ड्रेस की तरह किताबें बदल रही हैं

पहले के जमाने में एक किताब से घर के कई लोग पढ़ते थे। अंकल, बड़ा भाई, छोटी बहन, दोस्त और पड़ोसी भी। शायद इसलिए लोग इसे सहेजकर रखते भी थे। हर बार कवर नई-नई लग जाती, पर किताब वही पुरानी। पर, अब पुरानी किताब कोई नहीं पढ़ता। यूं कहें पढऩे को मिलता ही नहीं।

अपना 'ऑक्सीजन' खत्म करते जा रहे

स्कूलों में अब किताबें ड्रेस की तरह चेंज होने लगी हैं, तो एक-एक स्टूडेंट्स को एक ही क्लास में दर्जनों किताबें पढऩी पड़ती है। अभी यह बात इसलिए कि सोमवार को अर्थ डे है। इस मौके पर हम बताना चाहते हैं कि किस तरह एक-एक पन्ने की आड़ में हम अपना 'ऑक्सीजन' खत्म करते जा रहे हैं। बगैर ऑक्सीजन के इंसान जिंदा नहीं रह सकता है, पर हम यह भूलते जा रहे हैं। तभी तो, पेड़ लगाया तो नहीं जाता, पर धड़ाधड़ कट जरूर रहे हैं। जिस बुक्स में ऑक्सीजन बचाने का पाठ पढ़ते हैं, उसी के लिए ऑक्सीजन खत्म करते जा रहे हैं।

बांस के एक पेड़ से सौ पन्ना

हम पेपर की जरूरत को पूरा करने के लिए पेड़ों की धड़ल्ले से कटाई कर रहे हैं। पहले सिर्फ बांस की लकड़ी से पेपर बनाये जाते थे, पर अब कई सॉफ्ट लकड़ी का यूज होता है। इन दिनों हर चीजों में पेपर का यूज होता है। हम पेपर पर कई मामलों में डिपेंडेंट हो गए हैं। एक्सपर्ट के अनुसार सौ पन्ना बनाने में बांस का एक पूरा पेड़ लग जाता है। तरुमित्र आश्रम के हेड फादर रॉबर्ट ने बताया कि पेपर तो बना लिए जाते हैं, पर उस हिसाब से पेड़ लगाये नहीं जाते।

2 यूनिट बिजली से एक पेज

अगर हम जल्दी ही पेपर का अल्टरनेटिव नहीं ढूंढ़े, तो आने वाले सालों में ना पेड़ बचेगा और ना ही बिजली मिलेगी। धनबाद कोल रिसोर्स और पतरातू थर्मल पावर के अनुसार एक पेज पेपर को बनाने में 2 यूनिट खर्च होता है। इस संबंध में पतरातू थर्मल पावर के डी मुखर्जी ने बताया कि पेड़ काटने से लेकर उसे पेपर का रूप देने तक में 2 यूनिट बिजली खर्च होती है। वहीं, धनबाद कोल रिसोर्स के एक सर्वे के अनुसार 1 यूनिट बिजली में 52 किलो कोयला जलता है। इससे आप समझ सकते हैं कि जो कागज हम यूज करते हैं, वह कितना इंपॉटेंट है।

18 पेड़ कटते हैं और लगते हैं सिर्फ एक

पेड़ बचाने के मामले में हम थोड़े भी सेंसिटिव नहीं हैं। जब जिसे मौका मिलता है, अपनी जरूरत के हिसाब से पेड़ काटने लगता है। प्लांटेशन करे ना करे, पर पेड़ों को काटने का सिलसिला जारी है। सेंटर फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट, इंडिया के एक सर्वे के अनुसार हर दिन 18 पेड़ काटे जाते हैं और सिर्फ एक पेड़ लगाए जाते हैं। इस सर्वे के अनुसार देश में 80 लोगों पर एक पेड़ है। अगर पेड़ काटने और लगाने का यही रेशियो रहा, तो आने वाले समय में जंगल खत्म हो जाएगा। इस संबंध में फादर रॉबर्ट बताते हैं कि एक इंसान को ऑक्सीजन के लिए 16 पेड़ों की जरूरत होती है, पर अपने स्टेट में पेड़ों की यह स्थिति हो गई है कि एक इंसान को ऑक्सीजन के लिए 120 पेड़ चाहिए।

