हिन्दुस्तानी एकेडेमी में बाजारवाद के दौर में लोक साहित्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

ALLAHABAD: लोक की व्यापकता को अंदर से महसूस किया जा सकता है। भारतीय परिवेश का कोई भी उत्सव या संस्कार लोक के बिना संभव नहीं है। लेकिन आज बाजारवाद ने सबकुछ अपनी शर्तो पर जैसे स्वीकार किया है और हमने भी अपनी समूची मानसिकता से उस नकलीपन को जैसे आत्मसात सा कर लिया है। यह अपने आप में ही दु:खद है। यह बातें हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से शुक्रवार को सभागार में बाजारवाद के दौर में लोक साहित्य विषय पर हुई संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता कमल नयन पांडेय ने कहीं।

लोक पुरोधा जगदीश पीयूष ने कहा कि बाजारवाद के दौर में लोक साहित्य की सभी विधाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं या तेजी से खो रही हैं। इस संदर्भ में एक लोकोक्ति बहुत प्रचलित है पैसा न कौड़ी, बाजार जाए दौड़ी यही पैसा ही बाजारवाद की नियति भी है और उपलब्धि भी। डॉ। इंद्रमणि कुमार ने विषय की महत्ता पर प्रकाश डाला। संचालन करते हुए नंदल हितैषी ने कहा कि आज विज्ञापन और बाजारवाद के चलते साहित्य की सभी विधा अपना अलग-अलग रास्ता तलाश रही हैं। कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया।

वेबसाइट हुई लांच, अतिथियों का सम्मान

एकेडेमी सभागार में संगोष्ठी के दौरान ही एकेडेमी की वेबसाइट www.hindustaniacademy.com की लांचिंग की गई तो भोजपुरी साहित्य की प्रख्यात कलाकार शारदा पांडेय की पुस्तक ओह दिन का लोकार्पण किया गया। एकेडेमी के सचिव रवीन्द्र कुमार ने कमल नयन पांडेय, जगदीश पीयूष व डॉ। इंद्रमणि कुमार को स्मृति चिन्ह व शॉल देकर सम्मानित किया। संगोष्ठी में प्रो। रामकिशोर शर्मा, रामनरेश तिवारी पिंडीवासा, शिवराम उपाध्याय, नरेश कुमार गौड़, डॉ। अनिल सिंह, डॉ। शांति चौधरी, कैलाश नाथ पांडेय, समाज शेखर आदि मौजूद रहे।