भगत सिंह के जन्मदिन पर यदि हम उन्हें याद करते हैं तो साथ ही उनेक वंशजों को भी याद करने की जरुरत है. पता लगाना चाहिए कि आखिर कहां और कैसे उनके वंशज जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं. शहीदों के वंशजों के लिए काम कर रहे सीनियर जर्नलिस्ट शिवनाथ झा का कहना है कि भगत सिंह के परिवार का आज पांचवा वंशज जीवित है, कुछ सम्बन्धी भी, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारत सरकार को उनके बारे में सोचने का समय नहीं है. उन्होंने बताया कि भगत सिंह के भाई रणबीर सिंह की मौत हो चुकी है और उनका बेटा शिवनाम सिंह नोएडा में रहता है. लेकिन वह किस हालत में गुजर बसर कर रहा है इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

'जिंदगी तो अपने कंधों पर ही जी जाती है..'

शिवनाथ झा ने कहा, " भगत सिंह कि बहन बीबी अमर कौर का बेटा प्रोफ़ेसर जगमोहन सिंह ने तो यहाँ तक कह दिया कि अब भगत सिंह को कौन पूछेगा? अगर भगत सिंह जैसा कोई क्रन्तिकारी हुआ तो सरकार उसे आतंकवादी घोषित कर देगा. कारण यह है कि, देश के प्रति मान-सम्मान और वतन से प्यार क्या होता है वह आज के लोग नहीं जानते हैं."

भगत सिंह के पौत्र यादवेंद्र सिंह संधू आज भी हमें भगत सिंह से जुड़ी कई बातें बताने के लिए तैयार रहते हैं. वे फरीदाबाद में रहते हैं और एनएच-5 में अपने दादा शहीद भगत सिंह के नाम से कॉलेज चला रहे हैं. संधू ने बताया कि जब भगत सिंह के नामकरण के समय घर में यज्ञ हो रहा था तभी शहीद-ए-आजम के दादा अर्जुन सिंह ने कह दिया था कि वह अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर रहे हैं. संधू ने बताया कि इस बात का उल्लेख भगत सिंह द्वारा अंतिम समय में अपने पिता को लिखे पत्र में किया गया गया है.

'जिंदगी तो अपने कंधों पर ही जी जाती है..'

यादवेंद्र कहते हैं कि उनके दादा भगत सिंह की बहादुरी उनका विरासती गुण था. भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह, चाचा स्वर्ण सिंह और अजीत सिंह अलग-अलग मोर्चो से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. स्वर्ण सिंह को अंग्रेजों ने काला पानी की सजा सुनाई थी. वहां टीबी की बीमारी के चलते उनकी मौत हो गई थी. भगत सिंह के दूसरे चाचा अजीत सिंह किसानों से लगान वसूले जाने के विरोध में ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन चलाया था, इस आंदोलन से अंग्रेज इतने डर गए थे कि उन्होंने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया था. शहीद भगत सिंह अपने दोनों चाचा से काफी प्रभावित थे और उन्होंने भी देश के लिए जान कुर्बान करते हुए लिखा कि ‘जिंदगी तो अपने कंधों पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे ही उठा करते हैं.’

शहीदों के वंशजों के बारे में हम अक्सर कुछ भी बात नहीं करते हैं लेकिन यादवेंद्र सिंह संधू जैसे लोगों से बातें कर हम शहीदों के बारे में काफी कुछ जानाकारियां हासिल कर सकते हैं. शिवनाथ झा भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. वे गुमनाम शहीदों के वंशजों को ढूंढ-ढूंढकर उन्हें जिंदगी दे रहे हैं. उन्होंने बाताया कि देश भगत सिंह का ऋणी है क्योंकि हम उन्हीं की बदौलत खुली हवा में सांस ले रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज हम अपने और अपने परिवार के प्रति इतने सिमट गए हैं कि हम उन सभी लोगों को भूल गए जिनके बदले हम आजाद हुए. झा ने कहा, "मेरा मानना है कि, आने वाले दिनों में भारत का नया जेनेरेशन यह पूछेगा कि "भगत सिंह कौन थे?"

'जिंदगी तो अपने कंधों पर ही जी जाती है..'

शिवनाथ झा ने बताया कि  "बिस्मिल्लाह..द बिगिनिन्ग फाउंडेशन" ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वीरगति को प्राप्त या फांसी पर लटकाये गये शहीदों के परिवारों और उनके वंशजो को "राष्ट्रीय परिवार और राष्ट्रीय वंशज" घोषित करने की केन्द्र सरकार से मांग की गई है.  गौरतलब है कि आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायणन ने सेल्युलर जेल (काला-पानी) में कहा था कि "सरकार की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि स्वतंत्रता आंदोलन के ऐसे शहीदों के परिवारों और उनके वंशजो को राष्ट्रीय परिवार और राष्ट्रीय वंशज" घोषित किया जाये.

और आखिर में शहीद-ए-आजम के अंतिम पत्र के कुछ अंश, जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए-

'जिंदगी तो अपने कंधों पर ही जी जाती है..'

मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शो व  कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है. इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा हरगिज नहीं हो सकता. आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. मैं फांसी से बच गया तो वह जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धिम पड़ जाएगा या मिट जाएगा, लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. '

-आपका, साथी भगत सिंह

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