- एफएनएसी में 6 परसेंट मरीजों की डायग्नोसिस ठीक नहीं

- टागरेट थिरेपी से स्तन कैंसर का सही और सस्ता में इलाज संभव

LUCKNOW: ब्रेस्ट कैंसर के लिए शारीरिक परीक्षण, मैमोग्राफी के बाद कोर निडिल बायोप्सी होनी चाहिए। क्योंकि अब तक की जा रही फाइन निडिल एस्पीरेशन साइटोलॉजी (एफएनएसी) की जांच में एक परसेंट लोगों में कैंसर न होते हुए भी कैंसर डायग्नोस होता है। साथ ही पांच परसेंट मरीजों में कैंसर होते हुए भी कैंसर का पता नहीं चलता। क्योकि इस तकनीक में सिरिंज से कैंसर सेल लिया जाता है जिसमें बदलाव देखा जाता है कई बार खराब सेल नहीं आते। यह जानकारी शनिवार को संजय गांधी पीजीआई में आयोजित ब्रेस्ट कैंसर कोर्स एंड डायग्नोसिस कार्यशाला में डॉ। गौरव अग्रवाल ने दी।

डॉ। गौरव अग्रवाल ने बताया कि कोर निडिल बायोप्सी में गांठ का टुकड़ा लेकर हिस्टोपैथोलॉजिस्ट कैंसर का पता लगाते हैं। इस तकनीक में फाल्स कैंसर पॉजिटिव आने की आशंका 10 गुना कम हो जाती है साथ ही कैंसर मिस होने की दर दो फीसदी तक रह जाती है। ब्रेस्ट कैंसर पर आयोजित ब्रेस्ट कैंसर कोर्स में डायग्नोसिस की नई तकनीक के बारे में प्रदेश के सौ से अधिक डॉक्टर्स को जानकारी दी गई। एसजीपीजीआई के ब्रेस्ट कैंसर स्पेशलिस्ट प्रो। गौरव अग्रवाल ने बताया कि अब टारगेट थेरेपी के जरिए ब्रेस्ट कैंसर के मरीज में जिस तरह के इलाज की जरूरत होती है वही दिया जाता है। जिससे कैंसर ठीक करने की सफलता दर में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।

गांठ को न करें नजरअंदाज

डॉ। गौरव अग्रवाल ने कहा कि 90 परसेंट मामलों में दर्द रहित गांठ होती है। कुछ के निपल से पानी या खून आता है और पेन भी होता है। अगर गांठ को नजरअंदाज किया तो यह आगे चलकर गंभीर रूप धारण करता है इसलिए कोई भी गांठ है उसकी सही जांच जरूरी है। उन्होंने बताया कि हर महिला को महीने में एक बार अपने ब्रेस्ट की जांच जरूर करनी चाहिए। अगर कहीं कोई गांठ मालूम पड़ती है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। समय से बीमारी पता चलने पर उसे ठीक किया जा सकता है। एसजीपीजीआई की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ। दीपा कपूर और डॉ। अंजू रानी ने महिला रोगों के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर प्रो। नीरज रस्तोगी, केजीएमयू की प्रो। कीर्ति श्रीवास्तव, लोहिया इंस्टीट्यूट के डॉ। गौरव गुप्ता सहित अन्य स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स ने भी अपने विचार रखे।

केस खराब करने के बाद पहुंचते हैं मरीज

इंडोसर्जन प्रो। ज्ञानचंद ने बताया कि भारत में हर साल एक लाख बीस हजार स्तन कैंसर के नए मामले सामने आते हैं। ज्यादातर लोग स्थानीय डॉक्टर्स से ही सर्जरी करा लेते हैं जिसके कारण चार से पांच सौ मामले ही हमारे पास पहुंचते हैं। जिनमें ज्यादातर मरीज ऐसे होते हैं जो केस काफी बिगड़ने के बाद ही हमारे पास पहुंचते हैं।

प्रो। अमित अग्रवाल ने बताया कि 2005 में हमारे पास 60 परसेंट मरीज स्तन कैंसर के तीसरे और चौथे स्टेज में आते थे। अब 10 वर्ष बाद 60 फीसदी मामले पहले और दूसरे स्टेज में पहुंच रहे हैं। लेकिन अभी भी सामान्य गांठ के साथ आने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम है।