अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई मौखिक आदेश मिलता है तो उसे लिखित में दर्ज करने के बाद ही उसका पालन करना चाहिए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों के बार-बार स्थानांतरण बंद होने चाहिए और उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए उनका कार्यकाल तय करने का भी सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया.

अदालत का यह निर्णय उस समय आया है जब देश में उत्तर प्रदेश की आईएएस अधिकारी  दुर्गा शक्ति नागपाल और हरियाणा कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के कथित उत्पीड़न को लेकर बहस जारी है.

संसद बनाए कानून

"नौकरशाहों की नियुक्ति, स्थानांतरण और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को नियंत्रित करने के लिए संसद को एक कानून बनाना चाहिए."

-सुप्रीम कोर्ट

पीटीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि नौकरशाही के कामकाज में व्यापक सुधारों का सुझाव देते हुए न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि नौकरशाहों की नियुक्ति, स्थानांतरण और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को नियंत्रित करने के लिए संसद को एक कानून बनाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक संसद कानून नहीं बताती है, तब तक अदालत के दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा.

पीटीआई के मुताबिक अदालत ने कहा कि नौकरशाही में ज़्यादातर गिरावट राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण आई है और नौकरशाहों को राजनीतिक पदाधिकारियों के मौखिक आदेश पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए और उनकी प्रत्येक कार्रवाई लिखित संवाद पर आधारित होनी चाहिए. इस खंडपीठ में न्यायमूर्ति पीसी घोष भी शामिल थे.

तय हो कार्यकाल

नेताओं के मौखिक आदेशों को न मानें अधिकारी: सुप्रीम कोर्टअदालत ने कहा कि नौकरशाहों के न्यूनतम कार्यकाल को तय करने से न सिर्फ उनमें पेशेवराना अंदाज़ और कार्य कुशलता का विकास होगा बल्कि बेहतर प्रशासन में भी मदद मिलेगी.

अदालत ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से कहा कि वो  नौकरशाहों को कार्यकाल को तय करने के लिए तीन महीनों के भीतर दिशानिर्देश जारी करें.

सर्वोच्च न्यायालय ने 83 सेवानिवृत्त नौकरशाहों की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फ़ैसला दिया.

इन नौकरशाहों में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम, अमरीका में भारत के पूर्व राजदूत आबिद हुसैन, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी, पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति और पूर्व सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह शामिल हैं.

याचिका में राजनीतिक हस्तक्षेप के ज़रिए नौकरशाही का अपमान करने के संबंध में अदालत से दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया था.

फ़ैसले के बाद टीएसआर सुब्रमण्यम ने कहा कि, "यह एक महत्वपूर्ण फ़ैसला है. लोक सेवक किसी के निजी सेवक नहीं हैं."

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