-सिटी में विदाउट गियर वाले डीएल पर हैवी इंजन बाइक से फर्राटे भर रहे स्टूडेंट्स

-स्कूल्स नहीं कर रहे कार्रवाई, पैरेंट्स भी नहीं लगाते स्टूेडंट्स पर रोक, जांच के नाम पर सिर्फ दिखावा

VARANASI

नाबालिग स्टूडेंट्स सिटी में फर्राटा गाडि़यां दौड़ा रहे हैं। ओवरस्पीड में टू व्हीलर दौड़ाने वालों पर स्कूल मैनेजमेंट लगाम कस पाया और न ही ट्रैफिक पुलिस। केवल हेलमेट और लाइसेंस के लिए कैंपेन चलाकर ट्रैफिक पुलिस अपनी ड्यूटी की इतिश्री कर ले रही है। आरटीओ की टीम भी यह नहीं जांचती कि आखिर बच्चे कौन सी बाइक लेकर स्कूल पहुंच रहे हैं? हैवी बाइक को लेकर बहुत सारे स्कूल प्रबंधन ने भी अभी तक सख्ती नहीं की है। जिसका नतीजा दुघर्टना के रूप में सामने आता है।

चल रही अघोषित पार्किंग

अधिकतर स्कूल मैनेजमेंट ने पैरेंट्स को समझाया है कि स्टूडेंट्स को बाइक लाने नहीं दिया जाएगा। कुछ स्कूल्स में भले ही अंदर टू व्हीलर को एंट्री नहीं देते लेकिन कई स्कूल के बाहर अघोषित पार्किग बना दी गयी जहां ये नाबालिग स्टूडेंट्स अपनी बाइक रखते हैं। आलम यह है कि शहर के अधिकांश नामी स्कूल में हाईस्कूल के छात्र अपनी बाइक से स्कूल आते हैं। इन सबके पीछे पैरेंट्स का तर्क यह है कि स्कूल, कोचिंग व ट्यूशन के बीच तालमेल रखने के लिए बच्चों को वाहन देना जरूरी है।

सिर्फ 50 सीसी के लिए डीएल

आरटीओ में स्टूडेंट्स को लाइसेंस देने के लिए जो नियम बनाए गए हैं उसमें 16 साल की कम उम्र के छात्रों को हाईस्पीड वाहन चलाने की अनुमति नहीं है। वहीं 16 साल की उम्र वाले छात्रों के लिए जो लाइंसेंस बनता है उसमें उन्हें 50 सीसी से कम क्षमता वाले विदाउट गियर के वाहन चलाने का परमिशन है। इसके लिए छात्रों को अपने पैरेंट्स के माध्यम से लाइसेंस बनवाना होता है। यह सब केवल पेपर पर है।

विदाउट गियर वाला डीएल भी नहीं

स्कूल्स में टू व्हीलर लेकर आने वाले स्टूडेंट्स में ज्यादातर की उम्र 14 से 16 साल के बीच है। उनमें से अधिकांश के पास लाइसेंस होता है और न ही हेलमेट। संबंधित वाहन का आरसी भी उनके नाम से नहीं होता है। यही नहीं उनके पास आरटीओ से मिलने वाला विदाउट गियर वाला डीएल भी नहीं होता है। इसका अंदाजा किसी भी स्कूल की पार्किग या उसके गेट पर खड़े वाहनों की भीड़ से लगा सकते हैं। बता दें कि हर महीने 30 से 40 बच्चे विदाउट गियर वाला डीएल बनवाते हैं।

आरटीओ को याद नहीं चेकिंग

आरटीओ ने कभी भी स्कूली बच्चों की बाइक की क्षमता को लेकर चेकिंग नहीं की है। अब तक आरटीओ की ओर से एक भी ऐसा कैंपेन या छापेमारी की कार्रवाई नहीं की गई जिसमें नियमों की धच्यियां उड़ाने वाले छात्र या उनके स्कूल्स व पैरेंट्स के खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

खानापूर्ति तक सीमित ट्रैफिक पुलिस

ट्रैफिक पुलिस कहने को तो स्कूली बच्चों के लिए अभियान चलाती रहती है, लेकिन केवल हेलमेट और लाइसेंस की जांच कर उनका चालान करने के बाद छोड़ देती है। इस दौरान यह चेक करने की जरूरत नहीं समझी जाती कि छात्र के पास जो बाइक है उसकी कैपसिटी कितनी है और कितनी होनी चाहिए। या उसके पास कौन सा डीएल है। इसी का फायदा नाबालिक बाइक राइडर और उनके पैरेंट्स उठा रहे हैं।

वर्जन========

गियर वाला टू व्हीलर चलाते हुए पाए जाने पर नाबालिग छात्रों का चालान करने के साथ ही जुर्माना वसूलने का प्रावधान है, लेकिन पैरेंट्स जुर्माना देकर दोबारा बच्चों को बाइक दे देते हैं। बच्चों को कैसी गाड़ी चलाने देनी है यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है।

सुरेश चंद्र रावत, एसपी ट्रैफिक

स्कूली बच्चों के लाइसेंस-हेलमेट के अलावा अब यह भी देखा जाएगा कि उनके लाइसेंस के मुताबिक वाहन है या नहीं। आरटीओ की टीम को यदि 50 सीसी से ज्यादा के हैवी वाहन पाए गए तो कार्रवाई होगी।

आरपी द्विवेदी, आरटीओ