ऑक्सीबेंजीन से allergy

आमतौर पर मार्केट में मिलने वाली क्रीम बेस्ड सनस्क्रीन में ऑक्सीबेंजीन पाया जाता है। ऑक्सीबेंजीन कॉमेडोजेनिक होती है, ऐसे में सनस्क्रीन का यूज शुरू करते ही विदिन ए वीक कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस के सिंपटम्स नजर आने लगते हैं। इससे स्किन में ऑयलीनेस बढ़ती है और एक्ने होने लगते हैं। पेशेंट्स पहली बार में इसे नॉर्मल समझते हैं और सनस्क्रीन का यूज जारी रखते हैं। जब प्रॉब्लम काफी हद तक बढ़ जाती है, तो वह डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। डर्मेटोलॉजिस्ट के मुताबिक इस तरह की एलर्जी से बचने के लिए जरूरी है कि मेडिकेटेड सनस्क्रीन व सनब्लॉक यूज करें। सनस्क्रीन सेलेक्ट करने से पहले स्किन टाइप का ध्यान जरूर रखें। ऑयली स्किन के लिए जेल बेस्ड और नॉर्मल के लिए लोशन बेस्ड सनस्क्रीन यूज करें। क्रीम बेस्ड सनस्क्रीन को अवॉइड करें।

कहीं नजर ना लग जाए

गॉगल्स की स्मार्टनेस के साथ उनका यूवी प्रोटेक्शन लेवल चेक करना बहुत जरूरी है। नॉन-ब्रांडेड गॉगल्स में यह प्रोटेक्शन नहीं होता। हालांकि, ये गॉगल्स डस्ट और विंड से प्रोटेक्ट करते हैं पर सस्ते गॉगल्स में यूज किया जाने वाला रॉ मैटीरियल हॉर्मफुल केमिकल्स से तैयार होता है। ये केमिकल सन से रिएक्ट करने के बाद आईज को हार्म करते हैं। इससे डार्क सर्किल्स भी बढऩे लगते हैं।

Double layer umbrella

वहीं सन प्रोटेक्शन के लिए यूज किया जाने वाला अंब्रैला भी कम हार्मफुल नहीं होता। अंब्रैला लेते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वह डबल लेयर में बनाया गया हो, जिसमें नीचे वाली लेयर सिल्वर हो। इससे अंब्रैला    को कोई भी कलर होने पर वह सन रेज को अब्जॉर्ब करके स्किन तक नहीं आने देता है। वहीं अंब्रैला को अपने हेड के 2 इंच से ज्यादा ऊपर नहीं करना चाहिए। इससे सनरेज इफेक्टिव हो जाती हैं।

डियोड्रेंट बना रहे बीमार

डियोड्रेंट यूज करने से बॉडी पर एक मॉस्क तैयार हो जाता है। यह मॉस्क सबसे पहले स्वेट ग्लैंड्स को ही डीएक्टिवेट करता है। दरअसल, डियोड्रेंट्स में पाया जाने वाला एल्युमिनियम क्लोरोहाइड्रेट स्किन के लिए सबसे खतरनाक होता है। डियोड्रेंट को डायरेक्ट स्किन पर यूज करने के कुछ ही समय में इस केमिकल की वजह से ब्लैक स्पॉट्स पडऩा शुरू हो जाते हैं। धीरे-धीरे ग्लैंड्स के डीएक्टिवेशन की वजह से रैशेज और पस वाले दाने पडऩे शुरू हो जाते हैं। इससे बचने के लिए स्किन पर मेडिकेटेड टैल्क को यूज करना ज्यादा अच्छा होता है। अगर डियोड्रेंट यूज भी करना है तो उसे कपड़ों के ऊपर से यूज करना चाहिए।

5% goggles ही सही

सेंट्रल गवर्नमेंट के अंधता निवारण कार्यक्रम और एम्स के आरपी सेंटर की ओर से किए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि बाजार में  मौजूद 75 परसेंट गॉगल अमेरिका के   एफडीए से तय मानक के अनुसार यूवी से आंखों को सुरक्षा प्रदान करने में फेल हैं। हार्ड रेसिन ओर क्राउन ग्लास दो तरह के चश्मे की क्वालिटी का लैब टेस्ट किया गया। मार्केट में यूवी ए और यूवी बी कैटेगरी के गॉगल में 100 परसेंट यूवी प्रोटेक्शन का दावा गलत पाया गया। इसमें ग्लास और हार्ड रेसिन की मोटाई मानक से ज्यादा पाई गई। केवल 5 परसेंट गॉगल्स ही मानक के मुताबिक पाए गए। मानक  के मुताबिक यूवी ए के लिए 380 एनएम से कम और यूवी बी के लिए 315 एनएम से कम होना चाहिए। पर चश्मों में यह 400 एनएम से ज्यादा पाया गया। हालांकि, 280 एनएम को यूवी प्रोटेक्शन के लिए स्टैंडर्ड माना गया है। यूवी प्रोटेक्शन ठीक ना होने पर आखों के रेटिना और पलकों को नुकसान हो सकता है, मोतियाबिंदु, फोटो कंजक्टिवाइटिस और कैरेटोपैथी का खतरा हो सकता है।

समर्स शुरू होते ही मेरे पास कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस के पेशेंट्स 50 परसेंट तक बढ़ गए हैं। आम तौर पर पेशेंट्स क ो यह पता नहीं होता है कि उन्हें यह प्रॉब्लम हो क्यों रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह समर यूटिलिटी गुड्स का सही सेलेक्शन नहीं होना होता है।

डॉ। जेपी सिंह, डर्मेटोलॉजिस्ट

गॉगल्स यूज करने से पहले ये जरूर चेक कर लें कि यह यूवी प्रोटेक्टेड हैं या नहीं। नॉन ब्रांडेड गॉगल्स यूज करने के बाद पेशेंट्स को आईज में पेन, पानी आना, डार्क सर्किल्स बढऩे की प्रॉब्लम्स सामने आ रही हैं। समर्स शुरू होते ही यह प्रॉब्लम्स बढऩे लगी हैं।

डॉ। अक्षत बास, आई स्पेशलिस्ट