Lucknow: अक्सर रिटायरमेंट की उम्र में लोग आराम करना या फिर कोई पार्ट टाइम काम करना पसंद करते हैं। लेकिन शहर के कुछ ऐसे भी लोग हैं जो उम्र के इस पड़ाव पर स्टूडेंट्स बनकर अपने उस शौक को पूरा कर रहे हैं। जो कभी नौकरी के कारण तो कभी घर की जिम्मेदारियों के चलते पूरा नहीं हो पाया। खास बात यह है कि यह सभी सीनियर्स हॉबी को पूरा करने के लिए हॉबी कोर्स नहीं बल्कि संगीत डीम्ड यूनिवर्सिटी भातखण्डे में एमपीए, विशारद की प्रापर पढ़ाई कर रहे हैं और इनके इस जज्बे को देखकर उनके गुरु भी दंग हैं.
जब बच्चों ने छुए पांव
ऐसा नहीं है कि यह सीनियर स्टूडेंट क्लास करते हों और चुपचाप घर चले जाते हों, उम्र की वजह ने इन्होंने एक दायरा बना रखा हो, बल्कि अपने से तीन गुना कम उम्र के क्लासमेट्स से इनकी अच्छी दोस्ती है। कुछ एक दूसरे के फास्ट फ्रेंड्स बन गये हैं तो कुछ गाइड और फिलासफर.
 उम्र 63 साल, इफको फर्टिलाइजर से रिटायर्ड विकास नगर में रहने वाले खजान सिंह मिश्रा वोकल सेकेंड ईयर के स्टूडेंट हैं। खजान मिश्रा कहते हैं कि संगीत का शौक तो बचपन से था, स्कूल कॉलेज में कई इनाम भी जीते, लेकिन उसके बाद जॉब जो कभी बीहड़ में ले जाती तो कभी किसी दूसरे शहर में.
मैंने एक बार भातखण्डे की म्यूजिक वर्कशॉप की थी जो सीनियर्स के लिए थी। उसी के बाद मैंने मन बना लिया और दो साल पहले मैं यहां का स्टूडेंट बन गया। मुझे याद है जब मैं पहले दिन क्लास में गया वहां पहले से मौजूद बच्चों ने उठ कर मेरे पैर छूने शुरू कर दिये। मैंने हंस कर उनसे यही कहा कि अरे मेरे पैर मत छुओ मैं भी अब तुम्हीं लोगों के बीच बैठकर संगीत की शिक्षा लेने आया हूं।
क्या बोर्ड की तैयारी है?
एक बेटी और एक बेटे के पिता खजान सिंह मिश्रा अपने इस दूसरी पारी में भी क्लास में उतने ही रेग्युलर हैं जितना कभी अपने अल्मोड़ा के स्कूल में हुआ करते थे। उनके बेटे और बेटी जो बाहर रहते हैं, वो जब भी खजान सिंह मिश्रा को अपने पास रहने के लिए बुलाते हैं वो यही कहते हैं कि एबसेंट हो जाऊंगा क्लास में जो मैं नहीं चाहता.
हाल ही में खजान मिश्रा ने एग्जाम दिया है और उन्होंने इस एग्जाम के लिए ऐसे ही पढ़ाई की जैसे कभी बोर्ड में किया करते थे। उन्होंने बताया संगीत मेरे बचपन का शौक था, लेकिन पूरा करने का मौका अब मिला है तो उम्र को क्या देखना
संगीत को ही बना लिया जिन्दगी
संगीत मोक्ष का रास्ता है और यही वजह है कि मेरी जिन्दगी में सबकुछ खत्म होने के बाद मैंने संगीत को अपना लिया। यह कहना है एमपीए कर रही कामिनी मिश्रा का। कभी एज ए सब्जेक्ट संगीत को पढऩे वाली कामिनी 35 साल बाद 51 साल की उम्र में म्यूजिक की स्टूडेंट बनी हैं। 1985 में शादी के बाद अपने शौक और हुनर को भूल चुकी कामिनी की जिन्दगी में संगीत उस वक्त सहारा बना जब उनका कोई अपना कहने वाला नहीं था.