फ्यूचर के लिए बहुत ही नुकसानदेह

पूरे वल्र्ड में वन थर्ड पोर्शन में जंगल या वन होना चाहिए, पर अगर इंडिया की बात करें तो पूरे देश में 22 परसेंट लैेंड पर ग्रीनरी है। झारखंड से अलग होने के बाद बिहार में मात्र 9 परसेंट लैंड पर ग्रीनरी है। इस संबंध में एएन कॉलेज के इंवायरमेंट डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। बिहारी सिंह ने बताया कि बिहार में 33.3 परसेंट लैंड पर ग्रीनरी होनी चाहिए, पर ऐसा है नहीं। अभी वर्तमान में बिहार में मात्र 9 परसेंट लैंड पर ग्रीनरी है, जो फ्यूचर के लिए बहुत ही नुकसानदेह है।

असम के अलावा हर स्टेट में बनते हैं पेपर

कुछ सालों तक पूर्वोत्तर राज्य यानी असम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश आदि स्टेट में पेपर बनाये जाते थे और इन्हीं स्टेट से बाकी स्टेट में पेपर के रिक्वायरमेंट को पूरा किया जाता था। पर, पेपर की बढ़ रही डिमांड के बाद अब हर स्टेट अपने यहां पेपर बनाने लगे हैं। इस संबंध में डॉ। बिहारी सिंह ने बताया कि पेपर बनाने में सॉफ्ट लकड़ी का यूज किया जाता है। बांस के अलावा भी कई पेड़ों से पेपर बनाये जाने लगे हैं।

 

बगैर पेपर भी चल सकती है जिंदगी

- प्राइवेट या गवर्नमेंट ऑफिसेज में पेपर का यूज कम से कम करें। जहां जरूरी हो, वहीं पेपर का यूज करें।  

- जो काम ऑनलाइन हो सकता है, उसके लिए कागज का यूज नहीं करें।

- ऑनलाइन रेलवे टिकट अब भी लोग कागज पर प्रिंट करवाकर सफर करते हैं, जबकि इसके लिए मोबाइल का यूज आसान है।

- स्टडी मेटेरियल का यूज अधिक से अधिक नेट के थ्रू होना चाहिए। बार-बार नोटबुक बदलने और बुक्स बदलने पर रोक लगाना होगा।

बड़ा फायदेमंद है पेड़

- जहां भी पेड़ है, वहां स्वच्छ हवा मिलती है।

- एयर पॉल्यूशन कम करने में पेड़ हेल्पफुल होता है।

- डस्ट आदि को भी रोकता है पेड़।

- न्वाइज पॉल्यूशन को कम करता है पेड़।

- मिट्टी को बांधकर एक जगह पर रखने में पेड़ सहयोग करता है।

- फोटो सेंथेसिस करने में पेड़ की बहुत जरूरत होती है।

- धरती और पर्यावरण को बचाने में पेड़ बहुत इंपॉर्टेंट है।

पेपर बनाने में इनका होता है यूज

- बांस

- यूकोलिप्टस

- कॉटर ट्री

- प्लाई ट्री

- जीओ का पेड़

नोट : इसके अलावा हर कमजोर लकड़ी से भी पेपर बनाया जाता है।

अर्थ डे की हुई शुरुआत

वल्र्ड लेवल पर ग्रीन हाउस इफेक्ट को कम करने के लिए अर्थ डे सेलिब्रेट किया जाता है। इसकी शुरूआत 22 अप्रैल 1970 को सबसे पहले यूएसए में हुई थी, जो बाद में दूसरे देशों में भी मनाया जाने लगा। 1990 के वर्ष को यूएनओ द्वारा पहली बार पृथ्वी दिवस घोषित करने के  बाद यह हर साल इंटरनेशनल लेवल पर मनाया जाने लगा। पृथ्वी को ग्रीन हाउस गैसों से बचाने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल यह 22 अप्रैल को मनाया जाता है।

हम कोशिश में लगे हैं कि अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। पर्यावरण में पेड़ का कितना महत्व है, इसके लिए हम स्कूल स्तर पर कई प्रोग्राम भी चलाते हैं। बिहार में कार्बन डेटिंग प्रोग्राम की बहुत ही आवश्यकता है। दूसरे स्टेट की तरह यहां भी इसे शुरू करने का प्लान है।

बीसी नायक, डायरेक्टर, इंवायरमेंट विंग, पर्यावरण और वन विभाग