वर्ष: 2017-18

पुरुषों ने कराई नसबंदी: 445

महिलाओं ने कराई नसबंदी: 13757

पुरुषों का प्रतिशत: 16

महिलाओं का प्रतिशत: 53

-स्वास्थ्य विभाग का अनोखा इनीशिएटिव

-एनएसवी कराने वाले दूसरे पुरुषों को करेंगे प्रेरित

-महिलाओं के मुकाबले नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या काफी कम

ALLAHABAD: पुरुषों में नसबंदी को लेकर काफी भ्रांतियां हैं। लेकिन, इस बात को दूसरों तक पहुंचाने और उन्हें प्रेरित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने अनोखा इनीशिएटिव लिया है। नसबंदी करा चुके पुरुष अब दूसरों के सामने रोल मॉडल की तरह पेश किए जाएंगे। उनकी मदद से सरकार परिवार नियोजन को बढ़ावा देगी।

शरमाने की जरूरत नहीं

पिछले कुछ सालों से परिवार नियोजन की तमाम योजनाओं में सरकार लगातार फेल साबित होती आ रही है। महिलाएं तो बड़ी संख्या में नसबंदी कराती हैं लेकिन पुरुष इससे पीछे हट जाते हैं। नतीजा जनसंख्या पर अपेक्षित लगाम नहीं लग पा रही है। ऐसे में नसबंदी कराने वाले लोगों को गांव की पंचायत या मीटिंग्स के जरिए शहरी इलाकों में दूसरों से मुखातिब किया जाएगा। जिनके परिवार में दो से तीन बच्चे हैं उन्हें ऐसी जगहों पर खासतौर से बुलाया जाएगा। यहां रोल मॉडल के तौर पर यह लोग नसबंदी के फायदे और महत्व से अवगत कराएंगे।

इसलिए पड़ी है जरूरत

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जिले में पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में महज 15 फीसदी पुरुषों ने नसबंदी कराई। जबकि सेट टारगेट की अपेक्षा महिलाएं 53 फीसदी के आंकड़े तक पहुंच गई। यही कारण है कि इस साल से सरकार ने टारगेट खत्म कर दिए।

क्या है एनएसवी

एनएसवी को नॉन स्केलपेल वैसेक्टामी कहते हैं। पुरुषों में होने वाली इस नसबंदी में बिना किसी चीर-फाड़ फेलोपिन ट्यूब को काट दिया जाता है। इसके बाद गर्भ ठहरने की संभावना नगण्य हो जाती है। यह प्रक्रिया सिर्फ 20 मिनट में पूरी हो जाती है और इसमें पुरुष उसी दिन घर जा सकता है। डॉक्टर्स की मानें तो एनएसवी कराने के बाद मर्दानगी में कोई कमी नहीं आती है।

यह एक बड़ा कदम है। हम नसबंदी कराने वाले पुरुषों को लोगों के बीच ले जाकर भ्रांति दूर करेंगे और उन्हें इसके लिए प्रेरित भी करेंगे। ऐसे जागरुक और डिवोटेड लोगों को रोल मॉडल के रूप में पेश किया जाएगा।

-वीके सिंह, डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर, एनएचएम

नसबंदी कराने वालों में महिलाएं और अधिक पुरुष नाममात्र हैं। ऐसे में परिवार नियोजन का दायित्व और उददेश्य पूरा नहीं हो रहा है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग ने यह अनोखा कदम उठाने का फैसला किया है।

-गिरिजाशंकर बाजपेई, सीएमओ, इलाहाबाद