--बेटियों की पसंद

मिसाल---50 की उम्र में सेवन समिट्स को किया फतह

RANCHI (12 Apr): झारखंड का नाम देश-दुनिया में कई कारणों से जाना जाता है, लेकिन पर्वतारोहियों में प्रेमलता अग्रवाल के कारण भी आजकल झारखंड जाना जाता है। प्रेमलता अग्रवाल आज अपने हौंसले की बदौलत हजारों महिलाओं की रोलमॉडल बन चुकी हैं। शादी और बच्चे पैदा करने के बाद कैसे एक महिला ने पर्वतारोही बनी, यह अपने आप में एक मिसाल है। जमशेदपुर की भ्ख् वर्षीय प्रेमलता अग्रवाल किसी सामान्य भारतीय गृहिणी जैसी ही हैं, लेकिन उनके कारनामे उन्हें औरों से अलग बना देते हैं। प्रेमलता आज पर्वतारोहण की दुनिया में एक जाना-माना नाम हैं और उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

कर दिखाया कारनामा

साल ख्0क्फ् में प्रेमलता अग्रवाल ने भ्0 वर्ष की उम्र में वह कारनामा कर दिखाया, जो हर पर्वतारोही का सबसे बड़ा सपना होता है। ख्फ् मई ख्0क्फ् को प्रेमलता ने 'सेवन समिट्स', यानी कि दुनिया के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह किया और वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने उत्तर अमेरिका महाद्वीप की अलास्का रेंज के माउंट मैककिनले पर चढ़ाई कर यह रिकॉर्ड अपने नाम किया। दरअसल, सात महाद्वीपों की 7 सबसे ऊंची पर्वत चोटियों को 'सेवन समिट्स' कहा जाता है, जिसमें किलिमंजारो, विन्सन मैसिफ, कॉसक्यूजको, कार्सटेन्सज पिरामिड, एवरेस्ट, एलब्रुस और माउंट मैककिनले शामिल है।

माउंट एवरेस्ट फतह

प्रेमलता अग्रवाल ख्0 मई ख्0क्क् को भी देश और दुनिया को चकित कर चुकी हैं, जब उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे उम्रदराज भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त किया था। उन्होंने यह कारनामा ब्8 साल की उम्र में किया। ऐसा नहीं है कि प्रेमलता ने यह सफलता रातों-रात हासिल की हो। इसके लिए उन्हें कई स्तरों पर खुद को साबित करना पड़ा और कई लिटमस टेस्ट पास करने पड़े।

दार्जिलिंग से सफर की शुरुआत

दार्जिलिंग के छोटे से कस्बे सुखीपोकरी में जन्मी प्रेमलता का विवाह क्98क् में जमशेदपुर के रहनेवाले एक मारवाड़ी परिवार में हुआ। शाम के समय वे अपनी दो बेटियों को जेआरडी खेल परिसर में लेकर जातीं और वहीं योग सीखतीं। इस दौरान उन्होंने मशहूर पर्वतारोही बछेंद्री पाल के नेतृत्व में होनेवाली 'डालमा हिल्स वॉकिंग कॉम्पटीशन' में भाग लिया और तीसरा स्थान प्राप्त किया। ईनाम लेते समय उन्होंने बछेंद्री पाल से बेटी को इस एडवेंचर स्पो‌र्ट्स में डालने की राय ली तो उन्होंने उल्टा प्रेमलता को ही पर्वतारोहण करने का प्रस्ताव दिया। इस तरह क्999 में फ्म् साल की उम्र में एक गृहिणी के पर्वतारोहण करियर की नींव पड़ी। सबसे पहले वे अपनी बेटी के साथ उत्तरकाशी पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स करने गईं और क्फ् हजार फुट की हिमालय पहाड़ी श्रृंखला पर चढ़कर न केवल 'ए' ग्रेड हासिल किया, बल्कि 'बेस्ट ट्रेनी' का खिताब भी अपने नाम किया। प्रेमलता अग्रवाल कहती हैं कि हूं तो मैं दार्जिलिंग की। मेरा बचपन पहाड़ों पर ही बीता था औ मुझे पहाड़ों पर चलने की आदत थी, लेकिन कभी पर्वतारोहण करने के बारे में नहीं सोचा था। ख्00ब् तक प्रेमलता बछेंद्री पाल के साथ लद्दाख और नेपाल में कई पर्वतारोही अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा कर चुकी थीं। अब उनके सामने अगला लक्ष्य था माउंट एवरेस्ट को फतह करना, लेकिन परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। ख्0क्0 आते-आते उनकी दोनों बेटियों का विवाह हो गया और अब उन्होंने अपने लक्ष्य पर फिर से ध्यान केंद्रित किया। प्रेमलता अग्रवाल बताती हैं कि इस म् वषरें में काफी कुछ बदल चुका था और मेरी उम्र भी लगातार बढ़ रही थी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पति के सहयोग और प्रेरणा से दिसंबर में सिक्किम ट्रेनिंग के लिए गईं और जीतोड़ मेहनत की। मैंने एवरेस्ट पर जाने के लिए जरूरी स्टेमिना पाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग की। प्रेमलता कहती हैं कि मेरी मेहनत ख्0 मई ख्0क्क् सफल हुई और सुबह 9.फ्0 पर मैंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया। मैंने विश्व के अतुलनीय इस शिखर पर लगभग ख्0 मिनट बिताए और अपने साथ लाए कैमरे से कुछ फोटो भी खींची। वापसी में काठमांडू में मेरे पति और बेटियां मुझे लेने आईं और यह सफलता मेरी अकेली की नहीं है। इसमें मेरे परिवार का पूरा सहयोग है। प्रेमलता ने अपने साहस और दृढ़ता से दुनिया को दिखा दिया कि कुछ भी हासिल करने के लिए उम्र का कोई बंधन मायने नहीं रखता।