एसओजी कर रही थी जांच

पुलिस को लगातार शिकायत मिल रही थी कि अन्य स्टेट से चोरी हुए वाहनों का फर्जी तरीके से दून स्थित आरटीओ कार्यालय में रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है, जिसके बाद नंबर एक के इन वाहनों को खरीदा बेचा जा रहा है। एसएसपी ने मामले की जांच एसओजी को सौंपी थी। सैटरडे सुबह एसओजी को सूचना मिली की फर्जी तरीके से आरटीओ देहरादून में पंजीकृत दो वाहन मसूरी से देहरादून की तरफ आ रहे हैं, जिस पर एसओजी और रायपुर पुलिस की संयुक्त टीम ने कोठालगेट पर वाहनों की चेकिंग शुरू कर दी।

जाइलो का हो चुका था रजिस्ट्रेशन

प्रेस कांफ्रेस के दौरान एसएसपी केवल खुराना ने बताया कि कोठालगेट पर सफेद रंग की जाइलो कार को चेकिंग के लिए रोका गया। ड्राइवर ने आरसी दिखाई, जिसमें गाड़ी का नंबर यूके 07 बीएस 7486 लिखा था,जबकि पूर्व में गाड़ी एचआर 63 एन 5425 नंबर से हरियाणा के झझर में पंजीकृत होना दर्शाया गया था। पुलिस द्वारा इस सिरीज के नंबर के हरियाणा में पंजीकृत होने की बात पता की गई तो हरियाणा में इस सिरीज के नंबर कभी जारी न होने की बात सामने आई। पुलिस ने वाहन चालक इश्तकार निवासी बिजनौर और उसके साथ बैठे अन्य व्यक्ति मोहम्मद मेहरवान निवासी कबीर नगर, दिल्ली को अरेस्ट कर लिया।

टाटा सफारी का होना था रजिस्ट्रेशन

एसएसपी ने बताया कि दोनों आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर रही थी। इस बीच मसूरी की तरफ से आ रही टाटा सफारी कार अचानक कोठालगेट के पास आकर रुकी, जिसे सड़क किनारे खड़ा कर चालक जंगल की तरफ भाग निकला। इश्तकार और मोहम्मद मेहरबान ने बताया कि टाटा सफारी में उनका साथी तुर्की उर्फ बब्बन पुत्र अमीनुद्दीन निवासी बिजनौर था, जो दिल्ली से चुराई गई कार एएस-23 जी 6666 को फर्जी कागजात के सहारे आरटीओ कार्यालय देहरादून में पंजीकृत करने ले जा रहा था। एसएसपी ने बताया कि आरटीओ में फर्जी तरीके से गाडिय़ों को पंजीकृत करवाने में एजेंट महमूद निवासी रक्षा विहार, थाना रायपुर व देवकी नंदन भाटिया निवासी आदर्श नगर, थाना कैंट का नाम सामने आया, जिन्हें अरेस्ट कर लिया गया है। साथ ही तुर्की उर्फ बब्बन की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैैं।

ऐसा होता है फर्जी रजिस्ट्रेशन

इस गिरोह का सरगना तुर्की उर्फ बब्बन है। जो चोरी के वाहन की डुप्लीकेट आरसी, इंश्योरेंस, सेल लेटर तैयार  करवाता था। इन कागजों को दून स्थित आरटीओ ऑफिस में एजेंट महमूद और देवकी नंदन भाटिया को दिया जाता था, जो सेटिंग-गेटिंग कर गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन करवा देते थे। उत्तराखंड सीरीज का नंबर मिलते ही चोरी के इन वाहनों को ऊंची कीमत पर बेच दिया जाता था।