14 मई की रात टाटानगर-बिलासपुर पैसेंजर ट्रेन को नक्सलियों ने मनोहरपुर के पास रोक लिया था और उस पर पोस्टर और बैनर चिपकाए थे। इसमें करीब 40 नक्सली शामिल थे, सभी मॉडर्न आम्र्स से लैस थे। 18 मई को स्टेट पुलिस हेड क्वार्टर ने 111 ईनामी माओवादियों की लिस्ट जारी की और माना कि इनमें से 81 झारखंड में एक्टिव हैं। इन सबके बावजूद रेलवे स्टेशन और पैसेंजर ट्रेंस में सिक्योरिटी को लेकर पुलिस एक्टिव नहीं दिख रही। जबकि रेलवे स्टेशन हमेशा से नक्सलियों का सॉफ्ट
टारगेट रहा है।

स्टेशन की सिक्योरिटी राम भरोसे
टाटानगर के आस-पास के छोटे स्टेशंस जैसे आदित्यपुर, गम्हरिया, बीरबांस, सलगा झोड़ी और आसनबनी रेलवे स्टेशन की सिक्योरिटी राम भरोसे हैं। ये सभी स्टेशन टाटानगर जीआरपी के ज्यूरिडिक्शन में आता है। टाटानगर जीआरपी के पास कुल 43 कांस्टेबल्स और 15 हेड कांस्टेबल्स हैं। इनके पास टाटानगर के अलावा आस-पास के सभी स्टेशन की सिक्योरिटी की जिम्मेवारी है। स्थिति यह है कि छोटे स्टेशन पर जीआरपी के पोस्ट नहीं हैं। वहां इसके कांस्टेबल भी नहीं होते। जब कोई इंसीडेंट हो या वहां से पुलिस फोर्स की डिमांड होती है तो टाटानगर से कुछ कांस्टेबल भेज दिए जाते हैं। इन स्टेशन पर पैसेंजर्स को सेफ्टी देने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

आरपीएफ का भी वही हाल
जीआरपी के अलावा आरपीएफ का भी वही हाल है। टाटानगर आरपीएफ के अंतर्गत आस-पास के 12 छोटे स्टेशन आते हैं। टाटानगर आरपीएफ के पास 81 कांस्टेबल्स हैं। सभी स्टेशन और उसके आस-पास की सिक्योरिटी की जिम्मेवारी इन्हीं की है। आरपीएफ के कमांडेंट एके चौरसिया कहते हैं कि मैन पावर की काफी कमी है। वह कहते हैं कि इन 81 में से कोई कभी बीमार रहा, कोई छुट्टी पर रहा तो स्थिति और खराब हो जाती है।


मैन पावर की काफी कमी
टाटानगर और उसके आस-पास के रेलवे स्टेशन की सिक्योरिटी के लिए जितनी संख्या में जीआरपी और आरपीएफ के कांस्टेबल्स और ऑफिसर्स होने चाहिए उससे काफी कम संख्या में अवेलेवल हैं। जीआरपी में जहां 40 से ज्यादा कांस्टेबल और ऑफिसर्स की कमी है वहीं आरपीएफ में भी सैंक्शन पोस्ट के अगेंस्ट में 26 परसेंट वर्किंग हैंड की कमी है। रेल एसपी (इंचार्ज) अजय लिंडा कहते हैं कि पहले स्थिति और भी खराब थी, अब तो मैन पावर की कमी को कम करने की कोशिश की गई है।

पैसेंजर ट्रेन में स्कॉट : मैन पावर की कमी का रोना
मनोहरपुर की घटना के बाद रेलवे और स्टेट पुलिस का कहना था कि पैसेंजर टे्रंस में भी स्कॉट की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। स्कॉट के नाम पर ट्रेंस में आपको हाथ में डंडा लिए इक्के-दुक्के कांस्टेबल दिखाई देंगे। स्कॉट नहीं स्टार्ट किए जाने पर आरपीएफ के कमांडेंट एके चौरसिया कहते हैं कि स्कॉट के लिए जरूरी होता है कि उसमें कम से कम 30 कांस्टेबल और 2 ऑफिसर्स हों। सभी कांस्टेबल के पास आर्म होना भी जरूरी होता है। वह कहते हैं कि मैन पावर की कमी होने की वजह से इतनी संख्या में कांस्टेबल और ऑफिसर्स नहीं भेजा सकता। इसके साथ वह यह भी कहते हैं कि कम संख्या में पुलिस फोर्स को आर्म के साथ भेजने पर खतरा बना रहता है। यानी वे ट्रैप किए जा सकते हैं। यानी फिलहाल पैसेंजर ट्रेंस में स्कॉट को लेकर ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।

टाटानगर रेलवे स्टेशन के आस-पास वाले स्टेशन पर जब पुलिस फोर्स की जरूरत होती है हम उन्हें अवेलेवल करा देते हैं। उन छोटे स्टेशन पर जीआरपी कांस्टेबल या ऑफिसर्स हमेशा नहीं होते।
- निलेश कुमार
थाना इंचार्ज जीआरपी टाटानगर

मैन पावर की तो कमी रहती ही है। मेल टे्रंस में सीआरपीएफ, आरपीएफ और स्टेट पुलिस संयुक्त रूप से स्कॉट प्रोवाइड करा रहे हैं। इंटेलीजेंस की रिपोर्ट के अनुसार ही हम अपनी स्ट्रैटजी प्लान करते हैं। पैसेंजर ट्रेन में स्कॉट भेजना मुश्किल है। ट्रेन हर जगह रुकती है तो ऐसे में हमारे जवान ट्रैप हो सकते हैं।
- अरुण कुमार चौरसिया
कमांडेंट आरपीएफ

पहले तो जीआरपी में मैन पावर की और भी कमी थी। अभी तो कुछ ठीक भी है। जहां तक माओवादियों की हरकत की बात है इसके लिए हमें स्पेशल इंस्ट्रक्शन होते हैं, हम उसी पर काम करते हैं। पैसेंजर ट्रेंस में सिविल डे्रस में पुलिस फोर्स की व्यवस्था की जा रही है। रिस्क
को देखते हुए भी हमें काम करना पड़ता है।
- अजय लिंडा
रेल एसपी(एक्स्ट्रा चार्ज)

जीआरपी हो या आरपीएफ इसमें मैन पावर की कमी तो हमेशा से रही है। इसे तुरंत पूरा भी नहीं किया जा सकता। यह बात सही है कि मैन पावर की कमी होने की वजह से हमें कई बार अपनी स्ट्रैटजी बदलनी पड़ती है। इसके बावजूद मैं कहना चाहूंगी कि पैसेंजर्स की सिक्योरिटी से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
- कुमुद चौधरी
डीजी रेलवे