- अमानवीय परिस्थितियों में बच्चों को छोटी गाडि़यों में ठूंस कर पहुंचाया जा रहा है स्कूल

- समय-समय पर चेतावनी देने की औपचारिकता मुस्तैदी के साथ पूरी करता है प्रशासन

- आज तक अवैध वैन चलाने वाले स्कूलों के खिलाफ नहीं हुई कोई कड़ी कार्रवाई

आंकड़े

1200 से भी ज्यादा अवैध स्कूल वैन चल रहे हैं रांची में

15000 बच्चे हर रोज जाते हैं भेड़-बकरियों की तरह स्कूल

120 स्कूलों को नहीं मिली है किसी बोर्ड से मान्यता

1.05 करोड़ की कमाई हर माह होती है निजी वाहनों के मालिकों की

लापरवाही ने दिया हादसों को न्योता
पिछले साल 19 जून की भरी दोपहरी में रांची के एक बड़े स्कूल बस के चालक को दिन में ही हलक तर करने की तलब हो गयी। उसने अपनी इच्छा का दमन नहीं किया और मौका देखकर दो ग्लास शराब पी ली। इसके बाद वह स्कूल बस में बच्चों को बिठाकर घर छोड़ने के लिए निकल पड़ा। ओवरब्रिज पहुंचते-पहुंचते शराब ने अपनी काम कर दिया। बस ब्रिज के बीच में ही गोल घूम गयी। महज 2 फीट के फासले पर बस का इंजन बंद हुआ और गियर में होने के कारण बस रुक गयी, वर्ना उस दिन एक साथ पचास बच्चे ओवरब्रिज से नीचे गिर जाते। फिर क्या होता, यह कोई नहीं जानता। इस नजारे को देख स्थानीय लोग कांप गये और प्रतिशोध में बस के शराबी ड्राइवर को खूब पीटा। आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह तो महज एक उदाहरण है, यह समझने के लिए कि रांची में स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा की क्या स्थिति है। इस मामले में पैरेंट्स खुद भी उतने ही लापरवाह हैं, जितना की स्कूल प्रशासन।

बस सुविधा नहीं मिलने से लगाते हैं जुगाड़
रांची में स्कूल बसों की बड़ी समस्या है। नामचीन स्कूलों में बस से बच्चों को ले जाने और वापस लाने के लिए कतार में लगना पड़ता है। हर एरिया की सीट फुल है, तो स्कूल वाले बस फैसिलिटी देने से इंकार कर देते हैं। अब बच्चों को हर दिन स्कूल ले जाने और लाने के लिए कोई न कोई तो जुगाड़ चाहिए, ऐसे में लोग स्थानीय स्तर पर गाड़ी वालों को ठीक करते हैं। वे यह नहीं देखते कि गाड़ी वाले की योग्यता कितनी है, दक्षता कितनी है और वह कुशल कितना है।

ट्रैफिक भी है खतरनाक, डरते हैं बच्चे
छोटी-छोटी गाडि़यों को जब रांची के अति व्यस्त सड़कों से होकर स्कूल पहुंचाया जाता है, तो ज्यादा से ज्यादा ट्रिप करने के चक्कर में वैन ड्राइवर बेतहाशा स्पीड में गाड़ी चलाता है। छोटे-छोटे बच्चे ट्रैफिक के बीच से स्पीड में चलती गाड़ी और डेड ब्रेक लगने के कारण भयभीत भी हो जाते हैं। इन सब के बीच हमेशा एक्सीडेंट का खतरा बना रहता है। छोटे-मोटे हादसे तो आये दिन होते रहते हैं। पिछले 11 अप्रैल को ही एक ओमनी वैन का चक्का खुलकर तब फेंका गया, जब वह ओवरब्रिज क्रॉस कर रहा था। अच्छी बात यह रही कि इस हादसे में किसी बच्चे को चोट नहीं पहुंची।

बहुत बड़ा है अवैध वाहनों का कारोबार
रांची में अवैध तरीके से वैन चलाने वालों का कारोबार बहुत बड़ा है। करीब 1200 अवैध स्कूल वैन सिटी में चल रहे हैं। हालांकि, इनका कोई विश्वसनीय स्त्रोत नहीं है और न ही सरकार के पास आंकड़े हैं, फिर भी अधिकारी दबी जबान ही मानते हैं कि अगर सघन जांच हो जाए, तो आंकड़ा और बढ़ सकता है। बताया जाता है कि सिटी के करीब 15000 बच्चों को हर रोज इन अवैध वाहनों से ही घर से स्कूल और फिर वापसी का सफर तय करना पड़ता है। कम से कम 700 रुपए छोटे वाहनों वाले एक बच्चे का किराया वसूलते हैं। इससे करीब 1.05 करोड़ की कमाई हर माह निजी वाहनों के मालिकों को हो जाती है। इतने वाहन ज्यादातर शहर के उन स्कूलों के लिए चलाये जाते हैं, जिन्हें किसी भी बोर्ड से मान्यता नहीं मिली हुई है।

क्या कहते हैं डीटीओ
निजी स्कूलों के बसों को लेकर एक वृहद जांच रिपोर्ट तैयार की जा रही है। इधर इलेक्शन के कारण रिपोर्ट पूरी नहीं हो पाई थी। अब छोटे-छोटे वैन से बच्चों की अवैध लोडिंग को रोकने के लिए अभियान चलाया जाएगा। शीघ्र ही कार्रवाई होगी।
नागेंद्र पासवान, डीटीओ, रांची

क्या कहते हैं पैरेंट्स
हम पैरेंट्स खुद जिम्मेवार हैं, अपने बच्चों की दुर्गति के। अगर कोई व्यक्ति स्कूल तक साइकिल से बच्चे को छोड़ने का वादा करे, तो पैरेंट्स उसके साथ भी बच्चे को भेज देंगे। यह मानसिकता बदलनी होगी।
अमरलता चौधरी

बच्चों को भेड़ बकरियों की तरह छोटी-छोटी गाडि़यों में भेजना बिल्कुल गलत है। लेकिन, दूसरा पहलू यह भी है कि आखिर गार्जियंस क्या करें? उनके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है। इसी वजह से ऐसा हो रहा है।
सम्राट अशोक

प्रशासन को इस बात की ताकीद करनी चाहिए कि बच्चों की जिंदगी के साथ कोई खिलवाड़ न हो। लोगों को थोड़ी परेशानी हो, लेकिन जब अंकुश लगेगा, तो विकल्प भी खुद ब खुब सामने आ जाएगा।
नौशाद अंसारी