कांस्टेबल से पीएचडी तक का सफर
देवरिया खामपार निवासी विवेकानंद त्रिपाठी पुलिस डिपार्टमेंट में कांस्टेबल हैं। वे फिलहाल ज्यूडीशियल मजिस्टे्रट थर्ड की कोर्ट में मोहर्रर हैं। उन्होंने1989 में पुलिस डिपार्टमेंट में कांस्टेबल पोस्ट पर ज्वांइन किया था। इंटर के बाद बीएससी सेकेंड ईयर में उन्होंने पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी कर ली, लेकिन उनकी मंजिल अभी दूर थी। जॉब के साथ पढ़ाई का जज्बा भी जिंदा रहा और साथ-साथ पढ़ाई पूरी की। उनके शिक्षक पिता हदय नंद का सपना था कि उनका बेटा कुछ नाम करें। इसे पूरा करने के लिए विवेकानंद ने हिस्ट्री से एम.ए किया। पढ़ाई की और फिर पीएचडी की तैयारी शुरू की। पुलिस डिपार्टमेंट के सबसे छोटे पद पर होने के चलते उन्होंने कुछ ऐसा करने का फैसला लिया जिससे वह भीड़ से जुदा नजर आएं। पूर्वांचल यूनिवर्सिटी से फिलॉस्फी से इनरोलमेंट किया। 2013 में उनकी पीएचडी पूरी हुई और पूर्वांचल यूनिवर्सिटी जौनपुर ने ज्ञानपुर संत रविदास कालेज ने उन्हें नाम के आगे डाक्टर विवेका नंद त्रिपाठी लिखने का मौका दिया।

फैमिली के चलते हासिल की मंजिल
कांस्टेबल विवेकानंद की फैमिली में उनके पिता हदय नंद, भाई डा। सतीश त्रिपाठी और वाइफ पूनम बेटी एकता, अर्पिता, अम्रता और बेटा अतुल है। विवेका नंद का कहना है कि उनकी सक्सेज के पीछे उनकी फैमिली, कचहरी के वकील और डिपार्टमेंट के कुछ साथी हैं। पढ़ाई के दौरान हर तरह का मोटिवेशन उनसे मिलता रहा। इससे पहले 93 में उन्होंने सिविल सर्विसेज का भी एग्जाम दिया था। टीचर पिता हदय नंद ने पुलिस सर्विस ज्वाइंन करते समय उनसे वादा लिया था कि आइडियल पर्सन बनना है। इस वादे को पूरा करने के लिए कांस्टेबल विवेकानंद को 24 साल का टाइम लग गया लेकिन अब उनकी फैमिली इस सफलता से चहक रही है क्योंकि अब कांस्टेबल को डा। विवेकानंद त्रिपाठी के नाम से जाना जाएगा।

जब मिला आखिर मौका
सिविल सर्विसेज में सक्सेज न मिलने पर विवेकानंद ने अपने नाम के आगे डॉक्टर जोड़ने का फैसला किया। पीएचडी के इनरोलमेंट के लिए आरडीसी (रिचर्स डेवलेपमेंट ऑफ कॉप्स) में इंटरव्यू के दौरान एक्जामिनर ने उनसे सवाल किया कि आप पहले ही सरकारी जॉब में है और पीएचडी की एक सीट को कब्जा करने के किसी एक यूथ के भविष्य में रोड़ा बन सकते हंै। इस सवाल पर विवेदानंद ने जवाब दिया कि यूथ में अगर जज्बा होगा तो शायद वह अपनी मंजिल खुद तय कर लेगा। अगर मैैं पीएचडी करता हूं तो शायद कभी डिपार्टमेंट छोड़ कर दूसरी मंजिल तय कर सकता हूं और मेरे पद छोड़ने पर शायद किसी गरीब या किसान के बेटे को कांस्टेबल की नौकरी मिल सके। इस जवाब से उन्हें पीएचडी की सीट मिल गई थी।

अब साथी कहेंगे डाक्टर साहब
पुलिस डिपार्टमेंट के अपने साथियों के बीच कांस्टेबल विवेका नंद अब खास है। सीनियर भी उन्हें नाम और नंबर से नहीं बुलाते। फैमिली में भी लोग कांस्टेबल विवेका नंद को डाक्टर साहब कहकर बुला रहे हैं। दो दिन पहले ही कांस्टेबल को पूर्वांचल यूनिवर्सिटी ने डाक्टर की उपाधि दी है। तब से उनके घर बधाई देने वालों का ताता लगा हुआ है। दोस्त, रिश्तेदार, साथी पुलिस कर्मी हर कोई उनके हौसले को सलाम कर रहा है। बीटेक की पढ़ाई करने वाली उनकी बेटी को पिता पर गर्व है।

 

report by : mayank.srivastava@inext.co.in