मैं आमतौर पर सब्जी या फल खरीदने बाजार नहीं जा पाता हूं. मेरा प्रोफेशन मुझे यह मौका नहीं देता, लेकिन मुझे याद है कि बचपन में मैं अपनी मां व आंटी के साथ सब्जी-फल खरीदने मार्केट जाता था और खूब बोर होता था. वो सब्जी और फल की खरीदारी में घंटों लगाती थीं और हर फल व सब्जी को बारीकी से परखती थीं. वह फ्रेश है कि नहीं, उसमें क्या कमी है और अलग-अलग दुकानदारों के फल व सब्जियों के बीच क्वालिटी भी कंपेयर करते हुए बेस्ट को सेलेक्ट करती थीं. और यह सब तब होता था, जब मेरे दोस्त क्रिकेट के लिए मेरा इंतजार कर रहे होते थे.

आज जब मैं खार रोड या इसकी तरफ जाने वाली रोड से गुजरता हूं तो वहां फल और सब्जी की खरीदारी करती महिलाएं दिख जाती हैं. ठीक उसी तरह जैसे मेरी मां और आंटी खरीदा करती थीं. बस मुझे पुराने दिनों की याद आ जाती है. बेशक हमारे घर की महिलाएं फ्रेश फूड के लिए बहुत मेहनत करती हैं, लेकिन फिर भी इन फ्रेश फल और सब्जियों में बहुत सारा पॉयजन मौजूद रहता है. हम किसी फल या सब्जी की फ्रेशनेश उसे सूंघकर, दबाकर या उस पर लगे स्पॉट्स से पता कर सकते हैं, लेकिन हम इसमें मौजूद पेस्टीसाइड्स के लेवल के बारे में कैसे पता करें?

Farmer spraying pesticide

हम खाना क्यों खाते हैं? क्योंकि हमारी बाडी को न्यूट्रीशन चाहिए. पौष्टिक खाना हमारी शारीरिक व मानसिक सेहत को सही रखता है और हमें बीमारियों से लडऩे की ताकत देता है. अगर हम खाने के साथ बड़ी मात्रा में पेस्टीसाइड्स भी खा रहे हैं तो हम न्यूट्रीशन के साथ जहर भी खा रहे हैं और हमारा खाना खाने का मकसद ही पूरा नहीं हो रहा है. 60 के डिकेड में इंडिया में ग्रीन रिवोल्यूशन हुआ. बढ़ती आबादी को देखते हुए पॉलिसीमेकर्स ने खेतों की पैदावार बढ़ाने के लिए केमिकल्स के इस्तेमाल का फैसला किया. इस तरह से केमिकल फर्टिलाइजर्स और पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल खेती में शुरू हुआ. पेस्ट्स या कीड़े हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. इन्हें मारने के लिए ही हम पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल करते हैं. पेस्टीसाइड्स दरअसल जहर होते हैं.

माना जाता है कि स्प्रे किए जाने वाले पेस्टीसाइड का केवल 1 परसेंट ही कीड़ों पर गिरता है. बाकी 99 परसेंट फसल पर गिरता है, जमीन पर गिरता है, पानी तक पहुंचता है और हवा में उडक़र कुछ दूर तक जाता है. इस तरह से यह हमारे खाने और फिर हमारे भीतर पहुंच जाता है. कुदरत के अपने नियम हैं. उसने हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले इन पेस्ट्स को खाने वाले कुछ पेस्ट्स भी बना रखे हैं जो इन पेस्टीसाइड्स के जरिए मारे जाते हैं. हम कह सकते हैं पेस्ट्स दो तरह के होते हैं, एक वेजीटेरियन और दूसरे नॉन वेजीटेरियन. हम अपने नॉन वेजीटेरियन ‘फ्रेंड’ पेस्ट्स को भी पेस्टीसाइड्स से मार देते हैं. इस तरह वेजीटेरियन पेस्ट्स को दूसरी तरह के पेस्ट्स से खतरा कम हो जाता है.

धीरे-धीरे फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले पेस्ट्स पेस्टीसाइड्स के खिलाफ रजिस्टेंस डेवलप कर लेते हैं और हमें ज्यादा पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल करना पड़ता है. यह एक सर्किल है जो चलता रहता है और हमारे खाने में पेस्टीसाइड की मात्रा बढ़ती रहती है. पेस्टीसाइड्स हमारे किसानों को भी नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि वह पेस्टीसाइड्स स्प्रे करते समय इसके बहुत नजदीक होते हैं. इसे किसानों के लिए खतरनाक माना गया है. यही नहीं किसानों के कर्ज में डूबे होने का एक बड़ा कारण पेस्टीसाइड्स की ऊंची कीमतें हैं.

आंध्र प्रदेश में सरकार और एक महिला संगठन के प्रयासों से 225 एकड़ में शुरू हुई नॉन-पेस्टीसाइड फार्मिंग अब &5 लाख एकड़ में फैल गई है. पूरी तरह से आर्गेनिक खेती को अपनाने वाला सिक्किम देश का पहला राज्य है. अब बाकी राज्य भी ऐसा करने के बारे में सोच रहे हैं. पेस्टीसाइड्स पर लंबी बहस हो सकती है, लेकिन मेरा मानना है कि आखिर में हमें आर्गेनिक फार्मिंग को ही अपनाना होगा. और जब तक हम पूरी तरह से आर्गेनिक खेती न करने लगें, हमें एक गवर्नमेंट रेगुलेटरी बाडी बनानी होगी जो देश के शहरों में फलों व सब्जियों में पेस्टीसाइड्स का लेवल चेक करने की जिम्मेदारी निभाए.


अब बात एक रिपोर्ट की. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की रिपोर्ट कहती है कि हमारे द्वारा खाए जाने वाले हर फल व सब्जी में अगर पेस्टीसाइड एमआरएल (मैक्सिमस रेसिड्यू लिमिट) से ज्यादा न हो और परमिसिबल लेवल पर रहे तो भी रोजाना खाए जाने वाले फलों व सब्जियों के जरिए पेस्टीसाइड्स के एडीआई (एक्सेप्टेबल डेली इनटेक) से 400 परसेंट ज्यादा पेस्टीसाइड्स हमारे पेट में पहुंचते हैं.