-अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रहे साखू के पेड़

- धड़ल्ले से कटाई की वजह से साखू की पूरी प्रजाति पर मंडरा रहा खतरा

- डिस्ट्रिक्ट के जंगलों से गायब होते जा रहे हैं साखू के पेड़

<-अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रहे साखू के पेड़

- धड़ल्ले से कटाई की वजह से साखू की पूरी प्रजाति पर मंडरा रहा खतरा

- डिस्ट्रिक्ट के जंगलों से गायब होते जा रहे हैं साखू के पेड़

GORAKHPUR :GORAKHPUR : आज से ठीक साल भर पहले केदारनाथ में जलजला आया था। ऐसा ही जलजला गोरखपुर में भी आ सकता है। सुनकर चौंक गए न, पर यह हकीकत है। जिस तरह से प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाजा केदारनाथ के लोगों को भुगतना पड़ा था, वैसा ही गोरखपुर के लोगों को भी भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि यहां भी प्राकृतिक संसाधनों का धड़ल्ले से दोहन किया जा रहा है। इस दोहन का ही परिणाम है कि प्रकृति की एक अमूल्य धरोहर अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रही है। हम बात कर रहे हैं साखू के पेड़ की, जिसे लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए धड़ल्ले से काट रहे हैं लेकिन नए पौधे नहीं लगा रहे, जिस कारण एक पेड़ की पूरी प्रजाति ही खत्म होने की कगार पर है।

कैसे गायब किए जा रहे साखू के पेड़

जंगलों में कटे साखू के पेड़ की लकड़ी कई तरह से यूज की जाती है। साखू के पुराने और लंबे पेड़ों को फर्नीचर बनाने में यूज किया जाता है तो नये और कमजोर पेड़ जलौनी में खप रहे हैं। जंगल में कटान करने वाले लोगों का कहना है कि वन कर्मचारियों की मिलीभगत से पेड़ काटकर उनको कुल्हाड़ी से चीरा जाता है। फिर साइकिल पर लादकर कुंतल के हिसाब से बेचा जाता है। जलौनी के लिए ईट-भट्ठों पर भी जंगल की लकड़ी बेची जाती है। लकड़ी काटने वालों का कहना है कि रोजाना हर जंगल से करीब भ्0 हजार की जलौनी लकड़ी निकल जाती है। इस हिसाब से देखें तो महीने में क्भ् लाख से अधिक कीमत की जलौनी बिकती है।

घटते जा रहे साखू के पेड़

वन विभाग की तरफ से पौधारोपण और जंगलों में मौजूद पेड़ों की तादाद जानने के लिए गिनती कराई जाती है। करीब दो साल पहले हुई गिनती पर यकीन करें तो जिले के जंगलों में तीन लाख ब्9 हजार 8ब्0 साखू और एक लाख ब्फ् हजार भ्99 सागौन के पेड़ हैं। क्क् रेंज में लगभग हर रेंज हेडक्वार्टर और जंगल में नर्सरी भी है। वन विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि सागौन के साथ-साथ अन्य प्रजाति के पेड़ों के पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन साखू का जर्मिनेशन प्रोसेस कठिन होने से ये लुप्त होते जा रहे हैं।

गोरखपुर के जंगलों में सुरक्षित नहीं साखू

जिले के जंगलों में लगे पेड़ों पर लकड़ी माफियाओं की डकैत नजर होती है। जंगलों से रोजाना साखू और सागौन के पेड़ काटे जाते हैं। तिनकोनिया रेंज का कुसम्ही जंगल, बाकी रेंज का जंगल टिकरिया, कैंपियरगंज, फरेंदा सहित अन्य जंगलों में लगे पेड़ों पर वन माफिया रोज कुल्हाड़ी चलाते हैं। सिटी के पास-पड़ोस के जंगलों में रोजाना होने वाली कटान से साखू और सागौन के पेड़ों पर संकट मंडरा रहा है। फारेस्ट एडमिनिस्ट्रेशन इस कटान को रोकने के लिए एक्टिव नहीं दिखता।

बड़ा मुश्किल है साखू उगाना

दरअसल, साखू के पेड़ों की तादाद बढ़ाने के लिए नर्सरी बनानी पड़ती है। जून मंथ के लास्ट में साखू के बीज गिरते हैं जिनको एक हफ्ते के भीतर उगाना होता है। एक हफ्ते के भीतर यदि उनसे पौधे निकल गए तो साखू का नया पेड़ तैयार हो सकता है, लेकिन जरा सी देरी होने पर पौधे सूख जाते हैं। कठिन प्रक्रिया होने की वजह से वन कर्मी अब इसके बजाय सागौन पर जोर दे रहे हैं। किसान भी सागौन के पौधों की ही डिमांड करते हैं।

नर्सरी में नहीं मिलता साखू

फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों की मानें तो पहले जंगलों के आसपास रखने वाले वनटांगिया मजदूर साखू के पौधे उगाते थे। लेकिन इधर अपने दूसरों कामों में बिजी होने से वे भी इस पर ध्यान नहीं दे रहे। इस वजह से साखू के पौधे कम होते जा रहे हैं। विकल्प के तौर पर लोग सागौन पर जोर दे रहे हैं। जिले में मौजूद नर्सरी में सागौन, जामुन, अर्जुन सहित कई पौधे आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन साखू आसानी से मिल नहीं पाता है।

साखू के बीज की जर्मिनेशन क्षमता एक हफ्ते की ही होती है। इसको उगाना कठिन होता है। इसलिए साखू के बजाय सागौन पर जोर दिया जा रहा है। साखू के पौधे बहुत कम लगाए जाते हैं।

डॉ। जनार्दन शर्मा, डीएफओ