- 70 प्रतिशत से भी अधिक महिलाएं हो जाती हैं एनीमिया का शिकार

- एनीमिया होने का सबसे बड़ा कारण है हिचक और शर्म, जिसकी वजह से समय पर दवा ही नहीं शुरू होती

Meerut : शहर में हर दो में से एक महिला को एनीमिया की बीमारी है, क्योंकि महिलाओं में होने वाली ये आम बीमारी है। डॉक्टरों के मुताबिक इसकी वजह आयरन की कमी होती है, लेकिन इसके होने का सामाजिक कारण शर्म, हिचक और अपने ही घर में होने वाला दोयम दर्जे का व्यवहार है। यही कारण है कि आज अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। तभी जन्म लेने से बाद एक बेटी, फिर पत्नी और मां बनने तक अपने घर में ही बेटे, पति व बच्चों के लिए सेक्रिफाइस कर खुद की सेहत खराब कर लेती हैं।

70 प्रतिशत से भी अधिक बीमार

अगर हम शहर में एनीमिया से ग्रसित महिलाओं के आंकड़ों पर जाएं तो 70 प्रतिशत से भी अधिक महिलाएं बीमार हैं। जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ। मंजू मलिक के अनुसार आने वाली दस में से आठ महिलाओं को एनीमिया होती है। मेडिकल में भी हर पांच में से तीन महिलाओं को एनीमिया है।

बेटा हो तो बंटती हैं मिठाइयां

जिला महिला अस्पताल के लेबर रूम में काम करने वाली नर्स अनिता का कहना है कि यहां रोज दर्जनों महिलाओं की डिलीवरी होती है। लेकिन एक बेटा होने पर जो खुशियां मनाई जाती है। बेटी होने पर ऐसा बहुत कम होता है। बेटा होने पर उन्हें रुपए, मिठाई, देते हैं, जबकि बेटी होने पर कहा जाता है कि बेटी तो हुई है इसमें क्या पैसे दें। वहीं मेडिकल में काम करने वाली डॉ। लीना शर्मा ने बताया कि अक्सर ऐसा होता है कि बेटा होने पर परिवार वाले ज्यादा खुश होते हैं। बेटी होने पर इतनी खुशी नहीं होती है।

अच्छा नहीं खाती हैं तो होंगी बीमार

सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ। आरती बताती है कि अक्सर देखा जाता है कि निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार में अगर बहन भाई है। तो भाई को तो सारी सुविधाएं जैसे अच्छी एजुकेशन, अच्छे कपड़े और बाकी सब प्राइवेट कराया जाता है। लेकिन कई बार उस घर की बेटी के साथ ऐसा नहीं होता है। क्ख् साल के बाद लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होता है और लड़कियों को आयरन की सबसे ज्यादा जरुर होती है। तब उस भेदभाव का सामना करना पड़ता है। नतीजा वह कमजोर पड़ती जाती है। बीमार होती रहती है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

हिचक और दोहरा व्यवहार है मेन रीजन

डॉ। मंजू मलिक बताती है कि जब भी घर में एक बेटी पैदा होती है तो उससे एक बेटे की अपेक्षा बचपन से ही अलग व्यवहार होता है। क्ख् से क्ब् साल की उम्र में जब किशोरी उम्र में उन्हें मासिक धर्म शुरू होता है। उस समय अक्सर देखा गया है कि मां ही बेटी को ठीक से नहीं बताती कि उसे क्या करना है। उसे साथ ही कोई तकलीफ होने पर उसे छुपा कर रखने की ही सलाह देती हैं। साथ ही एक अपराध बोध की भावना भी पैदा कर देती है। घर में मां जो खुद उस पीड़ा से गुजर चुकी है जब इस तरह का व्यवहार करे तो एनीमिया जैसी बीमारी होना स्वभाविक है।

कमजोर बनाने का होता है प्रयास

दरअसल महिलाओं में एनीमिया की प्रॉब्लम पर जब भी बात की जाती है, तो उसके लिए मेडिकल संबंधित तत्वों को ही देखा जाता है, लेकिन इस बीमारी के लिए महिलाओं में इतने व्यापक स्तर पर होने से पीछे सामाजिक कारण की मुख्य वजह है। जिसमें नकारात्मक सोच की वजह से महिलाओं को पुरुषों के कदम पीछे ही समझा जाता है। जिसकी वजह से उन्हें हर सुविधा पुरुषों के बाद ही मुहैया होती है। इसलिए महिलाओं को आयरन जैसी सस्ती दवा भी समय से नहीं मिल पाती है।

आयरन की गोली से मिलेगी राहत

डॉ। आरती शर्मा बताती हैं कि महिलाओं को मासिक धर्म शुरू होने के पांच दिनों में आयरन की दवा जरुर लेनी चाहिए। कोशिश होनी चाहिए कि इस दौरान पूरे दिनों में आयरन की गोली खाई जाए। साथ ही प्रेग्नेंसी के समय बच्चा मां पर ही निर्भर होता है। उस समय पर आयरन व फोलिक एसिड दोनों ही गोलियां खानी चाहिए।