- विदेशों में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों में डायबिटीज के अधिक होते हैं चांसेज

- उत्तर प्रदेश डायबिटीज एसोसिएशन की कांफ्रेंस के अंतिम दिन डायबिटीज के बचाव व लक्षणों पर हुई चर्चा

ALLAHABAD: दुनिया के विकसित देशों में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों में भी डायबिटीज होने के ज्यादा चांसेज होते हैं। उनका डायबिटिक होने का प्रतिशत इन देशों के लोकल लोगों से अधिक होता है। इसका कारण अनुवांशिकता और लाइफ स्टाइल है। यूएसए से आए डॉ। आरजी नायक के मुताबिक विदेशों में शुगर पेशेंट होने के लिए भारतीय होना भी बड़ा कारण माना जाता है। डॉ। नायक उत्तर प्रदेश डायबिटीज एसोसिएशन की दो दिवसीय क्फ्वीं एनुअल कांफ्रेंस के अंतिम दिन बोल रहे थे। उन्होंने दवाओं के क्लीनिक ट्रायल पर भी चर्चा की।

बेहद जरूरी है क्लीनिक ट्रायल

डॉ। नायक ने कहा कि आजकल डायबिटीज की नई दवाएं मार्केट में आ रही हैं। इन्हें जारी करने वाले रेगुलेटरी को पहले इन दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से मरीजों के हार्ट और ब्रेन पर दवाओं का बुरा प्रभाव पड़ सकता है। कई बार दवाओं के मार्केट में आने के बाद उनके साइड इफेक्ट के बारे में जानकारी होती है। यूएसए ने ख्008 में दवाओं के क्लीनिक ट्रायल को लेकर बेहतर नियम बनाए हैं, इसका पालन सभी देशों को करना चाहिए।

इलाज की नियमित प्रणाली जरूरी

नई दिल्ली एम्स से आए प्रो। निखिल टंडन ने कहा कि डायबिटीज के मरीजों के इलाज का बेहतर तरीका और दवाएं मार्केट में मौजूद हैं। फिर भी चाहकर भी वह जल्दी ठीक नहीं हो पाते। इसका सीधा कारण इलाज की नियमित प्रणाली का अभाव है। इलाज के दौरान लेटलतीफी और मनमानी भी इसका बड़ा कारण है। इस संबंध में प्रो। टंडन ने एशिया लेवल पर एक विश्लेषण किया तो पाया कि इलाज के सिस्टम में सुधार की बहुत ज्यादा जरूरत है। जहां डॉक्टर इलाज के प्रॉपर सिस्टम को फोकस नहीं करते वहीं मरीजों में नियमित जांच कराने और दवाएं खाने की आदत का अभाव पाया गया।

किडनी फेल्योर का बड़ा कारण

हैदराबाद से आई किडनी फिजीशियन डॉ। मनीषा ने बताया कि हर साल 80 लाख लोग किडनी की बीमारी से ग्रसित होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण डायबिटीज है। डायबिटीज के इलाज के दौरान डॉक्टर किडनी की जांच को तवज्जो नहीं देते जो नुकसानदेय साबित होता है। ऐसे मरीजों को साल में एक बार अपना यूरीन टेस्ट जरूर कराना चाहिए। एक बार किडनी फेल्योर होने पर इलाज काफी महंगा हो जाता है और मरीजों की मौत हो जाती है।

इससे सबक लेने की जरूरत है

आस्ट्रेलिया से डॉ। मार्क कैनेडी ने कहा कि उनके देश में इंडिया से ज्यादा डायबिटीज होने का रिस्क लोगों पर है। बावजूद इसके मरीज कम हैं। इसका सबसे बड़ा कारण समय-समय पर जांच कराया जाना है। वहां पर लोग ब्लड में शुगर की जांच इंडिया की अपेक्षा जल्दी करवाते हैं। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में डायबिटीज के व्यापक तौर पर फैलने के बावजूद लोगों में जागरुकता का अभाव है। शुरुआती लक्षणों की पहचान व जानकारी नहीं होने पर लोग आखिरकार इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।

खतरे की घंटी है मोटापा

डायबिटीज एजूकेशन फोरम के डॉ। मनोज कुमार ने कहा कि डायबिटीज के सबसे बड़े कारणों में मोटापा शामिल है। इसको कंट्रोल करने के लिए नियमित एक्सरसाइज करना जरूरी होता है। खाने में तेल-चटनी से बचना होगा। अक्सर सब्जियों में बहुत ज्यादा तेल डाला जाता है जो गलत है। कम कोलेस्ट्राल वाले तेलों का उपयोग खानपान में करना चाहिए। दो से ढाई चम्मच तेल एक बार में काफी होता है। पेड़-पौधों से तैयार होने वाले तेल सेहत के लिए बेहतर माने जाते हैं।