-आरटीआई के जरिए थाने से जमानत और पुलिस लाइन स्थित आवास के बारे में पूछे थे सवाल

आगरा। पुलिस सिर्फ सवाल करना जानती है लोगों के सवालों का जवाब नहीं देती। यदि जवाब देना जानती तो सूचना का अधिकार 2005 के तहत मांगी गई सूचनाओं का जवाब भी जरूर भेजती। पुलिस ने जवाब न देना पड़े इसलिए सूचना मांगने वाले को ही उल्टी पट्टी पढ़ा दी।

किन धाराओं में होती है बेल

सूचना अधिकार के अंतर्गत न्यू शाहगंज कॉलोनी निवासी रवि मोहन कौशिक ने आवेदन किया था। पुलिस संबधी इस आरटीआई आवेदन में पूछा गया कि थाने से जमानत किन-किन धाराओं में दी जाती है। जमानत देने का अधिकार थाने पर किस अधिकारी के पास होता है। इसके अलावा यह भी जानकारी मांगी गई थी कि 1 जनवरी 2014 से 31 जुलाई 2014 तक थानों से कितने व्यक्तियों को और किन-किन धाराओं में जमानत दी गई हैं।

कितने वर्ष पूर्व हुआ था निर्माण

सूचना अधिकार आवेदन में जनसूचना अधिकारी से यह भी पूछा गया था कि पुलिस लाइन स्थित जो सरकारी आवास हैं, उनका निर्माण कितने वर्ष पूर्व हुआ था? लाइन के साथ ही साथ थानों में स्थित सरकारी आवासों का भौतिक सत्यापन कराया गया या नहीं। आवास रहने लायक हैं या नहीं। वित्तीय वर्ष में कितना खर्च किया जाता है? आवासों का निर्माण किस एजेंसी द्वारा किया जाता है?

किसकी होगी जिम्मेदारी?

सूचना में यह भी मांगा गया कि अगर किसी प्रकार की कोई दुर्घटना घटती है तो उसकी जिम्मेदारी विभाग के किस अधिकारी की होगी? पुलिस विभाग के सरकारी वाहनों को लेकर सूचना मांगी गई। पूछा गया कि पुलिस विभाग के सभी सरकारी वाहनों का बीमा होता है, अगर नहीं होता तो उसका क्या कारण है? वाहन से घटना होने पर किसकी जिम्मेदारी होती है?

टरका दिया सूचना के नाम पर

पुलिस महकमे के सूचना अधिकारी के नाम से लगाए गए आवेदन का जो जवाब मिला वह अजीबो गरीब है। जबाव में प्रभारी सूचना अधिकारी ने प्रार्थना पत्र क्वेरी की श्रेणी में आता है। इस कारण सूचना अधिकारी अधिनियम के तहत सूचना नहीं दी जा सकती है। कहकर मामले को टाल दिया।

सप्ताह भर के भीतर ही डाक

एक्ट के अनुसार आवेदन करने के तीस दिनों के भीतर आवेदनकर्ता को जानकारी उपलब्ध कराने का प्राविधान है। पुलिस ने इस आवेदन को निपटाने में तीस दिन का वक्त नहीं लगाया। आवेदन 29 सितम्बर को लगाया गया था और जबाव 4 अक्टूबर को ही दे दिया गया।