- पिछली बार जब शामिल हुए थे बीजेपी में तब मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा था-आतंकी का दोस्त

- लालू-रामविलास ने भी दिए थे टिकट, नीतीश ने भेजा था राज्यसभा

PATNA: साबिर अली फिर से बीजेपी में शामिल हो गए। प्रभारी भूपेन्द्र यादव ने उन्हें पार्टी में शामिल करवाया और कहा कि साबिर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव के खिलाफ सतत संघर्षशील रहे हैं और अब बीजेपी में शामिल होकर इसे जारी रखेंगे। कहा कि बीजेपी की गरीब लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव लाने और सभी समुदाय के साथ सामाजिक न्याय सुरक्षित करने की नीति लोगों को आकर्षित कर रही है।

नकवी ने किया था जमकर विरोध

साबिर अली कभी रामविलास पासवान के खासम खास हुए करते थे। तब रामविलास पासवान उन्हें राज्यसभा भेजा था। लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें लोजपा से तोड़ जेडीयू में शामिल किया और राज्यसभा भेजा। आगे साबिर ने बीजेपी का दामन थाम लिया। बीजेपी का दामन थामते ही बीजेपी के सीनियर लीडर और उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने उनके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। भटकल का रिश्तेदार तक कहा था नकवी ने। नकवी ने ट्वीटर पर भी विरोध दर्ज किया था। इंडियन मुजाहिदीन के गिरफ्तार सह संस्थापक यासीन भटकल से संबंध होने की ओर इशारा किया था। इसके बाद साबिर का गुस्सा दिखा था। साबिर ने नकवी पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था। साबिर की पत्नी भी विरोध में उतरी थीं और नकवी के घर के बाहर धरना दी थी। आखिरकार नकवी और साबिर के बीच समझौता हो गया था।

साबिर की कई कहानियां

साबिर किसी फिल्म के नायक की तरह हैं। साबिर के राजनीतिक सफरनामे पर कोई फिल्म बन जाए तो आश्चर्य नहीं। रक्सौल के मुखिया गिरीन्दर यादव की हत्या में साबिर का नाम उछला। मजहर हुसैन का ये बेटा ख्7 साल पहले रक्सौल के अपने घर से मुंबई चला गया। क्भ् साल की उम्र में वह जब मुंबई गया तो बांद्रा में दरजी का काम शुरू किया। लेकिन बताया जाता है कि मार्केट के मालिक का सबंध डी कंपनी से था। आगे साबिर ने दर्जी का काम छोड़ दिया। उसने एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का कारोबार शुरू किया और कुछ ही दिनों में उसके पास रुपयों का ढेर लग गया। बांद्रा में मकान खरीद कर वह काम करने लगा। टूर एंड ट्रेवेल कंपनी बनाई और लोगों को विदेश भेजने के लिए वीजा दिलाने लगा। कई को साबिर ने विदेश का वीजा और टिकट दिलाया। जब क्997 में साबिर के घर का दरवाजा पुलिस ने खटखटाया तब लोगों को पता चला कि उसका नाम गुलशन कुमार हत्याकांड में भी है। उसे जमानत मिली और उसने विधान सभा के दो चुनाव लड़े। साबिर अपने ऊपर लगे सारे आरोपों को राजनीतिक विरोधियों की साजिश मानते हैं।

दो बार हुई जमानत जब्त

साबिर रक्सौल से आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े और फिर लोजपा के टिकट से आदापुर से.काफी पैसा भी खर्च किया उन्होंने। दो बार चुनाव हारने के बाद साबिर ने तय किया कि उसका इस तरह चुनाव जीतना कठिन है और उसने राज्यसभा की ओर जाने का फैसला किया। दोनों बार साबिर की जमानत जब्त हो गई थी। वे ख्008 में लोजपा के पहले कैंडिडेट बने जो राज्यसभा जाने में सफल हुए। कहा जाता है कि लालू प्रसाद और काग्रेस के कई नेताओं ने साबिर की मदद की थी। कहा जाता है कि इस तरह लालू प्रसाद और रामविलास पासवान को खुश कर वे राज्यसभा जाने में सफल रहे। साबिर ने पहचान बनाने के लिए काफी रुपए खर्च किए। रघुनाथ झा जैसे नेताओं ने साबिर की मदद की थी। मंगनीलाल मंडल ने साबिर के गांव तक सड़क बनावाई थी। शहाबुद्दीन और साबिर में गहरी दोस्ती की बात कही जा रही है।

नीतीश ने भी की कद्र

साबिर का सिक्का राजनीति में ऐसे चलने लगा कि उसे नीतीश कुमार का भी साथ मिल गया। जेडीयू ने उसे राज्यसभा भेजा। मार्च ख्0क्ब् में टर्म खत्म हो गया। नीतीश ने जब फिर से नहीं भेजा तो बगावत कर दी। उपचुनाव में निर्दलीय लड़े। जेडीयू के बागियों ने उनकी मदद की। इन बागियों में से कई बीजेपी में जाने की तैयारी पूरी कर चुके हैं। इनके पहले साबिर ने फिर से बीजेपी का दामन थाम लिया है तमाम फजीहतों को भुलाते हुए।