-बाराद्वारी स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी के निर्मला शिशु भवन में कई गर्ल चाइल्ड रह रही हैं

-चार दिन से एक महीने तक की बच्चियों उसके माता-पिता छोड़ गए

-पूजा के दौरान भी मां के इस कन्या रुप को है अपनों का इंतजार

JAMSHEDPUR : चार महीने की सरस्वती। तीन महीने की पूजा या फिर चार महीने की वंदना। किसी को अपने पास देखकर ये खुश होती हैं, मुस्कुराती हैं और खेलते हुए गोद में आना चाहती हैं। ये बोल नहीं सकतीं। अगर बोल पाती तो शायद पूछतीं। सवाल पूछतीं, नवरात्र में उनकी पूजा क्यों नहीं होती। वे भी तो कन्याएं हैं, लेकिन उनके सवालों का जवाब न तो आज कोई दे सकता और न ही कल कोई दे पाएगा। जिन्हें अपनों ने ठुकरा दिया हो, उनका कोई तो नहीं होता। नवरात्र में हम मां की कन्या के रूप का पूजन करते हैं। पर क्या वास्तव में सरस्वती, पूजा या फिर वन्दना को कन्या रूप में पूजे बिना मां के प्रति हमारी पूजा-अर्चना संपन्न हो पाएगी? हमें अपने आसपास देखना होगा और इस सवाल का जवाब खुद ढूंढना होगा। फिलहाल ये बच्चियां बाराद्वारी स्थित निर्मला शिशु भवन में अपनों के इंतजार में हैं।

तो इसलिए छोड़ दिया

बाराद्वारी स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटीज के निर्मल शिशु भवन में ज्यादातर गर्ल चाइल्ड्स ऐसी हैं, जिन्हें मां या पिता वहां छोड़ गए हैं। मां छोड़ने आई तो कह दिया कि बच्ची के पिता की मौत हो गई, पिता छोड़ने आए तो बोल दिया कि बच्ची की मां इस दुनिया में नहीं रही। ऐसे में एक सवाल जरूर उठता है कि क्या सिर्फ मां या पिता दोनों का प्यार इन बच्चियों को नहीं दे सकते। क्या ये बेटियां हैं इसलिए इनकी जिम्मेवारी उठाना उनके लिए मुश्किल हो गया?

कुछ तो बाहर में पड़ी मिली

निर्मल शिशु भवन में बच्चों की केयर टेकर सिस्टर का कहना था कि कई ऐसी भी न्यू बॉर्न गर्ल चाइल्ड्स वहां थीं जिन्हें उनके पैरेंट्स ने पैदा होते ही छोड़ दिया। सड़क किनारे मिलने वाली बच्चियां फिलहाल तो शिशु भवन में नहीं है, लेकिन ऐसी बच्चियां यहां अक्सर लाई जाती हैं। बाद में उन्हें रांची भेज दिया जाता है।

जो समय के साथ नहीं चलते वही ऐसा सोचते हैं

क्या सिर्फ कहने को हम ख्क्वीं सदी में जी रहे हैं? क्या सिर्फ दिखावे के लिए बेटे और बेटियों में समानता की बात की जाती है? क्या बेटियां बेटों से किसी मामले में कम हैं? इन्हीं सवालों का जवाब खोजने के लिए हमने समाजशास्त्री डॉ पीके सिंह से बात की। उनका कहना था कि किसी भी इंसान की प्रगति और उसके विचारों में नवीनता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है उसका समय के साथ चलना। पर जो ऐसा नहीं कर पाते वे पुरानी सोच के साथ जीते हैं और बेटे-बेटियों में भेद करते हैं। डॉ सिंह का कहना था कि आज के समय लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों को कड़ी चुनौती दे रहे। कुछ क्षेत्रों में तो वे लड़कों से काफी आगे भी हैं। उनका कहना था कि पॉलिटिकल लीडर्स हों, एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिशियल्स या फिर कॉरपोरेट सेक्टर में बड़े पदों पर बैठी महिलाएं, वे पुरुषों के सामने एक सफल व्यक्तित्व का एग्जामपल पेश कर रही हैं।