- आठ साल बाद आई हिन्दी भवन की याद, 2005 में ही बना था हिन्दी भवन

-पहली बार राजभाषा विभाग ने फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन में मनाया हिन्दी दिवस

PATNA: यूपीएससी भी हिन्दी के साथ साजिश कर रहा है। हम हिन्दी में काम नहीं करना चाहते। यह बात हिन्दी के प्रोफेसर बलराम तिवारी ने रविवार को हिन्दी दिवस पर कही। ख्00भ् में फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन बना था और अब जाकर बिहार गवर्नमेंट के राजभाषा विभाग को इस भवन की याद आई। यहां पहली बार हिन्दी दिवस मनाया राजभाषा विभाग ने। इस मौके पर शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल सहित ब्रजेश मेहरोत्रा भी पहुंचे। तत्कालीन बिहार विधान परिषद् सभापति जाबिर हुसेन ने हिन्दी भवन के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई थी।

सिनेमा ने हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाया

शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल ने हिन्दी दिवस के मौके पर कहा कि जहां देश या राज्य में हिन्दी बोली या लिखी नहीं जाती है वहां भी बड़े चाव के साथ लोग हिन्दी सिनेमा देखते हैं। हिन्दी के गीतों को गाते हैं। हिन्दी भाषा पढ़ने पढ़ाने में सहज है किन्तु विद्वानों से इसे और सहज बनाने की बात शिक्षा मंत्री ने कही।

मारवाडि़यों ने हिन्दी को पूरे देश में फैलाया

हिन्दी के प्रोफेसर बलराम तिवारी ने कहा कि देश के बड़े बाजार की भाषा हिन्दी बनी। मारवाडि़यों ने इसे पूरे भारत में फैलाया। लेकिन जब भी जीविका देने की बात आती है तो हिन्दी कैसे कमजोर हो जाती है। यूपीएससी भी हिन्दी के साथ साजिश कर रहा है। सरकार ने हिन्दी के लिए काफी कुछ किया पर हम हिन्दी में काम नहीं करना चाहते। गुलाम देश की मानसिकता मौलिकता से दूर होती है। किसी क्षेत्र में इस देश में कोई मौलिक चिंतन नहीं हुआ। नकलची बुद्धिजीवि वर्ग जहां होता है वहां मानसिक गुलामी रहती है। बलराम तिवारी ने गोपाल सिंह नेपाली को याद करते हुए कहा कि नेपाली ने कहा था- हिन्दी है भारत की बोली इसे अपने आप पनपने दो।

हिन्दी राजदरबारी नहीं रही

बी.एन मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ। अमरनाथ सिंहा ने कहा कि हिन्दी कबीर, सूर और तुलसी की भाषा है जिन्होंने कभी राजदरबारी नहीं की। हिन्दी को राजा के दरबार की जरूरत नहीं है। ये तो संतों और आम आदमी की भाषा रही है। कहा कि भाषा कमजोर होगी तो ज्ञान भी कमजोर होगा।

हिन्दी को सावधान रहने की जरूरत

सत्यनारायण ने कहा कि हिन्दी के बड़े लेखक रघुवीर सहाय ने चेतावनी दी थी कि अंग्रेजी से हिन्दी को सावधान रहने की जरूरत है। डॉ। लोहिया और कविवर गोपाल सिंह नेपाली ने भी इस आशय की सूचना अपनी रचनाओं के माध्यम से आमजन को दी थी। आज यह न सिर्फ सोचने की बात है बल्कि विचारणीय भी है। इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।

हिंदी दिवस आत्मनिरीक्षण का पर्व

डॉ। सियाराम तिवारी ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि हिन्दी दिवस आज प्रासंगिक है या नहीं यह विचारणीय है। मेरी समझ से यह दिवस हिन्दी का प्रशस्तिगान का नहीं आत्मनिरीक्षण का पर्व है। वर्तमान संदर्भ में हिन्दी को बाहर-भीतर दोनों तरफ से खतरा है। जो कार्य भाषा विज्ञानी को करना चाहिए वह दूसरा कर रहा है। ये सहने वाली बात नहीं है। इस मौके पर राजभाषा विभाग की पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया।