पिछले साल जून से ये मामला चल रहा था। मॉस्को इस्कॉन से जुड़े साधु प्रिया दास ने पीटीआई को बताया, "साइबेरिया में टोम्स्क की अदालत ने याचिका खारिज कर दी है." हालाँकि दिसंबर में निचली अदालत ने भगवद गीता पर पाबंदी की मांग को खारिज कर दिया था, लेकिन इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की गई।

साधु प्रिया दास ने पीटीआई को बताया कि जैसे ही जज ने इस याचिका को खारिज किया, लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने रूसी न्याय व्यवस्था का आभार जताया।

भारत में इस्कॉन के मीडिया कॉम्यूनिकेशन के निदेशक ब्रजेंद्र नंदन दास ने इस फैसले पर खुशी जताई है। भगवत गीता पहली बार रूस में वर्ष 1788 में छापी गई थी। उसके बाद इसके कई अनुवाद छप चुके हैं।

टोम्स्क में अभियोजन पक्ष के वकील ने ये याचिका दाखिल करते हुए भगवद गीता को कट्टरपंथी साहित्य कहा था और ये भी आरोप लगाया था कि इससे सामाजिक मतभेद बढ़ सकता है। इस मामले को लेकर भारतीय संसद में भी बहस हो चुकी है और राजनयिक स्तर पर भी बातचीत हुई थी।

मांग

इसका अनुवाद इस्कॉन के संस्थापक एसी भक्तिवेदांता स्वामी प्रभुपाद ने किया है। अदालत से ये मांग की गई थी कि हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों पर पाबंदी लगाई जाए और इसे ऐसा साहित्य माना जाए, जो सामाजिक मतभेद को बढावा देते हैं। साथ ही इन ग्रंथों के वितरण को गैर कानूनी बनाने की भी मांग है।

दूसरी ओर हिंदुओं का आरोप था कि साइबेरिया की सरकार हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों पर पाबंदी लगाना चाहती है। दिसंबर में टोम्स्क की अदालत ने भगवद गीता के रूसी संस्करण पर पाबंदी की मांग ठुकरा दी थी, लेकिन अदालत के इस फैसले के खिलाफ जनवरी के आखिर में एक और याचिका दाखिल की गई थी।

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