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- 30 करोड़ में बनना था ऑक्सीजन प्लांट

- 2010 में मेडिकल कॉलेज ने भेजा था प्रस्ताव

- 2013 में दोबारा भेजा गया प्रस्ताव

- 12.5 लाख रुपए मंथली ऑक्सीजन पर खर्च करता है बीआरडी

- 1.5 करोड़ सालाना की बचत होगी प्लांट से

- 20 से 25 करोड़ रुपए अब तक ऑक्सीजन की बिक्री से मिलता

- 0 रुपए में अब तक प्लांट होता बीआरडी के पास और खत्म हो जाता कमीशन का खेल भी

 

GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से मासूमों की मौत के बाद हाहाकार मचा तो जांच में यह बात तो साबित हो ही गई कि ऑक्सीजन की खरीद में कमीशनखोरी का खेल चलता है। लेकिन, कमीशन का यह खेल यहीं तक नहीं है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने जब तहकीकात की तो पता चला कि कमीशनखोरों की पहुंच हर सरकार में ऊपर तक रही। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछली सरकार को एक नहीं, दो बार बीआरडी में ऑक्सीजन प्लांट का प्रस्ताव भेजा गया लेकिन उस पर मुहर नहीं लगी। 30 करोड़ का यह प्लांट बन जाता तो कमीशन का खेल ही खत्म हो जाता लेकिन इस प्लांट के नहीं होने से अभी हर साल डेढ़ करोड़ की ऑक्सीजन खरीदी जाती है और और इस खरीद में सबका कुछ न कुछ हिस्सा होता है।

 

दो बार रिजेक्ट हुआ प्रस्ताव

2010 में मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। आरके सिंह थे। उस समय उन्होंने बीआरडी में ऑक्सीजन प्लांट का प्रस्ताव शासन को प्रस्ताव भेजा। उन्होंने ऑक्सीजन की अपनी मांग, उस पर होने वाले सालाना खर्च आदि की भी जानकारी दी। बताया कि यदि प्लांट लग जाए तो इससे क्या फायदे होंगे लेकिन प्रस्ताव रिजेक्ट हो गया। 2013 में डॉ। केपी कुशवाहा ने एक बार फिर इसी तरह का प्रस्ताव भेजा। शासन को बताया कि 30 करोड़ के इस प्लांट से ऑक्सीजन की आपूर्ति तो आसान होगी ही, बीआरडी के लिए यह आय के स्रोत का भी काम करेगा लेकिन यह प्रस्ताव भी रिजेक्ट हो गया.

तो 0 रुपए में मिल जाता प्लांट

मेडिकल कॉलेज में हर साल लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का ऑक्सीजन खरीदता है यानी हर माह 12.5 लाख रुपए ऑक्सीजन पर खर्च करता है। वहीं हर वर्ष जुलाई, अगस्त और सितंबर माह में इंसेफेलाइटिस का प्रकोप अधिक होने पर ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है। यदि 2010 में ही प्रस्ताव पर मोहर लग गई होती तो सात साल में सालाना डेढ़ करोड़ के हिसाब से करीब 10.30 करोड़ रुपए बचते। वहीं ऑक्सीजन की बिक्री कर भी अब तक 20-25 करोड़ रुपए मिलते। इस तरह प्लांट का दाम 30 करोड़ रुपए इससे निकल चुके होते और यह 0 रुपए में बीआरडी को मिला एक तोहफा होता।

 

वर्जन

गोरखपुर में मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन की आवश्यकता थी। इसको देखते हुए शासन को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन शासन ने प्रस्ताव पर कोई विचार नहीं किया। अगर प्रस्ताव को स्वीकृत मिल गई होती और प्लांट लग गया होता तो मेडिकल कॉलेज की तस्वीर ही कुछ और होती।

डॉ। केपी कुशवाहा, पूर्व प्रिंसिपल, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर