सेन के मामले में राज्यसभा में चली प्रक्रिया के बाद जब वोटिंग हुई तो बहुमत से इस बात का समर्थन किया गया था कि उन्हें पद से हटाया जाए। राज्यसभा में सौमित्र सेन को सरकारी फंड के दुरुपयोग और ग़लत तथ्य पेश करने का दोषी पाया था।

लोकसभा में भी इस मामले पर पाँच सितंबर को बहस होनी थी और माना जा रहा था कि लोकसभा में भी उन्हें पद से हटाने का समर्थन किया जाएगा।

इस्तीफ़ा

समाचार एजेंसी पीटीआई से सौमित्र सेन ने कहा कि वे लोकसभा में उपस्थित होने की बजाय इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया है। उन्होंने कहा, "मैंने अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को भेज दिया है और इसकी प्रति लोकसभा अध्यक्ष को भेज दी है."

उनके वकील सुभाष भट्टाचार्य के अनुसार राष्ट्रपति को भेजे अपने इस्तीफ़े में जस्टिस सेन ने लिखा है कि चूंकि राज्यसभा ने अपने विवेक से निर्णय लिया है कि वे न्यायाधीश के रूप में काम न करें इसलिए वे अपना पद छोड़ रहे हैं और अब आम नागरिक की तरह रहना चाहते हैं।

न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया टेलीविज़न पर लाइव प्रसारित हुई थी जिसमें पहले सौमित्र सेन को अपना पक्ष रखना पड़ा और उसके बाद उस पर बहस हुई थी।

राज्यसभा में गत 18 अगस्त को हुई वोटिंग के दौरान सौमित्र के पक्ष में मात्र 17 वोट पड़े थे जबकि 189 सांसदों ने उनके ख़िलाफ़ वोट डाला था। सौमित्र सेन ने संसद में अपने बयान में खुद को निर्दोष बताया था और वोटिंग के बाद एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा था कि वो आगे लड़ाई लड़ेंगे।

जस्टिस सेन के ख़िलाफ़ उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की अध्यक्षता गठित एक समिति ने जांच की थी और आरोपों को सही पाया था। उन पर 1983 के एक मामले में 33.23 लाख रुपयों की हेराफेरी करने का आरोप था।

ये पैसे उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट की तरफ से एक मामले में रिसीवर नियुक्त किए जाने के बाद दिए गए थे। उस समय सौमित्र सेन वकील हुआ करते थे।

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