सपना अच्छे स्कूल में पढ़ाने का

पैरेंट्स अच्छे और महंगे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए लाखों रुपए की डोनेशन दे रहे हैं। फिर भी यदि एडमिशन नहीं होता तो प्रभावशाली लोगों से एप्रोच लगवाते हैं। एडमिशन के बाद स्कूल के बताए अनुसार महंगे दामों पर यूनीफॉर्म और किताबें दिलवा रहे हैं। इस बात की होड़ सी लगी हुई है। सिटी के ऐसे फेमस स्कूल सिटी के बाहर ही बने हुए हैं, इसके चलते बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बस या ऑटो का सहारा लेना पड़ता है।

पैरेंट्स भी नहीं देते ध्यान

स्कूलों में लगी बसों का किराया 800 से 1200 रुपए तक है, जबकि ऑटो चालक एक बच्चे का पर मंथ 400 से 600 रुपए ही लेते हैं। पैरेंटस को लगता है कि ऑटो का किराया भी कम है और उनका बच्चा भी बस की अपेक्षा ऑटो में ज्यादा सेफ है, लेकिन वे इस ओर ध्यान नहीं देते कि ऑटो वाले आरटीओ के मानकों को ताक पर रखकर बच्चों को भूसे की तरह ऑटो में भर कर ले जाते हैं। इसकी वजह से कभी भी हादसा हो सकता है।

ऑटो को नहीं मिलता परमिट

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत किसी भी ऑटो को स्कूली बच्चों को लेकर जाने का परमिट नहीं दिया जा सकता.  ऐसा करने वाले को सजा का प्रावधान है, लेकिन इसके बावजूद भी ऑटो वाले पुलिस और आरटीओ की टीम की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। प्रशासन की लापरवाही के कारण सिटी में करीब आठ हजार ऑटो में से ढाई हजार ऑटो स्कूल से घर तक छोडऩे का काम कर रहे हैं। पैरेंट्स भी कुछ रुपए के लालच में बस की जगह ऑटो से ही अपने बच्चों को भेज रहे हैं।

एमजी रोड पर ऑटो पर रोक

जब से डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने एमजी रोड पर ऑटो चलने पर रोक लगाई है, उसके बाद सैकड़ों ऑटो ड्राइवर्स ने इधर-उधर डग्गेमारी करने की जगह स्कूली बच्चों को ढोने का काम शुरू कर दिया है। ऑटो में स्कूल के बच्चों को बैठा देख ट्रैफिक पुलिस भी हाथ नहीं डालती है।

मंगलवार को हुआ हादसा

सेंट जोन्स रोड पर सेंट मार्क स्कूल के दस बच्चों को लेकर जा रहा ऑटो पलट गया। ऑटो का अगला पहिया निकल गया था। ऑटो में बैठे छह बच्चे बुरी तरह से घायल हो गए। ड्राइवर को भी काफी चोट आई। घायल बच्चों को आसपास के लोगों ने हॉस्पिटल में एडमिट कराया था। जिस ऑटो में हादसा हुआ, वह ऑटो सवारियां ढोने वाला था। इस हादसे के बाद से परिजन भी बच्चों को लेकर काफी परेशान नजर आ रहे हैं।

ऑटो सस्ते के साथ-साथ बेटे को घर से ही ले जाता है। जल्दी सुबह उठने की टेंशन नहीं होती।

-नीरज पंडित, कमला नगर

रात को ऑफिस लेट पहुंचते हैं। सुबह जल्दी बच्चे को छोडऩे में परेशानी आती है। पांच साल से घर के पास से ही वैन ले जाती है।

-शशी कुमार, प्रताप नगर

मुझे अपने बेटे को स्कूल छोडऩे के लिए किसी पर भी भरोसा नहीं है। मैं खुद छोडऩे जाता था, लेकिन बाद में फैमली प्रॉब्लम के चलते ऑटो में भेजना शुरू कर दिया।

-वरुण कुमार गुप्ता, मोती कटरा

ऑटो में बच्चा जाने से चालक पूरा ध्यान रखता है। स्कूल के अंदर से लेकर आता है और घर छोड़ता है।

-मनोज गर्ग, विजय नगर