नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाक़ों में 48.5 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं जबकि शहरों में 77.5 प्रतिशत महिलाएं। कुल मिलाकर देखा जाए तो 57.6 प्रतिशत महिलाएं ही इसका इस्तेमाल करती हैं।

लेकिन सवाल ये भी उठता है कि क्या जिन सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल हम हाइजिन और सुरक्षा के नाम पर करते हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं? क्या उससे महिलाओं की सेहत पर असर पड़ता है?

 

क्या है मानक?

महावारी के दौरान महिलाएं जिन सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं, वो अक्सर उसे सुरक्षित मान कर चलती है।

दरअसल सरकार ने इसके लिए मानक तय कर रखे हैं।

इंडियन ब्यूरो स्टैंडर्स ने सैनेटरी पैड के लिए पहली बार 1980 में मानक तय किए, जिसमें समय-समय पर बदलाव भी किए गए हैं।

कितना सुरक्षित है सैनिटरी पैड का इस्तेमाल?

 

तय मानक के मुताबिक :

- सैनिटरी पैड बनाने के लिए अब्सॉर्बेंट फ़िल्टर और कवरिंग का सबसे अधिक ख़्याल रखना होता है।

- फिल्टर मैटेरियल सेल्युलोज़ पल्प, सेल्युलोज़ अस्तर, टिशूज़ या कॉटन का होना चाहिए। ये गांठ, तेल के धब्बों, धूल और इसमें किसी भी दूसरी चीज़ की मिलावट नहीं होनी चाहिए।

- कवरिंग के लिए भी अच्छी क्वालिटी के कॉटन का इस्तेमाल होना चाहिए।

 

कॉटन बड से कान साफ करके खुद को मॉडर्न समझते हैं? बहरे हो जाना तब बताना

दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी इरविन कॉलेज में कपड़ा और परिधान विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर भावना छनाना ने एक वेबसाइट से बातचीत में कहा कि सैनिटरी पैड का काम सिर्फ़ ब्लीडिंग को सोखना नहीं है। इसे हाइजिन के पैरामीटर पर भी खरा उतरना चाहिए।

अमूमन जब हम सैनिटरी पैड खरीदने जाते हैं तो ब्रांड वैल्यू पर ट्रस्ट करते हैं और ख़रीद लेते हैं जो कि ग़लत है। सैनिटरी पैड ख़रीदते समय उसका पीएच लेवल ज़रूर देखना चाहिए।

साल 2003 में अहमदाबाद स्थित कंज़्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने एक टेस्ट किया था। जिसमें उन्हें बाज़ार में बिकने वाले 19 सैनिटरी ब्रांड्स में धूल मिली थी और कुछ में चीटियां भी।

कितना सुरक्षित है सैनिटरी पैड का इस्तेमाल?


सूरज या पॉवर हाउस की जरूरत नहीं, अब यह 'बैक्टीरिया' ही रात दिन बनायेगा बिजली!

क्या कहती हैं गाइनोकोलॉजिस्ट?

दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में प्रैक्टिस करने वाली गाइनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर मधु गोयल का कहना कि बाज़ार में बिकने वाले सैनिटरी पैड्स पूरी तरह सुरक्षित नहीं होते हैं। इनमें जिस प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल किया जाता है वो कार्सिनोजेनिक हो सकता है। ऐसे में इन पैड्स का इस्तेमाल ख़तरनाक हो सकता है।

उनका कहना है कि ये पैड्स पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि ये बायोडिग्रेबल नहीं होते हैं। साथ ही इन्हें इस्तेमाल करने के दौरान सबसे अधिक ख़्याल चेंज करने का रखना होता है। समय पर पैड चेंज नहीं करना संक्रमण को न्योता दे सकता है।

 

क्या है डॉक्टरों की सलाह

एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉक्टर शिखा बताती हैं कि अमूमन हमारे यहां जिस तरह के सैनिटरी पैड इस्तेमाल होते हैं वो 'आउटर यूज़' के लिए होते हैं। ऐसे में केमिकल का असर अंदरुनी अंगों पर नहीं पड़ता है।

लेकिन पीरियड्स के दौरान सफ़ाई का ख़्याल रखना बहुत ज़रूरी है। सफ़ाई का ख़्याल नहीं रखा जाए तो इंफेक्शन होने का डर रहता है। अगर इंफ़ेक्शन बहुत बढ़ जाए तो कुछ मामलों में कंसीव करने में भी परेशानी आ सकती है।

कितना सुरक्षित है सैनिटरी पैड का इस्तेमाल?

 

फेसबुक पर चिपके रहने वाले लोग अपने दोस्तों को इंसान नहीं, समझते हैं 'सामान'!

 

गाइनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर मधु गोयल भी ऐसी ही सलाह देती हैं।

- जिस वक्त ब्लड फ्लो ज्यादा तभी टेलरमेड पैड यूज़ करें। फ्लो ज़्यादा नहीं है तो कॉटन बेस्ड पैड ही इस्तेमाल करें।

- समय पर पैड चेंज करना बहुत ज़रूरी है।

- बिना हाथ धोए पैड चेंज न करें।

- डिस्पोज़ करते समय उसे अच्छे से लपेटकर ही कूड़ेदान में डालें। हालांकि होना तो ये चाहिए कि जिस पेपर में यूज़्ड पैड डालें उस पर लाल निशान लगा दें।

डॉक्टर मधु गोयल मानती हैं कि मैन्स्ट्रुएशन कप का इस्तेमाल करना सबसे सुरक्षित है लेकिन वो इस बात से भी इनकार नहीं करती हैं कि यह अभी आसानी से उपलब्ध नहीं है।

International News inextlive from World News Desk