अनुप'योगी' आदेश

-सरकारी डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं लिखने के सख्त निर्देश

-फिर भी डॉक्टर्स धड़ल्ले के साथ लिख रहे ब्रांडेड मेडिसिन

-ऐसे में मजाक बन गया शासनादेश, उपयोगिता पर उठ रहे सवाल

पारुल सिंघल

मेरठ। दवाइयों के नाम पर मची लूट को रोकने और मरीजों के फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक मेडिसन ही लिखने के शासनादेश जारी कर दिया है। अस्पताल प्रशासन ने भी डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश दिए है, लेकिन डॉक्टर्स जेनेरिक के साथ ब्रांडेड दवाएं भी लिख रहे हैं। उनका तर्क है कि जेनरिक दवाएं उपलब्ध न होने की वजह से ऐसा किया जा रहा है, जबकि इस कारण शासनादेश पर ही सवाल खड़ा हो गया है?

पर्ची पर लिख रहे दवाएं

मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स को सिर्फ अस्पताल के पर्चे पर ही दवाएं लिखने के निर्देश हैं, लेकिन बावजूद इसके डॉक्टर्स सादी पर्ची पर दवाएं लिखकर बाहर से ही मंगवा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज में करीब 21 ओपीडी हैं, जहां डॉक्टर पर्ची पर दवाएं लिख रहे हैं। डॉक्टर्स का तर्क है कि अस्पताल में दवाओं की आपूर्ति नहीं है, ऐसे में नहीं आने वाली दवाओं के विकल्प के तौर पर ही बाहर की दवाएं लिख रहे हैं।

ऐसे होता है खेल

डॉक्टर्स दवा के पर्चे पर जेनेरिक मेडिसन के साथ ही ब्रांडेड दवा भी लिख रहे हैं। चूंकि अस्पताल में आने वाले मरीजों को मेडिसन की जानकारी नहीं रहती है, ऐसे में डॉक्टर्स की लिखावट को केवल निर्धारित मेडिकल स्टोर्स वाले ही समझते हैं और डॉक्टर की लिखी ब्रांडेड दवाएं ही मरीज को दी जाती हैं। इनकी कीमत जेनेरिक मेडिसन से कहीं ज्यादा होती है।

क्या है जेनेरिक मेडिसन

कोई भी कंपनी जब दवा बनाती है तो उसका एक फार्मूला होता है, जिसे शुरुआती 20 साल के लिए पेटेंट मिला होता है। यानी वह दवा सिर्फ वहीं कंपनी बना सकती है। फलस्वरूप दवा कंपनी अपनी मर्जी से इस दवाओं की कीमत तय करती है। लेकिन जेनेरिक मेडिसन किसी की पेटेंट नहीं होती और फार्मूला आम होने की वजह से यह दवाइयां कई गुना सस्ती हो जाती है।

इनका है कहना

हमने सख्ती से डॉक्टर्स को ब्रांडेड दवाएं न लिखने का सरकुलर हर विभाग में जारी कर दिया है। अगर कोई भी डॉक्टर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।

-डॉ। विभू साहनी

सीएमएस, मेडिकल कॉलेज

हमारे यहां जेनेरिक मेडिसन ही लिखी जा रही हैं, दवाओं का स्टॉक भी पूरा है। मरीजों को सभी दवाएं अस्पताल से ही दी जा रही हैं।

-डॉ। मंजू मलिक

सीएमएस, डफरिन अस्पताल

पब्लिक सेज।

मेडिकल कॉलेज में दवाएं नहीं मिलती हैं। सिर्फ एक या दो रुपये की दवाएं ही मिलती हैं, महंगी दवाएं हमें बाहर से ही लेनी पड़ती है। हमें ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं का अंतर नहीं पता। डॉक्टर की सलाह अनुसार ही चलना पड़ता है।

-शबाना

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बीच का अंतर तो नहीं मालूम। दस दिनों से चक्कर जरूर काट रही हूं। डॉक्टर बाहर की महंगी दवाएं ही लिखते हैं। एक भी दवा अंदर से नहीं मिलती, सभी दवाएं बाहर से लेनी पड़ रही हैं।

-संगीता

अंदर न तो एंटीबायोटिक है और न ही कोई और दवा मिलती है। एक दिन की दवाई भी 200 रुपये तक खरीदनी पड़ रही है।

-कविता