- शहर सर्राफा छोड़ सेफ जगह शिफ्ट हो रहे हैं व्यापारी

- पिछले 20 सालों में 30 से ज्यादा व्यापारियों ने कैंट और एनसीआर में भी खोली दुकानें

- शहर में 200 साल पुराना है शहर का सर्राफा व्यापार

Meerut : मेरठ को एशिया का गोल्ड माइन माना जाता रहा है। इसे गोल्ड माइन क्यों कहते हैं? इस बात पर चर्चा कई बार हो चुकी है, लेकिन गोल्ड माइन को नजर जरूर लगी है। क्योंकि शहर किसी भी तरह की हिंसक घटना क्यों न हो उसका सीधा और सबसे बड़ा असर इस मार्केट पर जरूर पड़ता है, इसकाकारण यहां के व्यापारी सिटी के मार्केट से सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन इनडायरेक्टली माइग्रेट जरूर हो रहे हैं। काफी व्यापारियों ने शहर से बाहर सुरक्षित स्थानो पर दुकानें खोल ली हैं, तो कुछ तैयारी कर रहे हैं। ताकि जब हालात ज्यादा बिगड़े तो उनकी नई दुकान पूरी तरह से स्टैबलिश हो चुकी हो। खैर इस माइग्रेशन का कारण सिर्फ घटना ही नहीं और भी कई वजह हैं। आइए आपको भी बताते हैं

दंगा और हिंसक घटनाएं

पिछले कुछ वर्षो में दंगा और हिंसक घटनाएं बढ़ी हैं। फिर चाहे एल ब्लॉक का दंगा हो या फिर मुजफ्फरनगर दंगे का असर और उसी बीच सुभाष नगर में दो समुदायों में हिसंक संघर्ष। इसका सीधा असर सर्राफा व्यापार पर पड़ता है। लोकल ग्राहक के साथ बाहर से आने वाले ग्राहकों की आवाजाही प्रभावित होती है। क्योंकि शहर सर्राफा का अधिकतर व्यापार बाहर से आने वाले व्यापारियों से ही होता है।

लूट की घटनाएं

कुछ दिनों पहले की ही बात है कि जब एक सर्राफा व्यापारी की बस में लूट के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी थी। करीब एक साल पहले गांधी बाग के पास करीब फ्फ् लाख रुपए का सोना लूट लिया गया था। वो व्यापारी मुजफ्फरनगर था। ऐसी घटनाओं के कारण भी व्यापार पर काफी असर पड़ा है। शहर सर्राफा व्यापारियों की मानें तो बदमाशों और लुटेरों के लिए सर्राफा व्यापारी हमेशा से ही सॉफ्ट टारगेट रहा है। क्राइम में इजाफा होने के कारण भी व्यापारी दूसरी ओर भाग रहा है।

सुरक्षा व्यवस्था न होना

इस बात में कोई दो राय नहीं सिटी ही नहीं पूरे जिले की सुरक्षा राम भरोसे है। इस बात का नमूना हम सभी चार दिन पहले शहर के बीचोंबीच देख और कुछ लोग भोग भी चुके हैं। ऐसे में अकेले सर्राफा व्यापारियों की सुरक्षा की गारंटी कैसे ली जा सकती है। व्यापारियों की मानें तो एशिया की सबसे बड़ी मंडी की सुरक्षा एक फैंटम और एक होम गार्ड के हवाले ही है। जबकि देहली गेट थाने से इंस्पेक्टर कभी इस ओर झांकते भी नहीं हैं। ऐसे में यहां के व्यापारी सुरक्षा के मामले में अपने आपको सबसे ज्यादा असहज महसूस करते हैं।

प्रशासन से उठा विश्वास

शहर सर्राफा से धीरे-धीरे ही सही व्यापारियों के माइग्रेट होने का कारण व्यापारियों से प्रशासन का विश्वास उठना भी है। प्रशासन और पुलिस से कई बार गुहार लगाने के बाद उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं कर सका है। उन्हें अधिकारियों की ओर से सिर्फ आश्वासन ही मिला है। व्यापारियों की मानें तो डीएम हो या एसएसपी सिर्फ बातें ही करना जानते हैं। काम कोई नहीं करना चाहता है।

कंजस्टेड एरिया

व्यापारियों के माइग्रेट होने का मुख्य कारण शहर सर्राफा और नील गली बाजार का लगातार कंजस्टेड होना भी है। व्यापारियों की मानें तो छोटी-छोटी गलियां और भीड़भाड़ वाला इलाका होने के कारण ग्राहक आसानी से आने को तैयार नहीं है। ग्राहक को करीब भ्00 मीटर से एक किलोमीटर दूर अपने व्हीकल को छोड़कर आना पड़ता है। ऐसे व्यापारी खुली जगहों पर अपनी दुकानों को लेकर जा रहे हैं।

नहीं है पार्किंग

लोकल दुकानदारों और बाहर एवं लोकल ग्राहकों के वाहन की पार्किंग की व्यवस्था न होना भी बड़ी समस्या है। व्यापारियों ने खुलकर कहा कि यहां न तो उनके पास पार्किंग की व्यवस्था है और न ही ग्राहकों के लिए कोई व्यवस्था है। ग्राहक आते हैं तो घंटाघर के पास अपनी व्हीकल पार्क करके आते हैं। ऐसे में उनकी गाड़ी चोरी होने का भी अंदेशा है।

