- मनकामेश्वर मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता

LUCKNOW: सावन आते ही शिवालयों में हर-हर महादेव के नारे गूंजने लगे हैं। डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का मनकामेश्वर मंदिर बहुत सिद्ध माना जता है। माता सीता को वन में छोड़ने के बाद मन की शांति के लिए लक्ष्मण ने इसी मंदिर में शिव अराधना की थी। यहां हर मुराद पूरी होती है। सावन में यहां राजधानी समेत आसपास के हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन और आरती के लिए उमड़ पड़ी।

सिद्ध माना जाता है मनकामेश्वर

भोले बाबा कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते। लखनऊ में गोमती नदी के तट पर बने मनकामेश्वर मंदिर में तो महादेव अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं। डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है। मंदिर के महंत केशवगिरी के ब्रह्मलीन होने के बाद देव्यागिरी को यहां का महंत बनाया गया।

सुबह-शाम होती है भव्य आरती

मंदिर में सुबह और शाम को भव्य आरती होती हैं। मनकामेश्वर मंदिर में काले रंग का शिवलिंग है और उस पर चांदी का छत्र विराजमान होने के साथ मंदिर के पूरे फर्श में चांदी के सिक्के लगे हैं। कहा जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शंकर की अराधना की थी। जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी। उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई।

राजा हिरण्यधनु ने कराया था निर्माण

ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण राजा हिरण्यधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद किया था। मंदिर के शिखर पर सुसज्जित 23 स्वर्णकलश उसकी शोभा को बढ़ाते हैं। कहा जाता है कि दक्षिण के शिव भक्तों और पूर्व के तारकेश्वर मंदिर के उपासक साहनियों ने मध्यकाल तक इस मंदिर के मूल स्वरूप को बनाए रखा था। मौजूदा समय में मंदिर का भव्य निर्माण सेठ पूरन शाह ने कराया है।

क्या है मंदिर की मान्यता

गोमती नदी के किनारे बसा यह मंदिर रामायणकाल का है और इनके नाम मनकामेश्वर से ही इस बात की एहसास हो जाता है कि यहां मन मांगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। जैसे ही भक्त इस मंदिर में प्रवेश करते हैं, उन्हें शांति की अनुभूति होती है। लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतान प्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर बाबा का बेलपत्र, गंगाजल और दूध आदि से श्रृंगार करते हैं।

आरती का है विशेष महत्व

महाशिवरात्रि और सावन, कजरी तीज के मौके पर मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। यहां पर आरती का भी विशेष महत्व है। कहते हैं कि यहां की आरती में शामिल होकर मन में जो भी कामना की जाती है, वो अवश्य पूरी होती है। फूल, बेलपत्र और गंगा जल से भोले भंडारी का अभिषेक होता है।