-क्त्रञ्जह्र में फाइनल टेस्ट ड्राइविंग के लिए अब तक नहीं बना कोई मानक

- कार टेस्ट ड्राइव के लिए फीस तो होती है जमा लेकिन टेस्ट के लिए न है ट्रैक न ही विभाग के पास कोई गाड़ी

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केस-1

वरुणापुल के रहने वाले प्रियोदित अपना परमानेंट ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने आरटीओ ऑफिस पहुंचे थे। कार और टू व्हीलर के लिए उन्होंने एक हजार की फीस जमा कर दी। जिसमे 600 रुपये टेस्ट राइड के थे लेकिन विभाग ने उनका टेस्ट नहीं किया और पूछने पर जवाब मिला अपनी कार लाइये तो टेस्ट होगा।

केस-2

शिवपुर के रहने वाले संतोष यादव अपनी वाइफ का डीएल बनवाने सांस्कृतिक संकुल स्थित आरटीओ ऑफिस पहुंचे थे। परमानेंट लाइसेंस बनाने के नाम पर उन्होंने फीस तो पूरी भर दी लेकिन डिपार्टमेंट की ओर से कहा गया कि खुद की कार लेकर आइये और तो और टेस्ट राइड सड़क पर ही देने को कहा गया, जबकि नियम अलग से टेस्ट ट्रैक पर टेस्टिंग का है।

ये दो केस बताने के लिए काफी हैं कि आरटीओ ऑफिस में किस तरह से मनमानी जारी है। नियम कानून ताक पर रखकर पब्लिक से लाइसेंस फीस के नाम पर रुपये तो पूरे वसूले जा रहे हैं लेकिन मानक के हिसाब से चीजें हो नहीं रही हैं। जिसका खामियाजा पब्लिक को भुगतना पड़ रहा है।

यहां सब कुछ है बेमानी

ड्राइविंग लाइसेंस का फाइनल सर्टिफिकेट लेकर निकले अभ्यर्थियों से सेफ्टी ड्राइविंग की उम्मीद करना बेमानी होगी। क्योंकि रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (आरटीओ) में अब तक टेस्ट ड्राइविंग का कोई मानक ही नहीं बना। प्रोफेशनल ड्राइवर्स को छोड़ दें तो अभ्यर्थियों को सिर्फ अंडर टेबल सिस्टम से फाइनल ड्राइविंग टेस्ट में पास कर दिया जाता है। एक सर्वे कम्पनी के आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल रोड एक्सिडेंट्स के 08 परसेंट केसेज में ड्राइवर्स का अकुशल होना पाया जाता है।

नहीं है कोई ड्राइविंग ट्रैक और न है कार

रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस के पास अब तक अपना कोई ड्राइविंग ट्रैक या टेस्ट देने के लिए कार तक नहीं है। यहां सिर्फ कागजों पर ही फाइनल टेस्ट की गाडि़यां दौड़ाई जाती हैं। डिपार्टमेंट अपने आसपास के इलाकों में अभ्यर्थियों से गाड़ी चलवाकर उनका टेस्ट लेता है। इसके लिए अभ्यर्थियों की ही गाड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि डिपार्टमेंट के पास इस टेस्ट के लिए अपनी गाड़ी ही नहीं है।

ट्रेनिंग स्कूल की ले सकते हैं सेवा

ट्रांसपोर्ट मैनुअल के अनुसार डिपार्टमेंट के पास अपना ड्राइविंग ट्रैक न होने की दशा में किसी ट्रेनिंग स्कूल से सेवा ली जा सकती है। अभ्यर्थियों का लर्निग पीरियड पूरा होने के बाद फाइनल सर्टिफिकेट जारी करने से पहले ट्रेनिंग स्कूल उनकी दक्षता परख सकते हैं। इसके अलावा डिपार्टमेंट किसी ट्रैफिक फ्री जोन या फिर बड़े मैदान में अभ्यर्थियों से गाड़ी चलवाकर उसे फाइनल सर्टिफिकेट जारी कर सकता है।

लैंड की तलाश में लटका है प्लान

पिछले गवर्नमेंट में टेस्ट ड्राइविंग के लिए ड्राइविंग ट्रैक बनाने की घोषणा हुई थी। इसके लिए डिपार्टमेंट को ऑफिस के नियरेस्ट लोकेशन पर लगभग पांच एकड़ भूमि की आवश्यकता है। फिलहाल लैंड के अभी तक न मिलने से प्लान ठंडे बस्ते में है।

डीएल के फाइनल टेस्ट के लिए ये है नियम

-विभाग का अपना ड्राइविंग ट्रैक हो

-टेस्टिंग के लिए अभ्यर्थी को आरटीओ से मिलती है गाड़ी

- अभ्यर्थी के साथ होते हैं एक्सपर्ट

- ट्रैफिक फ्री जोन ट्रैक

- लो विजुबिलिटी में नहीं लेते टेस्ट

- टेस्टिंग वैन में फ‌र्स्ट एड की सुविधा होनी चाहिए

हाईलाइटर

15

सौ रुपये फोर व्हीलर के परमानेंट लाइसेंस का सुविधा शुल्क

05

सौ रुपये थ्री व्हीलर के लिए

02

हजार रुपये कमर्शियल गाडि़यों के लिए सुविधा शुल्क

ड्राइविंग ट्रैक नहीं है फिर भी अभ्यर्थियों से रोड साइड गाड़ी चलवाकर उनका टेस्ट लिया जाता है। वैसे भी फ‌र्स्ट स्टेप में ही उनकी परख हो जाती है।

अमित राजन राय, एआरटीओ प्रशासन