बेटों में ऐसी क्या बात होती है जो हमें इतना आकर्षित करती हैं कि हम लड़कियों को गर्भ के भीतर ही खत्म करने में लग गए हैं? क्या लडक़े वाकई बहुत स्पेशल होते हैं या फिर वो बहुत अलग होते हैं?

लोगों से मिलने के बाद जब मैंने उनसे बेटों की चाह के पीछे छिपी वजहों के बारे में जाना तो उन पर बिल्कुल भी यकीन नहीं कर सका और उन वजहों में मुझे कोई तर्क ही नहीं नजर आया. मसलन उन्हें बेटा चाहिए क्योंकि अगर बेटी हुई तो फिर उन्हें उसकी शादी पर दहेज देना पड़ेगा या बेटी माता-पिता या अपने करीबी की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं कर सकती और यहां तक कि बेटी कभी भी ‘वंश’ या परिवार को आगे नहीं बढ़ा सकती है.

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ये सभी हम इंसानों के बनाए हुए तर्क हैं. पहले हमने ही दहेज जैसी प्रथा को बनाया और अब हम ही बेटियों को मारने में लगे हुए हैं मानों जैसे वो अकेले इन सबकी जिम्मेदार हों. हमने अपने आप ही यह तय कर लिया कि लडक़ी अंतिम संस्कार जैसे कामों को नहीं कर सकती है और फिर हम ही लड़कियों को जिम्मेदार ठहराते हैं. मुझे तो ‘वंश आगे कैसे बढ़ेगा’ जैसी बात मूर्खतापूर्ण लगती है, क्योंकि महिलाओं के पास वो ताकत है जिससे वो इंसानी सभ्यता को आगे बढ़ाने में लगी हुई हैं. पुरुष कभी भी बच्चे को जन्म नहीं दे सकते हैं. ऐसे में ये सारे बुरे ख्यालात कहां से आ रहे हैं और हम क्या सोचने में लगे हुए हैं?

हमें साथ में बैठकर इन सब के बारे में सोचने की जरूरत है. न केवल हमारे दिमाग में बसी इस बीमारी के बारे में, बल्कि इस सच का भी अहसास करना होगा कि बेटियां बहुत स्पेशल होती हैं. वो हमारी जिंदगी में एक महक और एक खुशी को लेकर आती हैं. उनके भीतर एक ऐसी संवेदनशीलता होती है जो शायद बेटों में देखने को नहीं मिलती.


एक नन्हीं बच्ची के साथ एक घर में रोशनी आती है, लड़कियां बहुत ही केयरिंग होती हैं. जो नजाकत, जो शोभा, खूबसूरती और जो चमक मेरी जिंदगी में मेरी बेटी इरा ने मुझे दी है, वो शायद मेरा बेटा जुनैद कभी नहीं ला सकता. मेरे बेटे में भी काफी खूबिया हैं जो दूसरों से अलग हैं, लेकिन एक बेटी हमें जिंदगी में जो देती है वो शायद एक बेटा नहीं दे सकता है. बेटा और बेटी दोनों ही काफी खास हैं. 

हमारे देश में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें ये महसूस करने पर मजबूर कर दिया गया है कि वो अधूरी हैं और उनकी कोई अहमियत ही नहीं है. जो सिर्फ इसलिए कमजोर हैं क्योंकि उनकी कोख में एक बच्ची है. किसी भी बच्चे का जन्म या फिर किसी महिला की कोख में नौ महीने के लिए बच्चे का होना, प्रकृति का चमत्कार होता है. इस समय वो ईश्वर के और प्रकृति के सबसे करीब होती है.

एक ऐसी जगह जहां पुरुष कभी भी पहुंच ही नहीं सकता है. सच तो यह है कि पुरुष का स्पर्म ही किसी भी बच्चे का सेक्स तय करता है. बच्चे का सेक्स तय करने के लिए सांइस का यूज करना न केवल इंडियन लॉ में अपराध है और समाज पर इसका जो असर हो रहा है वो भी काफी मूखर्तापूर्ण है.

Save girl child

इसके अलावा आप खुद से वो जादुई लम्हा छीन लेते हो जब इस दुनिया में एक जिंदगी अपनी आंखें खोलती है और आपको प्रकृति का एक अनमोल तोहफा मिलता है. मेरे तीनों बच्चों के केस में जब डॉक्टर्स ने हमें ‘बधाई’ दी और कहा कि आपको एक स्वस्थ बेटा/बेटी हुई है तो वो हमेशा मेरे लिए एक ऐसा स्पेशल मोमेंट रहा जिसे मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगा.

मेरा मानना है कि एक समाज के तौर पर हम उन तमाम माता-पिता को सम्मान, प्यार दें और उनकी तारीफ करें कि बेटियों के गौरवशाली माता-पिता हैं. हमें अब उन पुरानी मान्यताओं को छोडऩा पड़ेगा जो हमारी मजबूत नन्हीं बच्चियों को कमजोर बना रहे हैं. जब कभी भी हमारे घर में, पड़ोस में या फिर फ्रेंड सर्किल में कोई नन्हीं बच्ची जन्म ले तो आपका प्यार और आपकी तारीफ इस हद तक हो कि हम इस दिमागी बीमारी को दूर कर सकें और इससे बाहर आ सकें जिससे हम जूझ रहे हैं और मुझे लगता है कि हम ये जरूर कर सकेंगे. आइए हम इसके लिए एक लक्ष्य तय करें, द सेंसस ऑफ 2021.