-स्वास्थ्य विभाग में बड़ा खेल, दवा और एक्विपमेंट खरीद की जांच के आदेश

-मानकों को ताक पर रख खरीदीं दवाएं, तीन सदस्यीय कमेटी गठित

-वेंटीलेटर, अल्ट्रासाउंड, मेडिसिन सहित अन्य मशीनों में बड़ा गोलमाल

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sunil.yadav@inext.co.in LUCKNOW:

घोटालेबाजों ने स्वास्थ्य विभाग को बीमार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दवा और एक्विपमेंट खरीद के नाम पर करोड़ों रुपये हड़पने वाले घोटालेबाजों को सबक सिखाने की सरकार ने तैयारी कर ली है। असल में स्वास्थ्य विभाग में बीते वर्षो में बड़े घोटाले की शिकायतें के बाद सरकार के आदेश पर प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने जांच के आदेश दिए हैं। जांच के लिए शासन ने तीन सदस्यीय कमेटी को सौंप दी है।

प्रमुख सचिव ने बनाई कमेटी

उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, हेल्थ मिनिस्टर और प्रमुख सचिव को स्वास्थ्य विभाग में दवाओं की खरीद फरोख्त में हो रहे घोटाले की शिकायत मिली थी। जानकारी के अनुसार, दवाओं व एक्विपमेंट की खरीद में खूब मनमानी की गई। साक्ष्यों के आधार पर जांच के आदेश दे दिए गए। जिस पर पिछले हफ्ते ही प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अरुण कुमार सिन्हा ने तीन सदस्यी कमेटी जांच के लिए गठित कर दी है। कमेटी में विशेष सचिव सारिका मोहन, अवधेश पांडेय व पीजीआई के एक सदस्य को रखा गया है।

बड़ी मछलियां फंसेंगी

कमेटी बीते वर्षो में स्वास्थ्य विभाग में मंगाई करोड़ों की मशीनों, दवाओं के टेंडर और खरीद प्रक्रिया की जांच करेगी। सभी रेट कांट्रैक्ट की जांच की जाएगी। आखिर किन शर्तो पर कंपनियों को रेट कांट्रैक्ट (आरसी) जारी की गई। आरोप है कि रेट्स अधिक होने के बावजूद कई कंपनियों को अधिकारियों ने आरसी जारी की है। घोटाले में शासन से लेकर फ मेडिकल स्टोर डिपार्टमेंट (सीएमएसडी) तक कई अधिकारियों के खेल से परदा उठने की उम्मीद है।

500 करोड़ की तो सिर्फ दवा

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार पिछले कुछ वर्षो में स्वास्थ्य विभाग में मानकों को ताक पर रखकर दवाएं और एक्विपमेंट खरीदे गए हैं। बता दें कि स्वास्थ्य विभाग वर्ष भर में लगभग सवा पांच सौ करोड़ की दवाएं खरीदता है। जबकि तीन सौ करोड़ से अधिक के एक्विपमेंट भी खरीदे गए। इसके अलावा लगभग नेशनल हेल्थ मिशन की ओर से 13 नेशनल प्रोग्राम के लिए दवाएं खरीदी जाती हैं और बड़ी संख्या में अन्य दवाएं व एक्विपमेंट भी खरीदे जाते हैं। एनएचएम के बजट से आने वाली दवाओं की खरीद-फरोख्त भी स्वास्थ्य विभाग ही करता है।

दवाओं का सिंडीकेट

हेल्थ मिनिस्टर सिद्धार्थ नाथ सिंह ने हाल में स्वास्थ्य महानिदेशालय का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि स्वास्थ्य विभाग में दवाओं का सिंडीकेट काम कर रहा है। उन्होंने तब ही मामले की जांच के संकेत दिए थे। यही नहीं उन्होंने सिंडीकेट को खत्म करने और दवा व एक्विपमेंट प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नया सिस्टम बनाने की बात भी कही थी।

वेंटीलेटर खरीद में घोटाला

पिछले वर्ष ही स्वास्थ्य विभाग की ओर से 120 वेंटीलेटर खरीदे जाने की प्रक्रिया चल रही है। स्वास्थ्य विभाग की कमेटी ने सप्लाई करने वाली कंपनी के लिए स्किलर हेल्थ का चयन भी कर लिया। लेकिन किसी ने शासन में शिकायत कर दी। मामले में डीजी हेल्थ को जांच के आदेश दिए गए तो पता चला कि कंपनी के चयन में मानकों की धज्जियां उड़ाई गई। जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि वेंटीलेटर के जरिए ऑसीजन का प्रेशर टेंडर के अनुसार एक से 25 एलपीएम होना चाहिए। लेकिन अफसरों ने सिर्फ 0.2 से 15 एलपीएम प्रेशर वाले वेंटीलेटर सप्लाई करने वाली कंपनी मेसर्स स्किलर हेल्थ का चयन कर लिया। मतलब वेंटीलेटर होने के बावजूद ऑक्सीजन मरीजों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाएगी जिससे जान जाने का खतरा है। बता दें कि एक वेंटीलेटर की कीमत करीब 17 लाख रुपये है।

दिए थे 40 झूठे हलफनामे

स्वास्थ्य महानिदेशालय स्थित चीफ मेडिकल स्टोर्स डिपार्टमेंट (सीएमएसडी) में दो कुछ वर्ष पूर्व दवा कंपनियों ने टेंडर हासिल करने के लिए झूठे हलफनामे दाखिल किए थे। तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अरविंद कुमार ने मामले को जांच के दौरान पकड़ लिया और टेंडर प्रक्रिया में शामिल सभी कंपनियों के हलफनामों की जांच कराई थी। जांच में 40 से ज्यादा के हलफनामे झूठे पाए गए थे। इन कंपनियों महंगे रेट पर दवा सप्लाई करने के लिए टेंडर भरा था। जबकि सरकारी नियमों के तहत कंपनियों को वह न्यूनतम दरे कोट करनी होती है, जिससे कम किसी और राज्य में वे दवा सप्लाई नहीं कर रही हो। दोषी पाए जाने के बाद सभी को ब्लैक लिस्ट करने की तैयारी थी लेकिन बाद में कार्रवाई नहीं की गई।

कंडम निकले थे अल्ट्रासाउंड

पिछले कुछ वर्षो में कई जिला अस्पतालों के लिए अल्ट्रासाउंड मशीने खरीदीं गई। इन्हें जिलों में भेज दिया गया। बाद में पता चला कि ज्यादातर मशीनें काम ही नहीं कर रही हैं। बड़ी संख्या में शिकायतें जिला अस्पतालों से मिली थीं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया।

रेट कांट्रैक्ट की जांच के आदेश दिए गए हैं, इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। रिपोर्ट मिलने के बाद ही आगे का एक्शन तय होगा।

-अरुण कुमार सिन्हा, अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य