2007 में पति की लम्बी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। पति के बाद बच्चे सहारा बनते हैं, लेकिन कामिनी का ऐसा कोई सहारा नहीं था क्योंकि उन्हें ऊपर वाले ने बच्चे से महरूम रखा था। ऐसे में कामिनी को लगा की उनकी जिन्दगी रुक सी गई है। 2009 में कामिनी ने प्रयाग संगीत समिति से प्रभाकर किया लेकिन उनका मन अभी भी कुछ अधूरा सा था.
वो लखनऊ आईं और दो साल पहले भातखण्डे में एडमीशन लिया। कामिनी ने बताया कि लास्ट ईयर एक्सफैक्टर में उनका सेलेक्शन हुआ और उन्हें मुम्बई बुलाया गया। उसी समय यहां एग्जाम चल रहे थे। सभी ने मुझसे कहा कि यह मौका मिला है तो छोडऩा नहीं चाहिए और वो मुम्बई गईं। तीन राऊंड क्लीयर करने के बाद उन्हें वापस आना पड़ा। एक बार कामिनी फिर से टूट गई थी क्योंकि उनके एग्जाम छूट चुके थे। लेकिन कामिनी ने अपने आप को दोबारा समेटा और फिर से उन्होंने भातखण्डे में एडमीशन लिया.
कामिनी कहती हैं कि इतने साल बाद मैंने एग्जाम दिया और इतना अच्छा दिया कि मुझे यकीन है कि संगीत के साथ जो दूसरी पारी की शुरुआत की है वो मुझे मोक्ष की प्राप्ति जरुर कराएगा.  
महसूस करते हैं खुद को स्टूडेंट
न जाने कितने लोगों को योग की शिक्षा देने वाले शशि प्रकाश पाण्डे कहते हैं कि मैं इस उम्र में जब क्लास में बैठता हूं तो खुद को स्टूडेंट जैसा ही महसूस करता हूं। शास्त्रीय गायन में जल्द ही विशारद होने वाले शशि कहते हैं कि संगीत से लगाव था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के कारण मुझे नौकरी की जरुरत थी सो मैंने संगीत को कुछ दिनों के लिए अलग कर दिया.
अब मैं संगीत की शिक्षा इस उम्र में ले रहा हूं ताकि संगीत साधना से समाज में कुछ कर सकूं। कविता दत्ता ने भी कभी संगीत को एज ए सब्जेक्ट स्कूल में पढ़ा था। शादी के बाद संगीत की इच्छा भी उनकी बिजी लाइफ में कहीं खो गई। अब बच्चे बड़े हो गये हैं और बच्चों की पढ़ाई के साथ कविता ने भी भातखण्डे में वोकल स्टूडेंट बनकर अपने ख्वाब को पूरा करने की ठान ली है.
शास्त्रीय गायन को सीख रही उर्मिला भी यहां की एक ऐसी ही स्टूडेंट है। वो कहती हैं कि बचपन में शौक था, लेकिन सीख नहीं पाई। फिर शादी और बच्चे, लेकिन बच्चों के बड़े होते ही मैंने संगीत सीखने का फैसला लिया और अब मैं संगीत की छात्रा हूं.      

अक्सर स्कूल कॉलेज के नाम पर लोगों को यही लगता है कि वहां सिर्फ यंगस्टर्स ही पढ़ते हैं लेकिन हमारे यहां के कुछ सीनियर एज ग्रुप के स्टूडेंट ने यह भ्रम तोड़ दिया है। पहले एज बाऊंडेशन थी, लेकिन अब ऐसा नहीं संगीत को सीखने के लिए अब कोई ऐज बार नहीं है। यही वजह है कि लोग अब आ रहे हैं उनमें हेजीटेशन खत्म हो रहा है और युवा छात्रों के साथ वो भी अपना हंड्रेड परसेंट संगीत की शिक्षा को दे रहे है और यह रिवाज संगीत को और बढ़ावा देने का जरिया बन रहा है.
कमलेश दुबे, प्रवक्ता तबला, भातखण्डे संगीत सम विश्वविद्यालय