खुद को सेफ नहीं मानतीं वीमेन
आक्सफैम इंडिया और सोशल एंड रूरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआरआई) के 2011-12 के सर्वे में दावा किया गया कि 17 परसेंट महिलाएं, यानी देश में वर्किंग वीमेन महिलाओं की एक बड़ी तादाद खुद को सेफ नहीं मानती हैं। सर्वे में महिलाओं की सेफ्टी को लेकर चौंकानेवाले आंकड़े सामने आए हैं। 17 परसेंट वर्किंग वीमेन ने माना है कि उनको सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार बनना पड़ा है। बाकी वर्किंग वीमेन ने माना है कि उन पर अश्लील फŽितयां कसी गईं और शारीरिक छेड़छाड़ का सामना करना पड़ा। यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, लखनऊ और दुर्गापुर में किया गया था, लेकिन रांची जैसे शहरों की स्थिति भी इससे बहुत अलग नहीं है। जिन लोगों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया, उन्होंने यह भी बताया कि बहुत सी वजह ऐसी थी कि उन्होंने दोषियों के खिलाफ  कम्प्लेन नहीं की। प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस में सेक्सुअल हैरेसमेंट कॉमन बात हो गई है।

जेंडर भेदभाव में इंडिया टॉप पर
युनाइडेट नेशंस की ह्यूमन राइट्स से जुड़ी एक संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जेंडर इक्वालिटी के मामले में भारत दुनिया में सबसे बदतर देशों में शामिल है और साउथ एशिया में तो इसकी स्थिति सबसे खराब है। अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में काम कर रहीं आम और वर्किंग वीमेन सेक्सुअल हैरेसमेंट का सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं। यह बात भी सामने आई है कि पीडि़त महिलाएं अक्सर कम्प्लेन नहीं करती हैं, क्योंकि उनको नौकरी खोने का डर रहता है।

मेंटलिटी बदलने की जरूरत
इंडियन सोसाइटी इस तरह से रची-बुनी है, जो पुरुषों की मदद करता है और इसका खामियाजा महिलाओं को उठाना पड़ता है। शुरू-शुरू में महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक के तौर पर देखा जाता है और वे अपना काम जमा लेती हैं, तो उनके खिलाफ  नफरत और दुश्मनी पैदा होने लगती है। वर्कप्लेस पर किसी तरह की कम्प्लेंट सिस्टम की कमी भी हैरेसमेंट की बातें सामने न आने की एक अहम वजह है। इसके अलावा महिलाओं को गलत आरोप लगने का डर भी उनके सेक्सुअल हैरेसमेंट की बड़ी वजह है। इसका मतलब यह है कि कानून से बात नहीं बननेवाली है। इसके लिए लोगों की मेंटलिटी बदलने की जरूरत है।

तुरंत करें सीनियर से कम्प्लेन
अगर आप किसी ऑफिस में काम करती हैं और आपका कलीग या कोई सीनियर आपका किसी भी तरह का सेक्सुअल हैरेसमेंट करने की कोशिश करता है, तो सबसे पहले आप इसकी कम्प्लेन अपने ऑफिस के सीनियर से तुरंत करें। इसकी शिकायत अपने आफिस में रिलेटेड ऑफिशियल्स से भी करें। वर्किंग वीमेन को यह सजेशन दिया है रांची सिवल कोर्ट की एडवाकेट मनीषा रानी। वह कहती हैं कि इसके साथ ही सबसे ज्यादा ध्यान देनेवाली बात यह है कि वर्किंग वीमेन ऐसी घटना होने पर इसका स्ट्रॉन्ग प्रूफ रखें, क्योंकि अगर उनके पास प्रूफ स्ट्रॉन्ग नहीं होगा, तो आगे उनको इंसाफ  मिलने में मुश्किल होगी। अगर वहां सुनवाई नहीं होती है, तो वे महिला थाना या महिला आयोग जाकर कम्प्लेन करें किसी एडवोकेट से लीगल एडवाइस लें।

साइकोलॉजिकल ट्रामा हो जाता
जो भी महिला या लड़की वर्कप्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार होती है, वह इमोशनल ट्रॉमा, जिसे साइकोलॉजिकल ट्रॉमा कहते हैं, का शिकार हो जाती है। यह कहना है साइकोलाजिस्ट डॉ अमूल रंजन का। वह कहते हैं कि यह लॉन्ग टर्म होता है। इसमें नींद न आना, घबराहट, अपने को हर वक्त हेल्पलेस फील करना, चिड़चिड़ापन, पुरुष से घृणा और डर जैसे सिम्पटम्स होते हैं। ऐस में इससे बचने का सबसे आसान उपाय है कि सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार होने पर वर्किंग वीमेन हर हाल में अपनी आपबीती किसी के साथ शेयर करें। किसी भी हाल में चुप न बैठें। अपनी फ्रेंड या गार्जियंस से सारी बातें शेयर करें। ऐसा करने से वे धीरे-धीरे इन चीजों से बाहर आ जाती हैं। ऐसे हालात में इमोशनल सपोर्ट की सख्त जरूरत होती है। ऐसे में फैमिली और फ्रेंड्स को चाहिए कि पीडि़त को अकेला न छोड़ें, उससे खूब बातचीत करें। ऐसे में वह धीरे-धीरे इन चीजों से बाहर निकल पाएंगी। सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार वर्किंग वीमेन अगर चुप हो जाती हैं, तो उनको मानिसक बीमारियां होने का खतरा हो जाता है। इससे लैक ऑफ कॉन्सेंट्रेशन हो जाता है, नेगेटिव ख्याल आते हैं। इसलिए, वे किसी भी हाल में चुप न बैठें.दस में चार महिलाएं वर्कप्लेस पर होती, हैं सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार

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