नालों से बढ़ रहा प्रदूषण
सिटी में करीब 70 बड़े और 250 से ज्यादा छोटे नाले हैं। इनका गंदा पानी गंगा में गिरता है। यह नदी के पानी को जहरीला बना ही रहा है, इससे जल में रहने वाले जंतुओं का जीवन भी समाप्त हो रहा है। नदी में मछलियों के मरने से नदी का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ा रहा है। नदी में जल जंतुओं के होने से वे छोटी-मोटी गंदगी को खाकर साफ करते रहते हैं। लेकिन नालों में घर से निकले वाला डिटरजेंट, नहाने का साबुन और विभिन्न केमिकल युक्त पानी होता है। यही पानी नदी में पहुंच रहा है। इससे मछलियां मर जाती हैं जिससे नदी की गंदगी साफ नहीं हो पाती है. 

सैकड़ों नाले, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ तीन
सिटी में नालों की संख्या के हिसाब से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तो ऊंट के मुंह में जीरा हैं। इनमें से सिर्फ 24 बड़े नालों का पानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में ट्रीट करके गंगा में पहुंचाया जा रहा है। शेष 46 बड़े नालों का पानी बिन ट्रीट किए ही नदी में गिरा दिया जाता है। 250 छोटे नालों का पानी भी बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिराया जा रहा है। गंगा पोल्यूशन बोर्ड के एक प्रोजेक्ट मैनेजर ने बताया कि तीनों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में 250 एमएलडी पानी लिया जाता है। ट्रीटमेंट के बाद 212 एमएलडी पानी नदी में भेजा जाता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि शेष नालों के ट्रीटमेंट की व्यवस्था कब की जाएगी.

नदियों के किनारे कूड़े के ढेर 
नदियों के किनारे कूड़े के ढेर बजबजा रहे हैं। यही कूड़ा हवा चलने पर उड़ कर नदी में जाता है और पानी को विषैला बना रहा है। महाकुंभ मेले के दौरान जिन घाटों की सफाई की गई थी वे घाट फिर कूड़े से पट गए हैं। पॉलिथिन और कचरा नदी के किनारे फेंके जाने से यहां की स्थिति खराब हो रही है। शादी-ब्याह या कोई फंक्शन ऑर्गनाइज करने के बाद लोग बचा खाना और पत्तल तक नदी के किनारे ही फेंक देते हैं। यही बाद में नदी के पानी में मिल जाता है.

प्रदूषण के कारण गंगा के पानी में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ गया है। इससे मछलियों के साइज पर असर पड़ा है और इसका रीप्रोडक्शन घट रहा है। गंगा को बचाने के लिए नालों का पानी इसमें गिरने से रोकना होगा। यह सामूहिक प्रयास से ही संभव होगा. 
-डॉ। यूसी श्रीवास्तव, 
प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ जुलॉजी  
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी 

Report by : Arvind Kumar Dwivedi

नालों से बढ़ रहा प्रदूषण

सिटी में करीब 70 बड़े और 250 से ज्यादा छोटे नाले हैं। इनका गंदा पानी गंगा में गिरता है। यह नदी के पानी को जहरीला बना ही रहा है, इससे जल में रहने वाले जंतुओं का जीवन भी समाप्त हो रहा है। नदी में मछलियों के मरने से नदी का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ा रहा है। नदी में जल जंतुओं के होने से वे छोटी-मोटी गंदगी को खाकर साफ करते रहते हैं। लेकिन नालों में घर से निकले वाला डिटरजेंट, नहाने का साबुन और विभिन्न केमिकल युक्त पानी होता है। यही पानी नदी में पहुंच रहा है। इससे मछलियां मर जाती हैं जिससे नदी की गंदगी साफ नहीं हो पाती है. 

सैकड़ों नाले, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ तीन

सिटी में नालों की संख्या के हिसाब से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तो ऊंट के मुंह में जीरा हैं। इनमें से सिर्फ 24 बड़े नालों का पानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में ट्रीट करके गंगा में पहुंचाया जा रहा है। शेष 46 बड़े नालों का पानी बिन ट्रीट किए ही नदी में गिरा दिया जाता है। 250 छोटे नालों का पानी भी बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिराया जा रहा है। गंगा पोल्यूशन बोर्ड के एक प्रोजेक्ट मैनेजर ने बताया कि तीनों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में 250 एमएलडी पानी लिया जाता है। ट्रीटमेंट के बाद 212 एमएलडी पानी नदी में भेजा जाता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि शेष नालों के ट्रीटमेंट की व्यवस्था कब की जाएगी।

नदियों के किनारे कूड़े के ढेर 

नदियों के किनारे कूड़े के ढेर बजबजा रहे हैं। यही कूड़ा हवा चलने पर उड़ कर नदी में जाता है और पानी को विषैला बना रहा है। महाकुंभ मेले के दौरान जिन घाटों की सफाई की गई थी वे घाट फिर कूड़े से पट गए हैं। पॉलिथिन और कचरा नदी के किनारे फेंके जाने से यहां की स्थिति खराब हो रही है। शादी-ब्याह या कोई फंक्शन ऑर्गनाइज करने के बाद लोग बचा खाना और पत्तल तक नदी के किनारे ही फेंक देते हैं। यही बाद में नदी के पानी में मिल जाता है।

 

प्रदूषण के कारण गंगा के पानी में ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ गया है। इससे मछलियों के साइज पर असर पड़ा है और इसका रीप्रोडक्शन घट रहा है। गंगा को बचाने के लिए नालों का पानी इसमें गिरने से रोकना होगा। यह सामूहिक प्रयास से ही संभव होगा. 

-डॉ। यूसी श्रीवास्तव, 

प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ जुलॉजी  

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी 

Report by : Arvind Kumar Dwivedi