अगर सोसायटी का एक हिस्सा दूसरे हिस्से के लोगों से मारपीट करने लगे तो पुलिस इसे दंगा करार देगी। तुरंत रैपिड एक्शन फोर्स बुलाई जाएगी, स्टेट मशीनरी एक्टिव होकर मारपीट खत्म करने के स्टेप्स लेगी और इसके शिकार लोगों की मदद का प्रबंध करेगी। जब हमने डॉमेस्टिक वायलेंस पर अपनी रिसर्च शुरू की तो हमारे सामने कुछ ऐसा ही नजारा था। सोसायटी का एक हिस्सा दूसरे को पीट रहा था और लग रहा था कि जैसे सिविल वॉर चल रहा हो। बस, केवल वहां इस मारपीट को रोकने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स नहीं थी।

हेल्थ और फैमिली वेलफेयर मिनिस्ट्री व प्लानिंग कमीशन की दो अलग-अलग स्टडीज का कहना है कि इंडिया में 40 परसेंट से 80 परसेंट तक महिलाएं डॉमेस्टिक वायलेंस का शिकार होती हैं। हम अगर इसे 50 परसेंट ही मान लें तो भी यह बहुत ज्यादा है। इससे हम पुरुषों की बहुत अच्छी इमेज नहीं बन रही है।

आखिर वह कौन सी सोच है जो हम पुरुषों को यह मानने पर मजबूर कर देती है कि हमारे पास महिलाओं को पीटने का अधिकार है? और वो कौन सी सोच है जिसके कारण महिलाएं बरसों-बरस ऐसी पिटाई स्वीकार करती रहती हैं? यह वही पुरानी ‘मेल डॉमिनेटेड’ सोसायटी वाली पैट्रियार्कल थिंकिंग है। Domectic violence

सत्यमेव जयते के लिए दो साल तक किए गए रिसर्च और इसके लिए 13 टॉपिक्स का सेलेक्शन करने के प्रॉसेस में हमें यह महसूस हुआ कि मेल डॉमिनेटेड सोसयाटी वाली सोच ही दरअसल बहुत बड़ी विलेन है। हमारी एक्सपर्ट कमला भसीन ने भी कहा, महिलाएं भी इस सोच में भागीदार हैं क्योंकि वह भी इसी समाज का हिस्सा हैं।

पुरुष महिलाओं से बेहतर हैं, वही डिसाइड करेंगे कि महिलाओं के लिए अच्छा क्या है और वही अपनी इच्छा के अनुसार महिलाओं की लाइफ डिसाइड करेंगे। इसी कारण फीमेल फीटीसाइड, फीमेल इनफैंटिसाइड, लड़कियों को सही खानपान न मिलना, उसे कम या सही एजूकेशन न मिलना जैसी चीजें हमारे सामने आती हैं। लड़कियों को घर के कामकाज सीखने के बारे में कहा जाता है। यह सब करने के साथ ही उसे पीटा भी जाता है। इसी थिंकिंग के कारण बाल विवाह, दहेज, विधवाओं से भेदभाव और प्रॉपर्टी में कम शेयर (अगर मिलता है तो) जैसी कमियां सामने आती हैं।

आइए कुछ ऐसे बहानों पर गौर फरमाएं जो पुरुष महिलाओं को पीटने पर बनाते हैं.‘मुझे गुस्सा बहुत आता है’, ‘लाइफ में बहुत टेंशन है तो वह ऐसे ही निकलता है’। अरे तो आप गुस्से में अपने बॉस को क्यों नहीं मारते हो? केवल वाइफ को ही क्यों? आप बॉस को नहीं मारते हो क्योंकि ऐसा करने पर वह आपके खिलाफ एक्शन लेगा। क्या महिलाएं सुन रही हैं? ‘मैं वायलेंट हो जाता हूं क्योंकि मैं अपनी वाइफ से बहुत प्यार करता हूं’, ‘मेरा प्यार इसी तरह से सामने आता है क्योंकि मैं अपनी फैमिली की बहुत केयर करता हूं’। ओके, तो इस मामले क्या महिलाओं की तरफ से भी इतनी ही पिटाई पुरुषों की नहीं होनी चाहिए।

 

सच में लग रहा है कि कोई सिविल वॉर चल रहा है। भाई, बहनों को पीट रहे हैं, पिता बेटियों को, पति अपनी पत्नी को और कुछ मामलों में तो बेटे अपनी मां को पीट रहे हैं। इंडिया में द प्रोटेक्शन ऑफ वुमेन फ्रॉम डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट साफ-साफ कहता है कि किसी भी महिला को शेयर्ड हाउस में रहने का पूरा अधिकार है। महिलाओं में अक्सर सबसे बड़ा डर घर से बाहर निकाले जाने का होता है। एक्ट कहता है कि हर राज्य सरकार को ऐसी महिलाओं के लिए शेल्टर होम बनाने होंगे जो साझे के घर में नहीं रहना चाहती हैं। यही नहीं एक्ट के अनुसार महिला को एक प्रोटेक्शन ऑफिसर भी राज्य सरकार की तरफ से मुहैया कराया जाना चाहिए जो महिला की कोर्ट केस के मामल में मदद करेगा। इसका मतलब है कि ऐसी महिला को इस एक्ट के तहत अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए लीगल फीस नहीं चुकानी पड़ेगी।

इतिहास गवाह है कि पुरुष ही इस समस्या की जड़ हैं और अब समय आ गया है कि हम पुरुष ही इसका सॉल्यूशन निकालें। हमें इसके लिए प्रोएक्टिव होना होगा। क्या आप ऐसा पुरुष बनना चाहते हैं जिससे उसकी फैमिली डरे या घृणा करे या फिर ऐसा पुरुष जिसे प्यार और इज्जत मिले? आप घर पहुंचने पर बच्चों को दूर भागता या अपने पास आता देखना पसंद करेंगे? आप होम मेकर बनना चाहते हैं कि होमब्रेकर।

वैसे, मेल डॉमिनेटेड थिंकिंग का अपोजिट क्या है? जरा सोचिए।