- फीस बहुत पर सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं

- व्यवसायिकता के कारण गिर रहा है शिक्षा का स्तर

किसी भी देश का भविष्य वहां की शिक्षा नीति पर निर्भर करता है। स्कूलों की बढ़ती फीस और कम होता पढ़ाई स्तर सबसे बड़ी समस्या बन गया है। यही नहीं, अब शिक्षा के मंदिर भी व्यवसाय का सबसे बड़ा जरिया बन गए हैं। लिहाजा शिक्षा व्यवस्था की दिशा और दशा में बदलाव आवश्यक हो गया है। इस बाबत दैनिक जागरण आईनेक्स्ट का कैम्पेन 'नायसिल प्रजेंट्स गर्मी लगी क्या' मंगलवार को फूलबाग कॉलोनी तथा पीएल शर्मा रोड में आयोजित किया गया। इस दौरान शहरवासियों ने शिक्षा प्रणाली में बदलाव पर बेबाकी से राय रखी।

Meerut । आधुनिकीकरण के दौर में शिक्षा प्रणाली भी व्यवसायिकता के भंवर में फंसकर रह गई है। हालत यह है कि संस्कारों की शिक्षा देने वाले मंदिर अब व्यवसाय के अड्डे बन गए हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के कैम्पेन 'नायसिल प्रजेंट्स गर्मी लगी क्या' में शहरवासियों ने स्कूल-कॉलेजों कही मनमानी पर विचार रखे। लोगों ने कहा कि स्कूल अपने अपने हिसाब फीस में बढ़ोत्तरी कर देते हैं। बावजूद इसके बच्चों को सुविधाएं कम ही मिलती हैं। इसमें भी सुधार की जरूरत है।

स्कूल नहीं, इंडस्ट्री कहिए जनाब

धीरज शर्मा ने कहा कि स्कूल अब इंडस्ट्री बन गए हैं। उनका शिक्षा से कोई वास्ता नहीं है। स्कूल से जुड़ी हर वस्तु वहीं पर मिलती है। कोई भी चीज चाहे वह किताब हो या फिर प्रोजेक्ट सभी स्कूल में मिलेंगे। बाहर जाने की जरूरत ही नहीं है।

बच्चों का गिर रहा है मनोबल

आज की प्रतिस्पर्धा के चक्कर में कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों का मनोबल गिर रहा है। स्कूल से बच्चों के दिमाग पर काम का इतना दवाब बना दिया जाता है कि वह उसके बोझ तले दब जाता है। पहले वह स्कूल में पढ़कर आता है। उसके बाद वह ट्यूशन जाता है फिर वह घर आकर पढ़ता है। उसे खेलने के लिए या फिर माइंड फ्रेश करने के लिए समय ही नहीं मिलता है।

संस्कार से दूर हो रहे बच्चे

लोगों ने कहा कि स्कूल से बच्चों को संस्कार नहीं मिल रहे हैं.अपनी पुरानी संस्कृति क्या थी और हमारा इतिहास क्या है उनको मालूम ही नहीं है। आज के दौर में बच्चे महज कागजी ज्ञान का पुलिंदा बनकर रह गए हैं।

स्टे्टस बन गए स्कूल

सुविधाएं स्कूल में मिल ही नहीं रही। इसके अलावा वह एक स्टे्टस सिंबल बनकर रह गया है। बच्चे एक दूसरे से हर चीज में तुलना करते है। इससे ज्यादा माता-पिता तुलना करते हैं। वह यह नहीं देखते कि जिस स्कूल में वह बच्चे को पढ़ा रहे हैं और जितनी फीस वह दे रहे है उसके बदले उनको क्या मिल रहा है।

नहीं है काउंसलिंग व्यवस्था

स्कूलों में काउंसलिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चे मानसिक रूप से थक जाते है। स्कूल व कोचिंग सेंटर को उनके दिमाग में भर दिया जाता है। कि अगर वह यह नहीं बने या फिर कुछ और न बने तो आप कुछ नहीं है।

ये आए सुझाव

- स्कूलों पर नजर रखने के लिए एक टीम का हो गठन

- बच्चों को होनी चाहिए नियमित काउंसलिंग

- बच्चे को क्वालिटी देखकर आगे बढ़ाया जाए

- बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाए जाए

- स्कूलों में एनसीआरटी की पुस्तकें लागू की जाएं।

- हर साल कोर्स न बदला जाए

- ड्रेस में भी चेंज नहीं होना चाहिए

- सुविधाओं के हिसाब से स्कूलों की फीस तय हो

- शिक्षा के गिरते स्तर की ओर ध्यान दिया जाए।

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वर्जन

स्कूलों में जिस हिसाब से फीस है उस हिसाब से सुविधा नहीं मिलती है। हर चीज का चार्ज लिया जाता है। बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो चुका है। सामान्य परिवार अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता है।

-नवनीत गर्ग फूलबाग कॉलोनी

सरकारी स्कूलों की स्थिति में यदि सुधार हो जाए तो प्राइवेट स्कूलों की मनमानी खत्म हो जाएगी। हर साल फीस में बढ़ोत्तरी हो जाती है। लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं करता है। क्योंकि अधिकारियों के बच्चे भी उन स्कूलों में पढ़ रहे होते हैं।

-मनोज वर्मा, फूलबाग कॉलोनी

सबसे पहले बच्चों के ऊपर से पढ़ाई का दबाव हटना चाहिए। किताबों की संख्या कम होनी चाहिए। बच्चों को अपनी संस्कृति व इतिहास के बारे में जानकारी देनी चाहिए। वरना स्कूलों में पढ़ाई का कोई फायदा नहीं है। बल्कि हम लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना शुरू कर देना चाहिए।

-डॉ। शशिकांत पीएल शर्मा रोड

स्कूलों की एकदम से बाढ़ आ गई है। लेकिन बच्चों को उस हिसाब से जनरल नॉलेज नहीं मिल रही है। वह आधुनिक दुनिया की ओर भाग रहे हैं। जबकि विदेशी हमारी संस्कृति अपना रहे हैं। बच्चों पर इंग्लिश बोलने व सीखने का दबाव नहीं बनाना चाहिए।

-डॉ। एसडी शर्मा पीएल शर्मा रोड

हर साल स्कूल फीस तो बढ़ाते हैं साथ ही कोर्स भी बदल देते हैं। यह नहीं होना चाहिए। इन पर कार्रवाई होनी चाहिए। सभी स्कूलों का एक जैसा कोर्स निश्चित करना चाहिए। जिसमें हमारी संस्कृति व इतिहास के बारे में जानकारी की भी किताब होनी चाहिए।

-प्रदीप शर्मा पीएल शर्मा रोड

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शासन की गाइड लाइन के अनुसार ही सारे नियम व कानून को लागू किया जाता है। यदि किसी स्कूल पर कार्रवाई की जाती है। तो वह कोर्ट से स्टे ले आते हैं। फिर भी स्कूलों में शासन की गाइड लाइन लागू हो इसका ध्यान दिया जाता है।

श्रवण कुमार यादव, जिला विद्यालय निरीक्षक