हाल ही में भुवनेश्वर में ऑर्गनाइज 99वें विज्ञान कांग्रेस में पीएम ने कहा कि साइंटिफिक रिसर्च के मामले में इंडिया अपने नेबरिंग कंट्री चीन से काफी पीछे है। उन्होंने यह भी कहा कि कंट्री में काफी संख्या में फीमेल साइंटिस्ट अनइम्पलॉयड हैं।

हमने की पड़ताल

पीएम के इस स्पीच के बाद हमने भी यह जानना चाहा कि आखिर साइंस का यह हाल क्यों है? सिटी के कॉलेजेज में साइंस और आट्र्स के स्टूडेंट्स का रेशियो क्या है और आज के यूथ साइंस से दूर क्यों हो रहे हैं?  इन बातों को जानने के लिए हमने सिटी के कॉलेजेज के एडमिशन रजिस्टर को खंगाला, स्टूडेंट्स और एक्सपट्र्स से बात भी की।

1 : 6 का है ratio

सिटी के कॉलेजेज में आट्र्स (इसमें कॉमर्स के स्टूडेंट्स भी शामिल हैं) और साइंस पढऩे वाले स्टूडेंट्स का रेशियो 1 और 6 का है। आट्र्स और कॉमर्स के 6 स्टूडेंट्स पर साइंस का 1 स्टूडेंट है। सिटी के कॉलेजेज में ग्रेजुएशन न्यू सेशन (2011-14) मेें आट्र्स और कॉमर्स स्ट्रीम में कुल 7200 स्टूडेंट्स एडमिशन ले चुके हैं। इसी सेशन में ग्रेजुएशन में साइंस स्ट्रीम में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या मात्र 1260 है। इसके अलावा पीजी की बात की जाए तो इसमें भी करीब-करीब ग्रेजुएशन वाली स्थिति ही है। पीजी आट्र्स और कॉमर्स स्ट्रीम में न्यू सेशन में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या लगभग 1550 है, जबकि साइंस में एडमिशन लेने वाले हैं सिर्फ 315.

Seats रह जाती हैं vacants

सिटी के कॉलेजेज में साइंस की सीट्स कम हैं, लेकिन ये भी भर नहीं पातीं। सिटी के सभी कॉलेजेज की बात की जाए तो यूजी और पीजी कोर्स में लगभग 20 परसेंट सीट्स वैकेंट रह जाती हैं। सिर्फ यही नहीं साइंस में एडमिशन लेने वाले तकरीबन 5 परसेंट स्टूडेंट्स कुछ ही दिनों बाद अपनी फैकल्टी चेंज कर आट्र्स में एडमिशन ले लेते हैं।

आखिर ऐसा क्यों?

साइंस के प्रति घटते क्रेज के बारे में करीम सिटी कॉलेज में सेक्शन ऑफिसर वसी हम्माद कहते हैं कि इसका सबसे बड़ा कारण स्टूडेंट का बेस कमजोर होना है। वे कहते हैं कि रूरल बैकग्राउंड से आने वाले स्टूडेंट्स को साइंस का प्रॉपर नॉलेज नहीं होता है। इसके अलावा स्कूलिंग के दौरान स्टूडेंट्स को फेल नहीं करने के कई बोर्ड के फैसले का प्रभाव भी इसपर पड़ता है। जब ऐसे स्टूडेंट्स साइंस स्ट्रीम लेकर आगे की पढ़ाई करते हैं तो उन्हें प्रॉब्लम होती है, लेकिन वे पैरेंट्स के प्रेशर में उसे चेंज नहीं कर पाते। इसका असर यह होता है कि ऐसे स्टूडेंट्स का रिजल्ट खराब हो जाता है।

अब wait करना नहीं चाहते

वीमेंस कॉलेज में प्रिंसिपल इंचार्ज और प्लेसमेंट सेल की हेड डॉ गौरी सुरेश का कहना है कि आज के स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्स इंतजार नहीं करना चाहते। स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के दौरान ही या फिर कोर्स कंप्लीट करने के तुरंत बाद जॉब करना चाहते हैं। उन्हें ऐसा करने के लिए उनके पैरेंट्स भी प्रेशर डालते हैं। डॉ गौरी इसके लिए बीपीओ को काफी हद तक जिम्मेवार मानती हैं। वे कहती हैं कि बीपीओ ने स्ट्रीम के इंपॉर्टेंस को खत्म कर दिया। इसमें ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को भी अच्छे पैकेज पर जॉब मिल जाती है चाहे किसी भी स्ट्रीम का हो।

Infrastructure की कमी भी है जिम्मेवार

यूथ का साइंस में लगातार घट रहे इंटरेस्ट को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी को भी जिम्मेवार है, यह मानना है वर्कर्स कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ एके सिन्हा का। उनका कहना है कि साइंस की पढ़ाई के लिए कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसमें सबसे पहले आता है लेबोरेट्री। वे कहते हैं कि जिस एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में अच्छे लैब नहीं होंगे, वहां स्टूडेंट्स पढ़ाई नहीं करना चाहते। यही वजह है कि साइंस की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए बाहर चले जाते हैं।

Vocational courses की बल्ले-बल्ले

मजे की बात तो यह है कि सिटी के कॉलेजेज में वोकेशनल कोर्सेज की सभी सीट्स हमेशा फुल रहती हैं। यहां बीबीए, बीसीए, बीएससी आईटी और एमबीए जैसे वोकेशनल कोर्सेज की पढ़ाई होती है। सभी कॉलेजेज की बात की जाए तो इन कोर्सेज में करीब 1200 सीट्स हैं। इस बार भी सभी कॉलेजेज में इन कोर्सेज में सीट्स फुल हो चुकी हैं। एक्सपट्र्स मानते हैं कि बेहतर कॅरियर अपॉर्चुनिटी की वजह से इनमें ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स इंटरेस्ट दिखाते हैं।