-गंगा पार जमा हो रही रेत की वजह से खतरनाक हो रही नदी की धारा

-तेज कटान से बचाव के लिए जरूरी है रेत और नदी में जमा सिल्ट को निकालना

VARANASI

गंगा के घाटों को हो रहे नुकसान की सबसे बड़ी वजह रेतीले क्षेत्र का विस्तार होना है। एक अरसे से गंगा की दूसरी ओर से जमा हो रही रेत को हटाया नहीं गया है। दिन ब दिन रेती बढ़ती जा रही है। वहीं नदी की तलहटी में जमा सिल्ट भी बढ़ रही है। इसके चलते जब गंगा में पानी अधिक होता है तो वह विस्तृत क्षेत्र में नहीं पहुंच पाता है और उसका वेग अधिक हो जाता है। तेज धारा को बालू पक्के घाटों की ओर धकेलता है जो पत्थरों से टकराकर उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है। तेज धारा की वजह से घाट पोले हो रहे हैं, सीढि़यां टूट रही हैं, इमारतों में दरार आ रहा है। सदियों से बुलंद ढांचा अस्थिर हो रहा है। यह कहना है नदी की हर चाल पर बारीक नजर रखने वाले विशेषज्ञों का।

नहीं हो रही सफाई

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कछुओं की मदद ला जा रही है। उनका आवास बनाने के लिए नदी के उस पर विशाल रेत के मैदान को कछुआ सेंचुरी घोषित किया गया है। इसके चलते इस क्षेत्र में इंसानों की आवाजाही पर रोक है। साथ ही बालू खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। दो दशक से अधिक समय से गंगा पार से रेत नहीं हटायी गयी है। इसमें हर साल बड़ा इजाफा होता जा रहा है। गंगा में बढ़ती रेत और सिल्ट का असर है कि कई बार ठंड के मौसम में भी नदी के बीच में रेत के टीले नजर आने लगते हैं। नदी का वेग नेचुरल रहे इसके लिए जरूरी है दूसरे किनारे पर जमा रेत और तल में जमा सिल्ट को साफ किया जाए।

बनारस की पहचान गंगा और घाटों से है। ये नहीं होंगे तो बनारस का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। इस शहर को बनाए रखने के लिए घाटों को बचाना जरूरी है।

सुशील यादव, दशाश्वमेध

गंगा के घाटों की हालत अच्छी नहीं है। घाट टूट रहे हैं, इमारतों में दरार पड़ रही है। जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो घाटों को बड़ा नुकसान होगा।

अनुराग द्विवेदी, अस्सी

गंगा के घाटों को पूरी दुनिया निहारने आती है। जब घाट नष्ट हो जाएंगे तो भला लोग क्या देखेंगे। गंगा की हालत तो खराब है। घाटों का वजूद भी खतरे में पड़ गया है।

राजू पाल, सोनारपुरा