ट्रैफिक जाम

शहर सर्राफा और नील गली में तो ट्रैफिक जाम होता ही है, लेकिन घंटाघर बुढ़ाना गेट और आसपास के इलाकों में ट्रैफिक जाम होने के कारण यहां पर आने से लोग घबराते हैं। क्योंकि घंटाघर और कबाड़ी बाजार से बुढ़ाना गेट होते हुए यहां आने का रास्ता है। जहां लोगों को हमेशा ही ट्रैफिक जाम मिलता है। ऐसे में व्यापारियों के अलावा यहां आने वाले ग्राहकों को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

फ्0 से ज्यादा दुकानें

शहर सर्राफा और नील गली के व्यापारियों की मानें तो पिछले कुछ वर्षो में फ्0-ब्0 दुकानदारों शहर के अन्य इलाकों के अलावा एनसीआर में भी दुकानें खोली हैं। वैसे उनकी अब शहर में दुकानें हैं, लेकिन अब उनका पूरा जोर अपनी नई दुकानों को स्टैबलिश करने को लेकर हैं। बताते है कि दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, आबूलेन, सदर एवं किशनपुरा की ओर गए हैं।

सिटी में सर्राफा की दुकानें

बाजार दुकानों की संख्या

सर्राफा बाजर ख्भ्0

नील गली ख्भ्00

कागजी बाजार म्00

कच्ची सराय क्000

सदर बाजार क्भ्00

आबूलेन भ्0

अन्य क्भ्0

नोट : अन्य की श्रेणी में कंकरखेड़ा, शारदा रोड, ब्रह्मपुरी, लिसाड़ी रोड, किशन पुरा (मलियाना फाटक) मार्केट है।

सिटी में भ्0 हजार कारीगर

अगर बात सर्राफा कारीगरों की करें तो पूरी सिटी में इनकी संख्या करीब भ्0 हजार हैं। जो दूसरे प्रदेशों से यहां माइग्रेट होकर आए हुए हैं, जिनमें म्0 फीसदी कारीगर वेस्ट बंगाल का है। फ्0 फीसदी कारीगर लोकल है और बाकी दस फीसदी महाराष्ट्र और राजस्थान का है।

ब्000 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार

मेरठ में डेली का एवरेज सर्राफा कारोबार क्0-क्ख् करोड़ रुपए है। जो महीने फ्00 से फ्भ्0 करोड़ रुपए में बैठ जाता है। अगर बात सालाना की करें तो यहीं कारोबार करीब ब्000 करोड़ रुपए में आ जाता है। व्यापारियों की मानें तो ये कारोबार थोक के कारण ज्यादा होता है। जो सर्राफा बाजार और नील गली में ज्यादा होता है।

कई पुराने व्यापारियों ने दिल्ली, गाजियाबाद और शहर के अन्य इलाकों की ओर मूव किया है। कई कारणों से यहां से मूव करना पड़ा। सबसे बड़ा कारण स्पेस की कमी और सुरक्षा का न होना है। सर्राफा व्यापारियों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। ऊपर से दंगे की घटना भी व्यापारी पर हर बार भारी पड़ती है।

- दिनेश रस्तोगी, महामंत्री, सर्राफा व्यापार एसोसिएशन

हमारी शहर सर्राफा में क्9ख्ख् से कांति प्रसाद और राम प्रसाद नाम से दुकान हैं। फिर हमने 80 और 90 दशक के बीच में आबूलेन में भी दुकान ली। क्योंकि शहर सर्राफा हमारे कारोबार का रूट है तो हमने वहां भी दुकान नहीं छोड़ी। वहां के अलावा यहां दुकान लेने का रीजन दंगा होना भी एक कारण है।

- सर्वेश कुमार, ऑनर त्रिपुंड ज्वेलर्स

हमारी दुकान शहर सर्राफ में वैसे क्9क्8 से हैं। लेकिन बाद हमें महसूस हुआ कि एक दुकान और होनी चाहिए जहां एरिया थोड़ा खुला हुआ हो। सिक्योर हो, ग्राहकों में यहां आने में कोई परेशानी न हो। उधर, अब सर्राफा बाजार का माहौल भी पहले से अधिक खराब हो गया है। दुकान बदलने का यह भी एक कारण है।

- अमित प्रकाश, ऑनर, रघुनंदन प्रसाद पदम प्रसाद ज्वेलर्स

आबूलेन से पहले हमारी दुकान शहर सर्राफा में क्9ब्भ् से है। मैं माइग्रेशन तो नहीं कहूंगा लेकिन वहां कई तरह की समस्याएं जैसे पार्किंग की, सुरक्षा की, ट्रैफिक जाम और कई तरह की। यहां ग्राहक काफी आराम से खरीदारी कर सकता है। दूसरा सुरक्षा भी एक बड़ा कारण है।

- सुभाष रस्तोगी, ऑनर, ओमप्रकाश जौहरी एंड संस

पास्ट हिस्ट्री

ख्00 सालों का पुराना इतिहास

सर्राफा व्यापार एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष चंद्र मोहन ने बताया कि क्भ्0 से ख्00 साल पुराना इतिहास है। जब शहर के बीचोंबीच शहर सर्राफा का व्यापार शुरू हुआ। काफी सालों का तक पूरे उत्तर भारत में सोने के व्यापार का केंद्र यही बाजार बना रहा। उसके बाद क्980 में नील गली में दुकाने और मैन्युफैक्चएरिंग फर्म शुरू हुई। उसके बाद तो पूरे एशिया में गोल्ड की सप्लाई यहां से होने लगी।