60 प्रतिशत पानी वेस्ट हो रहा है, उसे किसी जगह इकट्ठा कर रीसाइकिल करें तो 24 प्रतिशत और तीसरी बार रिसाइकल कर 16 प्रतिशत वेस्टेज पर लाया जा सकता है। उसके बाद बचे 16 प्रतिशत पानी को घर की सफाई, कार धोने, पौधों की सिंचाई, नहाने या दूसरे डेली यूज के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

वर्जन

आरओ सिस्टम के जरिए पानी शुद्ध करने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रॉसेस अपनाई जाती है। इसके तहत पानी शुद्ध करने पर 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी ही प्योर हो पाता है, जबकि 60 लीटर पानी वेस्ट हो जाता है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, प्रोफेसर, एमएमएमयूटी